Thursday, 12 September 2019

#चुनाव_ही_कारा_है_तुम्हारी:

इंद्रियस्य इन्द्रिदस्यर्थे राग द्वेष व्यवस्थितौ।
तयो न वशं आगच्छेत तौ हि अस्य परिपंथनौ।।
- भगवतगीता
अर्थात हमारे मन मे किसी भी व्यक्ति, वस्तु, विचार या भाव के प्रति राग होता है या द्वेष। और यही बंधन के कारण है। इनके वश में मत आना।
अर्थात हम सदैव चुनाव करते हैं कि यह अच्छा है और यह बुरा।
अर्जुन को यह बात कृष्ण तब बताते है जब वह कहता है कि आपके मत ये यदि बुद्धि श्रेष्ठ है तो मुझे घोर कर्म में क्यों नियोजित करते हैं?
बच्चा पैदा होता है। दुनिया के समस्त बच्चे निश्छल होते हैं और दिखते भी हैं। उनकी आंखें देखो। मुस्कुराती हुई आंखे।
अभी उन्होंने चुनाव करना सीखा नही है। वे मिट्टी भी उसी भाव से मुहं में रख लेते हैं जिस भाव से मिठाई मुहं में रखते हैं।
लेकिन जीवन तो ऐसे नही कटेगा। अभी उनको सीखना है, शिक्षित होना है, सभ्य और ससंस्कृत होना है। हर सभ्यता के अपने अलग अलग पैमाने हैं। उसी के अनुसार उनको गलत सही का फैसला करना होता है। हर समाज के नैतिकता के मायने अलग अलग होते हैं, वे उनको सीखने होंगे।
जब सभ्य और ससंस्कृत हो जाएंगे तो वे चुनाव करना सीखेंगे। समाज के लिए, देश के लिए यह आवश्यक है।नैतिक और अनैतिक होना संसार के लिए आवश्यक है। इसीलिए कानून और नियम गढ़े जाते हैं।
लेकिन अंतः करण की यात्रा में यह चुनाव सबसे बड़ी कारा है। यही बात कृष्ण अर्जुन से कह रहे हैं।
जब व्यक्ति ससंस्कृत हो जाता है, सभ्य हो जाता है, शिक्षित हो जाता है तो वह काइयां भी होना सीख लेता हैं। अब उसकी आँखों मे झांकोगे तो निर्दोषता और निश्छलता गायब पाओगे। बहुत कम चेहरे होते हैं जो अपनी निश्चलता बचा पाते हैं।
इसीलिए जंगल में रहने वाला आदमी या शायद अनपढ़ पढ़े लिखे सभ्य लोगो से अधिक निश्चल होता है। वैसे यह कोई नियम नही है।
तो हम अपने जीवन मे जिनसे जिनसे भी मिलते हैं उनमें चुनाव करना शुरू कर देते हैं। कीचड़ बुरा है लेकिन उसी में खिलने वाला कमल अति सुंदर है। हमारी संस्कृति में कमल का इसीलिए इतना महत्व है। कीचड़ से खिलता कमल। पानी मे कमल का पत्ता तैरता है लेकिन पानी से निर्लिप्त रहता है। वह चुनाव नही कर रहा है।वह कीचड़ को बुरा नही बोल रहा है। पानी मे तैर रहा है लेकिन उससे लिप्त नही है।
हम चुनाव करना शुरू करते हैं और अपने मन मे उसको संकलित करना शुरू करते हैं। इसी से हमारा व्यक्तित्व निर्मित होता है। व्यक्तित्व अर्थात पेर्सोना। मुखौटा। हम अपने ऊपर इतने मुखौटे लादे हुए हैं कि असली स्वरूप ही गायब हो गया है।
हम चुनाव करते हैं, दिन का प्रकाश का सुख का। लेकिन इनके पीछे रात अंधकार और दुख तो स्वतः चले आते हैं।
यही चूक हो जाती है।
तो अंतःकरण की यात्रा की प्रथम शर्त है - चुनाव न करें। देख लें। निर्णय करने की आवश्यकता नही है। धीरे धीरे इसका अभ्यास करना होगा। क्योंकि हमको ट्रेनिंग मिली है चुनाव करने की।
इसी को श्री अरविंदो #Unlearning कहते थे।
हमारे मानस पटल पर जो भी लिखा है उसको साफ करना।
हमारे सिस्टम में चार भाग है - बॉडी माइंड थॉट और इमोशन। शरीर मन विचार और भाव।
यदि इसमे किसी चीज से हमे सबसे अधिक लगाव होता है तो वह है विचार। सारे विश्व मे आपसी द्वंद का कारण विचार हैं। विश्व ही नही, घर मे, आपस मे, पति पत्नी में, बाप बेटे में द्वंद का एकमात्र कारण है विचार।
क्योंकि हर व्यक्ति अपने लिए अलग अलग विचार चुनता है, समय काल परिस्थिति के अनुसार।
फिर हम इन विचारों से इतना तादात्म्य स्थापित कर लेते हैं कि उन्हें अपना मानने लगते हैं। उनसे ही आप identify करने लगते हैं स्वयं को। समाज भी आपको उन्ही विचारों से पहचानता है। पहचान ही व्यक्तित्व है मुखौटा है जो आपने अपने ऊपर बाहर से लादा है। यह आपके अंदर से नही जन्मा। इसको आपने समाज से लिया है या समाज ने आपको दिया है।
यही है आपका कारागार, जिसमें आप जीते हैं और मर जाते हैं। जीवन क्या है उसका स्वाद चखे बिना।
इसी से आगाह कर रहे हैं वासुदेव कृष्ण अपने सखा और शिष्य अर्जुन को।

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