Sunday, 15 September 2019

#संघ_की_बौद्धिकता_पर_एक_प्रश्न :

संघ के उद्देश्य और मेरे उद्देश्य में कोई अंतर नहीं है। हम दोनों ही चाहते हैं कि भारत, आक्रांताओं के भारत मे आने और उसका मालिक बनने के पूर्व का, एक वैभवशाली, गौरवशाली और विश्व धर्मगुरु की स्थिति को पुणः प्राप्त करे।
लेकिन रणनीति में अंतर है। मैं विश्वास करता हूँ कि सत्य को खोलकर रख दो, और उनको स्वयं निर्णय लेने दो कि क्या वे नीच थे, या गौरवशाली और वैभवशाली भारत के निर्माण का अभिन्न हिस्सा थे?
उनके पूर्वज हमारे पूर्वजों से न ही भिन्न थे, न ही अलग थे, न नीच थे। वे एक ऐसी व्यवस्था के अंग थे जो शिक्षा, रक्षा, वाणिज्य, शिल्प और सेवा के माध्यम से एक दूसरे के पूरक और सहयोगी थे। न कोई ऊंचा था न कोई नीच।
ऊंच और नीच कर्म आधारित था, चाहे महाभारत का समयकाल हो या आज से पांच सौ वर्ष पूर्व, जब चर्मकार रैदास क्षत्राणी महारानी मीरा बाई के आधयात्मिक गुरु थे।
लेकिन संघ चाहता है कि हंसे भी और गाल भी फुलाये।
वह डॉ आंबेडकर को महान भी सिद्ध करना चाहता है जो उनको नीच की टाइटल देते हैं, जो वर्ग भारत के ब्रिटिश दस्युवों द्वारा लूटे जाने और नष्ट किये जाने के पूर्व विश्व की 24% जीडीपी का निर्माता था। और यह भी चाहता है कि उन्ही की वंशजो को जब अम्बेडकर जी नीच बोलें तो उसको ब्रम्ह सत्य भी माना जाय।
ऐसे कैसे चलेगा ? ऐसे कैसे समरसता स्थापित होगी?
एक तरफ आप उनको नीच बोले जाने को स्वीकार्यता प्रदान करेंगे। और मोमिन और ईसाई दस्युवों को बरी करते हुए, #आर्यन_अफवाह पर आधारित फेक न्यूज़ को आधार बनाकर, अन्य तीनो वर्णों ( Castes according to constitution) को अपराधी ठहराएं और गाली देने की छूट देंते जायँ?
उनको सारे लाभ लेते हुए भी गाली देने की खुली छूट?
न सिर्फ उन तीन वर्णों को वरन हिन्दू धर्म, और उसके देवी देवताओं का अपमान करने की भी फ्री छूट?
ऐसे समरसता आ सकती है क्या ?
आपके लिए तुलसीदास जी ने लिखा है :
"दुई न होई एक साथ भुआलू।
हँसब ठठाब फुलाउब गालू।।
हंसना और गाल फुलाना एक साथ संभव नही है।
लेकिन आप दोनों करना चाहते हैं।
यही आपकी सबसे बड़ी बौद्धिक भूल है, जिसने आपको सदैव गलत और भ्रमित तर्क शास्त्रियों को प्रोमोट करने को बाध्य किया है।
मेरा मानना है कि सत्य को खोलकर रख दो।
उनको निर्णय लेने दो।
लोभ हर मनुष्य के चरित्र में इन बिल्ट है।
लेकिन वह उस गौरव से ऊपर नही है जिससे पूर्वजों की गौरावता जुड़ी हो।
Caste न वर्ण है न जाति।
जाति है वंश वृक्ष।
वर्ण भी मैं बता सकता हूँ कि क्या है?
Caste क्या है यह आप बताइए।
यदि जाति या वंश वृक्ष को समझना हो तो तुलसीदास के उस दोहे को याद करो, जो उन्होंने सती के पिता प्रजापति द्वारा उनके पति शंकर जी को अपमानित करने पर, सती जी के मुंह से बोलवाया है:
जद्यपि दुख दारुण दुख नाना।
सबसे कठिन जाति अपमाना।
अब सती की कौन जाति थी?
लेकिन उनके पति तो थे न?
वही है मूल कुल।
लाखों वर्ष की भारतीय संस्कृति में जातियां, विस्तारित वंश वृक्ष के अतिरिक्त कुछ नहीं है।
यदि आप कहते हैं कि जाति ही कास्ट है तो कृपया बताइए कि औट्रलिया में 1856 में #हाफ_कास्ट_एक्ट कैसे, किसने और किसके लिए बनाया था ?

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