Saturday 21 September 2019

#मनुष्य_का_अस्तित्व_कॉस्मिक_है:

क्षिति जल पावक गगन समीर। इन्ही पांच तत्वों से हम निर्मित हैं।
जिस मिट्टी से बने हो उसका अस्तित्व भी कॉस्मिक है। तुम ये नही कह सकते कि हम फलनी व्यक्तिगत मिट्टी से बने हैं। जिस जल से तुम बने हो वह भी अस्तित्वगत है। तुम्हारे पेट मे जाने के पहले वह न जाने कितने लाख वर्षो से किन किन के पेट से गुजर चुका है। मनुष्य से लेकर पशु, चिड़ियों से लेकर चींटी तक के पेट से।
जो हवा तुम लेते हो वह तुम्हारी व्यक्तिगत संपत्ति नही है। वह तुम्हारे अंदर प्राण फूंकने के पूर्व न जाने किन किन के प्राणों से होकर गुजर चुकी है। आसमान और अग्नि का अस्तित्व भी कॉस्मिक है।
सिर्फ तुम्हारा मन है जो यह कहता है कि तुम इंडिविजुअल हो। क्योंकि तुमको पता नही है कि तुम्हारे मन के ऊपर संस्कार की कितनी पर्तें लदी हुई हैं।पैदा हुए थे तो तुम्हारा कोई नाम न था।
सुविधा के लिए तुम्हारे मा बाप ने तुम्हारा नाम रख दिया। फिर तुमने अपनी पहचान बनानी शुरू किया - परिवार, गांव, जाति, वर्ण, प्रोफेशन, धर्म, देश।
यह सब इडेन्टिटीज हैं जिनको हम सॉफ्टवेयर के शब्दों में अहंकार कहते हैं। और पश्चिम के शब्दों में व्यक्तित्व या परसोना अर्थात मुखौटा।
बुद्धि के स्तर पर सतत तुम अपनी इसी आइडेंटिटी को सुरक्षित रखने के लिए संघर्ष रत रहते हो।
इसी आइडेंटिटी के अनुसार तुम्हारे मन मे एकत्रित अतीत के अनुभव के डेटा का विश्लेषण करके हमारी बुद्धि सदैव अच्छा या बुरा का निर्णय लेती रहती है।
चित क्या है इसका हमे अनुभव ही नही है। उसका अस्तित्व सदैव ही कॉस्मिक होता है।
कृष्ण कहते हैं - चेतना अश्मि भूतानां
भूतानां का अर्थ है समस्त जीव - स्थावर जंगम समस्त जीव, पेड़ पौधे पहाड़ सब का सब।
अपने कॉस्मिक अस्तित्व को समझने की दिशा में एक गूढमन्त्र अर्जुन को श्री कृष्ण देते हैं।
आप भी अपना सकते है।
इंद्रियस्य इंद्रियस्य अर्थे राग द्वेष व्यवस्थितौ।
तयो न वशं अगच्छेत तौ हि अस्य परिपंथनौ।।
- भगवत गीता।
हमारे जीवन मे जिस भी व्यक्ति वस्तु विचार या भाव से हमारा साक्षात्कार होता है हम तुरंत उसके बारे में अपनी राय बना लेते है - कि यह बुरा है या अच्छा है।
इससे बचने की सलाह वे दे रहे हैं। देख लीजिये इनको - निर्णय मत लीजिये कि अच्छा है या बुरा है।
यह पहली सीढ़ी है। यद्यपि आसान नही है।
लेकिन क ख ग घ और abcd भी पढना आसान नही था न।
एक दिन में तो नही सीख पाए रोजी कमाने की विद्या - वह चाहे डॉक्टरी हो, इंजीनियरिंग हो, मास्टरी हो या वकालत हो। कोई भी पेशा हो।
और जो दिमाग मे इतना कचड़ा एकत्रित किया है उसे भी तो बहुत जतन से, श्रम से, सालों की मेहनत द्वारा ही सीखा है।
तो शुरुवात तो करो।
हर शुरुआत पहला कदम होता है लक्ष्य की ओर।
नोट - आज सुबह मैंने एक प्रश्न पूंछा था कि #ब्राम्हणवाद क्या है?
किसी ने उत्तर नही दिया था।
यही है बाम्हणवाद - चेतना अश्मि सर्व भूतानां

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