Thursday, 12 September 2019

#आरक्षण_का_आधार : सोशली एंड एडुकेशनली बैकवर्ड।

#आरक्षण_का_आधार :
सोशली एंड एडुकेशनली बैकवर्ड।
मैकाले के पूर्व भारत मे गुरुकुलों में शिक्षा पाने वाले छात्रों की वर्णानुकूल डेटा एकत्रित किया गया था।
1820 से 1830 तक।
जिसमे यह पाया गया कि जिनको आप आज एडुकेशनली बैकवर्ड घोसित करके आरक्षण दिए हैं, उनकी संख्या स्कूलों में द्विजों से अधिक थी।
इंडिया आफिस लाइब्रेरी में आज भी डेटा एकत्रित है।
अर्थात आज से मात्र 200 वर्ष पूर्व वे एडुकेशनली बैकवर्ड नही थे।
रही बात सोशली बैकवर्ड की।
तो यह भारतीय शास्त्र और समाज की अवधारणा नही है।
वर्णाश्रम का अर्थ था - ह्यूमन रिसोर्स की उनके स्किल के अनुसार बंटवारा :
मेधाशक्ति - ब्राम्हण
रक्षाशक्ति - क्षत्रिय
वाणिज्य शक्ति - वैश्य
श्रम और शिल्प शक्ति - शूद्र।
ये व्यस्थायें परिवर्तनीय नही थी।
वरना रैदास कैसे अस्तित्व में आते जिनकी शिष्या राजघराने की मीरा बाई थी।
टेवेरनिर 350 साल पहले लिखता है कि बहुत से क्षत्रिय क्षात्र धर्म छोड़कर marchandise ( मैन्युफैक्चरिंग और वाणिज्य) में उतर गए।
1807 में फ़्रांसिस हैमिलटन बुचनान लिखता है कि कोंकण के निवासी गोवा से भागे हुए धनी ब्राम्हण और शूद्र हैं, जो धर्म परिवर्तन के डर के कारण भाग कर आये थे, जो अब वाणिज्य से जीवन यापन कर रहे हैं और आर्थिक रूप से सम्पन्न भी प्रतीत होते हैं। एक बारात में उसने सजे धजे पुरुष और सुंदर स्त्रियों को अच्छे वेश भूसा में देखा था।
ये समानांतर व्यवस्थाएं थी , एक दूसरे पर निर्भर और एक दूसरे की पूरक।
और परिवर्तनीय भी।
बाकी सारी सामाजिक और ऐतिहासिक कचरा ईसाइयों ने गढ़ा है पिछले 200 वर्षों में अपने लूट अत्याचार और नरसंहार पर पर्दा डालने हेतु।
इस लिंक को भी पढिये:
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मैकाले की शिक्षा नीति 1858 में लायी गयी इंडियन एजुकेशन एक्ट के तहत।
इसका उद्देश्य था भारतीय गुरुकुलों का विनाश करना और धर्म परिवर्तन हेतु भारतीय मानस का माइंड मैनिपुलेट करना।
East India charter 1813 पढिये।
ब्रिटिश संसद ने पास किया था इस एक्ट को। मूल प्रश्न था कि ईसाइयत में धर्म परिवर्तन का आधार भारत मे कैसे तैयार किया जाय?
शिक्षा को धर्म परिवर्तन के माध्यम के रूप में प्रयोग करने की योजना थी।
शिक्षा को माइंड मैनीपुलेशन के माध्यम के रूप में प्रयोग किया गया।
संविधान में आरक्षण का प्रावधान उसकी अंतिम परिणति थी। किसी भी प्रदेश की डेमोग्राफी चेक कर लीजिए पिछले सत्तर वर्षो की।
फुले, पेरियार और अम्बेडकर उनके धर्म परिवर्तन के भारतीय तोते थे, यंत्र थे।
आज भी यह हो रहा है।
चेक कीजिये।
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थोड़ा सा और जोड़ दीजिये तो सम्पूर्ण पोस्ट हो जाय।
"भारत एक कृषिप्रधान देश था या हैं, ये हमको मार्कसवादी चिन्तकों ने पढाया। इस झूठ के ढोल मे कितना बडा पोल है ?
देश को उद्योंगों की क्यों जरूरत हैं ? भारत का आर्थिक मॉडल भिन्न क्यों होना चाहिए ? अपने ही इतिहास से सीख नहीं सकते क्या हम ?
देश को उद्योंगों की क्यों जरूरत हैं ?
हमें पढाया गया कि भारत एक अध्यात्मिक और कृषि प्रधान देश था लेकिन ये नहीं बताया कि भारत विश्व की 2000 से ज्यादा वर्षों तक विश्व की सबसे बड़ी आर्थिक शक्ति थी । Angus Maddison, Paul Bairoch, अमिय कुमार बागची और Will Durant जैसे आर्थिक और सामाजिक इतिहास कारों ने भारत की जो तस्वीर पेश की , वो चौकाने वाली है।
