मंडल कमीशन की रिपोर्ट पढ़ रहा हूँ. 200 प्रतिशत फर्जीवाड़ा है ये दस्तावेज़. दिल्ली के वातानुकूलित कमरे में बैठकर तैयार की गई. पता नहीं किसी ने आज तक इसको ध्यान से क्यों नहीं पढ़ा? परिणाम पहले से रेडीमेड था, बाकी डाटा की खानापूर्ति बाद में की गई
मसलन डाटा मांगा गया सैंपल सर्वे का एक प्रतिशत, लेकिन समय कम होने का हवाला देते हुये हर जिले के मात्र 2 गांव और एक कस्बे की सैम्पलिंग हुई. एक जिले के मात्र 2 गाव का सर्वे पर्याप्त है? और वो भी, कुल अवधि सर्वे के टीम के गठन से उसके रिज़ल्ट के दाखिले की मात्र 5 महीने.
24 सितम्बर 1979 में पहली बैठक लखनऊ में होती है और 6 मार्च 1980 तक सर्वे के देश भर से आंकड़े तैयार. इसमें राज्य के statistics ऑफिसर से जिले के ऑफिसर और फिर गांव में सर्वे करने वाले की ट्रेनिंग का समय भी इसी काल अवधि के बीच है. क्या मज़ाक है?
मसलन रिपोर्ट में लिखा है कि ब्रिटिश भारत में जाति के आधार पर जनगणना 1881 से 1931 तक हुई. जबकि जातिगत जनगणना पहली बार 1901 में हुई थी. H H Risley ने एंथ्रोपोलोजी और nasal base index (नाक की बनावट के आधार पर बना सूचकांक) को आधार बनाकर सामाजिक पदक्रम (Social Hierarchy) तय की थी.
मसलन फर्जी गढ़ी हुयी आर्य आक्रमण की कहानी (Aryan invasion theory), जिसको डॉ अंबेडकर ने 1946 में ही नकार दिया था, उसका समावेश करते हुये लिखा गया कि तीन वर्ण ही तीन प्रभावी जातियां (Dominant Caste) हैं!
यही तीन वर्ण वो वर्ण हैं जिसको हाई स्कूल पास प्रोफेसर डॉ मैक्समुलर जैसा झोलाछाप संस्कृतज्ञ कहता है कि ये आर्य हैं और भारत में बाहर से आये और यहां के आदिवासी/ मूल निवासी (aborigines), शूद्र, द्रविड़, और महात्मा फुले द्वारा गढ़े शब्द अतिशूद्र को गुलाम बनाया.
वर्ण और जाति एक ही चीज है? caste पुर्तगाली शब्द Castas से उद्धृत है इसको बाकायदा परिभाषित किया गया है Imperial Guzzetear Of India में. जबकि संस्कृत ग्रन्थों के अनुसार जाति का अर्थ सुमन और मालती नामक दो पुष्प और सामान्य जन्म भर है, इसको कैसे forward और backward को परिभाषित कर पाएंगे?
और वही H H Risley, People Of India में लिखता है कि आर्य (ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य), जो गोरे रंग के थे, आए और यहाँ के Aborigines की स्त्रियों को रखैल बनाया या शादी की, जिससे जातियों का जन्म हुआ! ये गाली बर्दाश्त करने लायक है?
जबकि वर्ण का अर्थ है सामाजिक कार्यों का वर्गीकरण और वो भी स्वधर्म यानि अपने प्रवृत्ति के अनुसार वृत्ति का चुनाव क्योंकि जब कौटिल्य लिखते हैं कि यदि एक माँ के चार पुत्र हों और उनमें से एक ब्राह्मण वृत्ति चुने, एक क्षत्रिय वृत्ति चुने, एक वैश्य वृत्ति चुने और एक शूद्र वृत्ति तो संपत्ति के बँटवारे के समय ब्राह्मण को बकरी, क्षत्रिय को अश्व, वैश्य को गाय और शूद्र को भेड़ दी जाना चाहिए. ये कौटिल्य का GO (शासनादेश) है.
इसीलिए कह रहा हूं कि फर्जी Aryan Invasion theory हमारे संविधान का हिस्सा बन चुका है. ये साज़िश गोरे अंग्रेजों ने रची और काले गुलाम अंग्रेज़ उसको आज भी ढो रहे हैं. भारत का विशालतम फर्जीवाड़ा...
एजुकेशनल और सोशल बैकवर्ड नेस का क्राइटेरिया भी वही है - एकलव्य और शम्बूक का उद्धरण।
रोमेश दत्त लिखते हैं कि सिल्क के कपड़े बनाने वाले बुनकरों ने ब्रिटिश दस्युवो के अत्यचारों से बचने के लिए, और उनके शोषण से मुक्ति पाने हेतु सैकड़ो बुनकरों ने अपने अंगूठे कटवा लिए।
इनका जिक्र कौन करेगा?
देखिये संदर्भ सहित वर्णन है इस लिंक में, जिससे हर कोई इस सत्य को जाकर मूल ग्रन्थ से चेक कर सके:
रोमेश दत्त लिखते हैं कि सिल्क के कपड़े बनाने वाले बुनकरों ने ब्रिटिश दस्युवो के अत्यचारों से बचने के लिए, और उनके शोषण से मुक्ति पाने हेतु सैकड़ो बुनकरों ने अपने अंगूठे कटवा लिए।
इनका जिक्र कौन करेगा?
देखिये संदर्भ सहित वर्णन है इस लिंक में, जिससे हर कोई इस सत्य को जाकर मूल ग्रन्थ से चेक कर सके:
टोटल अफवाह पर आधारित क्राइटेरिया।
यदि यही क्राइटेरिया थी।
तो ब्रिटिश दस्युवों ने 45 ट्रिलियन डॉलर लूटा, और भारत के जिस कृषि वाणिज्य और शिल्प का विनाश कर करोड़ो लोगों को बेरोजगार बनाया और दरिद्रता बीमारी और मौत के मुंह मे धकेला, वह कौन थे?
तो ब्रिटिश दस्युवों ने 45 ट्रिलियन डॉलर लूटा, और भारत के जिस कृषि वाणिज्य और शिल्प का विनाश कर करोड़ो लोगों को बेरोजगार बनाया और दरिद्रता बीमारी और मौत के मुंह मे धकेला, वह कौन थे?
इस एडुकेशनली और सोशली बैकवर्ड नेस की झूंठ की पोल पट्टी पढ़ने के लिए निम्नांकित लिंक पढिये:
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