Friday, 13 November 2015

Riddle of modern Caste system पार्ट -1

Riddle of modern Caste system
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भारत में ब्रिटिश राज में जनगणना 1872 से शुरू हुई ।1872 और 1881 मे जनगणना वर्ण और धर्म के आधार पर हुई । 1885 का Gazetteer of India भी हिन्दू समाज को वर्ण के आधार पर ही classify करता है ।
1891 में एबबस्तों भारत की जनगणना पेशे को मुख्य आधार बनाकर करता है ।
लेकिन 1901 में लार्ड रिसले कास्ट ( Caste एक लैटिन शब्द Castas से लिया गया है ) के आधार पर जनगणना करवाता है जिसमे 1738 कास्ट और 42 नश्ल को आधारहीन तरीके से anthropology को आधार बनाकर करता है । 19वीं शताब्दी मे यूरोप के ईसाई लगभग पूरी दुनिया पर कब्जा कर चुके थे और और स्वाभाविक तौर पर उनके मन मे श्रेष्ठता का भाव जाग्रत हो गया था / यहीं से एक नए विज्ञान का जन्म होता है जिसका नाम था Race Science , जिसमे चमड़ी के रंग और शरीर की संरचना के आधार पर दुनिया के विभिन्न देशों के लोगों को विभिन्न नशलों मे बांटने का काम किया /
अब ये तरीका क्या था ? उसको सुनिए और समझिये जरा ।
" रिसले नामक इस racist व्यक्ति ने बंगाल मे 6000 लोगों पर प्रयोग करके एक लॉ (नियम ) बनाया , कि जिसकी नाक चौड़ी है उसकी सामाजिक हैसियत कम है नीची है और जिसकी नाक पतली या सुतवां है उसकी सामजिक हैसियत ऊँची है ।यही लार्ड Risley का unfailing law of caste है।इसी को आधार बना कर उसने 1901 की जनगणना की जो लिस्ट बनाई वो अल्फाबेटिकल न बनाकर ; नाक की चौड़ाई के आधार पर वर्गों की सामाजिक हैसियत तय की हुई social Hiearchy के आधार पर बनाई / यही लिस्ट आज भारत के संविधान की थाती है /
इसी unfailing law के अनुसार चौड़ी नाक वाले लोग लिस्ट में नीचे हैं ।ये नीची जाति के लोग माने जाते हैं ।
और पतली नाक वाले लोग लिस्ट में ऊपर हैं वो ऊँची जाति वाले लोग माने जाते हैं।
इस न fail होने वाली कनून के निर्माता लार्ड रिसले ने 1901 में जो जनगणना की लिस्ट सोशल higharchy के आधार पर तैयार की वही आज के मॉडर्न भारत के समाज के Caste System को एक्सप्लेन करता है ।
1921 की जनगणना में depreesed class (यानि दलित समाज ) जैसे शब्दों को इस census में जगह मिली ।लेकिन depressed class को परिभाषित नहीं किया गया / 1935 मे इसी लिस्ट की सबसे निचले पायदान पर टंकित जातियों को एक अलग वर्ग मे डाला गाय जिसको शेडुले कहते है / उसी से बना शेडुल कास्ट /
अब इन दलित चिंतकों से आग्रह है कि इस रिसले स्मृति को व्याख्यसयित करने का कष्ट करें ।
अब सवर्ण यानि जिनके चमड़ी का रंग गोरा है ( ये मेरी कल्पना है क्योंकि ईसाई विद्वानों ने वर्ण का अर्थ मात्र चमड़ी का रंग बताया है ) भी इस लिस्ट में ऊपर टंकित हैं ।वही हुये ऊंची जाति वाले / नीचे हुये असवर्ण यानि नीची जाति वाले / सवर्ण औए असवर्ण को किस संस्कृत ग्रंथ से उद्धृत क्या गया है ?
ये किस मनु और नारद स्मृति में लिखा है ?