Will Durant ने 1930 मे एक पुस्तक लिखी -The Case For India। ये इलाहाबाद विश्वविद्यालय के प्रोफ लाल बहादुर वर्मा के अनुसार दुनिया के आ तक सबसे ज्यादा पढे जाने वाले writer हैं और निर्विवाद हैं। इनको अभी तक किसी ism में फित नहीं किया गया है।
उन्ही की पुस्तक के कुछ अंश कि भारत को क्यों उद्योगों को बढ़वा देना चाहिये अपना स्वर्णिम आर्थिक युग वापसी के लिये ? और उसका खुद का मॉडेल होना चाहिये न कि अमेरिका या यूरोप की नकल करनी चाहिये :
विल दुरान्त लिखता है:
" जो लोग आज हिंदुओं की अवर्णनीय गरीबी और असहायता आज देख रहे हैं , उन्हें ये विस्वास ही न होगा ये भारत की धन वैभव और संपत्ति ही थी जिसने इंग्लैंड और फ्रांस के समुद्री डाकुओं (Pirates) को अपनी तरफ आकर्षित किया था। इस " धन सम्पत्ति" के बारे में Sunderland लिखता है :
" ये धन वैभव और सम्पत्ति हिंदुओं ने विभिन्न तरह की विशाल (vast) इंडस्ट्री के द्वारा बनाया था। किसी भी सभ्य समाज को जितनी भी तरह की मैन्युफैक्चरिंग और प्रोडक्ट के बारे में पता होंगे ,- मनुष्य के मस्तिष्क और हाथ से बनने वाली हर रचना (creation) , जो कहीं भी exist करती होगी , जिसकी बहुमूल्यता या तो उसकी उपयोगिता के कारण होगी या फिर सुंदरता के कारण, - उन सब का उत्पादन भारत में प्राचीन कॉल से हो रहा है । भारत यूरोप या एशिया के किसी भी देश से बड़ा इंडस्ट्रियल और मैन्युफैक्चरिंग देश रहा है।इसके टेक्सटाइल के उत्पाद --- लूम से बनने वाले महीन (fine) उत्पाद , कॉटन , ऊन लिनेन और सिल्क --- सभ्य समाज में बहुत लोकप्रिय थे।इसी के साथ exquisite जवेल्लरी और सुन्दर आकारों में तराशे गए महंगे स्टोन्स , या फिर इसकी pottery , पोर्सलेन्स , हर तरह के उत्तम रंगीन और मनमोहक आकार के ceramics ; या फिर मेटल के महीन काम - आयरन स्टील सिल्वर और गोल्ड हों।इस देश के पास महान आर्किटेक्चर था जो सुंदरता में किसी भी देश की तुलना में उत्तम था ।इसके पास इंजीनियरिंग का महान काम था। इसके पास महान व्यापारी और बिजनेसमैन थे । बड़े बड़े बैंकर और फिनांसर थे। ये सिर्फ महानतम समुद्री जहाज बनाने वाला राष्ट्र मात्र नहीं था बल्कि दुनिया में सभ्य समझे जाने वाले सारे राष्ट्रों से व्यवसाय और व्यापार करता था । ऐसा भारत देश मिला था ब्रिटिशर्स को जब उन्होंने भारत की धरती पर कदम रखा था ।"
ये वही धन संपत्ती थी जिसको कब्जाने का ईस्ट इंडिया कंपनी का इरादा था। पहले ही 1686 में कंपनी के डाइरेक्टर्स ने अपने इरादे को जाहिर कर दिया था --" आने वाले समय में भारत में विशाल और सुदृढ़ अंग्रेजी राज्य का आधिपत्य जमाना " । कंपनी ने हिन्दू शाशकों से आग्रह करके मद्रास कलकत्ता और बम्बई में व्यवसाय के केन्द्रा स्थापित किये , लेकिन उनकी अनुमति के बिना ही , उन केन्द्रों मे ( जिनको वे फॅक्टरी कहते थे ) उन केन्द्रों को गोला बारूद और सैनकों से सुदृढ़ किया"।
पेज- 8-9
इस विशाल शिल्प और वाणिज्य का क्या हुवा पिछले 200 वर्षों में ?
इस विशाल इंडस्ट्री के निर्माता कौन थे ?
और उसके विनष्ट होने पर उन निर्माताओं और उनके वंशजों का क्या हुवा ?
यह कोई नही बताता?
डॉ आंबेडकर अपनी पुस्तक #WhoWereTheShudras बताते है कि शूद्र नीच थे।
कब से ?
3000 वर्ष से।
तो प्रश्न उठता है कि
इस विशाल इंडस्ट्री का निर्माता कौन वर्ग था ?
ब्राम्हण क्षत्रिय वैश्य या हरमों से पैदा हुये मोमिन ?
इसका उत्तर कौन देगा ?

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