ये तो रिसले स्मृति का व्याख्यान है ।"
डॉ ‪#‎अंबेडकर‬ ने अपने लेखन मे एक जगह ‪#‎एनी_बेसंट‬ को उदद्रित किया है , जहां वे 1909 के काँग्रेस अधिवेशन मे ‪#‎ब्रिटेन‬ के ‪#‎One_Tenth_Submerged_Class‬ ( तलछट वाली जनसंख्या का दसवां हिस्सा ) की तुलना और बराबरी ‪#‎वन_sixth_Generic_Depressed_क्लास‬ से करती हैं कि दोनों का रहन सहन सामाजिक पिरामिड के हाशिये पर पड़े लोगों के जैसा है जो शिक्षा स्वास्थ्य सुचिता ( Sanitation and Hygiene ) से वंचित है , और जीवन जीने के लिए समाज का सबसे मेहनत और गंदगी भरा काम करते है , जो कि हर सभ्य समाज की आवश्यकता होती है /
www.chandrabhanprasad.com/Historical%20Doc/Anne%20Besant.doc
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डॉ अंबेडकर के इस लेख की तथ्यात्मक विवेचना करेने की आवश्यकता है / एनी बेसंट का कथन और डॉ अंबेडकर का उद्धरण एकदम तथ्यात्मक है , उचित है , और तात्कालिक समय की मांग भी है /
लेकिन इसमे जो चीज इतिहासकारो और समाजशास्त्रियों द्वारा विश्लेसित होना चाहिए था , उसका विश्लेषण आज तक नहीं हुआ /
1- आज दुनिया पॉल बाइरोच , एंगस मेडीसन , अमिय बघची और अन्य अनेकों आर्थिक और सामाजिक इतिहासकारों ने इस बात को दुनिया के सामने रखा है कि0 AD से 1750 AD तक जहां भारत पूरी दुनिया का लगभग 25% जीडीपी का हिस्सेदार था , वहीं ब्रिटिश और अमेरिका दोनों मिलकर मात्र 1.8% जीडीपी के हिस्सेदार थे /
2- लेकिन 1900 AD आते आते भारत सिर्फ मात्र 2% जीडीपी का हिस्सेदार बचा / और ब्रिटेन और अम्रीका 43% जीडीपी के हिस्सेदार हो गए /
कुछ महीनों पूर्व ‪#‎शशि_थरूर‬ ने ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय मे इस बात को ज़ोर शोर से रखा था / जिसके लिए PMO India ने भी शशि थरूर का आभार व्यक्त किया था / मीडिया ने इसे भी इसे प्रकाशित किया था /
लेकिन इसके निहितार्थ प्रकाश मे नहीं लाये गए / क्या हैं वो निहितार्थ जिसको वामपंथी इतिहासकारों ने न आज तक समझने की कोशिश की , और न ही सामने लाया गया /
3- अमिय कुमार बगची के अनुसार ‪#‎बंगाल_और_बिहार‬ से 7.7 % जीडीपी प्रतिवर्ष ब्रिटेन चला जाता था , और ब्रिटेन के औद्योगिक क्रांति मे इस बाहर गई पूंजी से भी कम मात्र 7% पैसा लगा था /
4- ब्रिटेन ने भारत से लूटे पैसे से पूरी दुनिया मे कॉलोनियाँ बनाई जिसमे भारत का जन और धन दोनों का ही प्रयोग हुआ /
5- बागची के अनुसार " भारत का आर्थिक इतिहास विश्व के आर्थिक इतिहास का हिस्सा नहीं है , बल्कि विश्व का आर्थिक इतिहास भारत के आर्थिक इतिहास का हिससा है /
6 - पॉल बाइरोच , एंगस मेडीसन , अमिय बघची रोमेश चन्दर दुत्त के अनुसार ‪#‎ब्रिटिश_लूट‬ और भारत के घरेलू उद्योग पर आधारित लगभग 10% लोगो मे से 87.5% लोग बेघर और बेरोजगार हो गए , और वे कृषि कार्यों मे मजदूरी करने को बाध्य हुये / इस बात का समर्थन 1853 का ‪#‎कार्ल_मार्क्स‬ ने newyork Tribune मे छापे आटिकले मे भी किया है https://www.marxists.org/archive/marx/works/1853/06/25.htm :
जो कहता है कि " From immemorial times, Europe received the admirable textures of Indian labor, sending in return for them her precious metals, and furnishing thereby his material to the goldsmith, that indispensable member of Indian society, whose love of finery is so great that even the lowest class, those who go about nearly naked, have commonly a pair of golden ear-rings and a gold ornament of some kind hung round their necks. Rings on the fingers and toes have also been common. Women as well as children frequently wore massive bracelets and anklets of gold or silver, and statuettes of divinities in gold and silver were met with in the households. It was the British intruder who broke up the Indian hand-loom and destroyed the spinning-wheel. England began with driving the Indian cottons from the European market; it then introduced twist into Hindostan, and in the end inundated the very mother country of cotton with cottons. From 1818 to 1836 the export of twist from Great Britain to India rose in the proportion of 1 to 5,200. In 1824 the export of British muslins to India hardly amounted to 1,000,000 yards, while in 1837 it surpassed 64,000,000 of yards. But at the same time the population of Dacca decreased from 150,000 inhabitants to 20,000. This decline of Indian towns celebrated for their fabrics was by no means the worst consequence. British steam and science uprooted, over the whole surface of Hindostan, the union between agriculture and manufacturing industry."
7- यही बात अमिय बाघची हैमिल्टन बूचनान के 1809 से 1813 के डॉकयुमेंट से भी उद्धृत करते हुये कहते है कि अब तक बिहार के मात्र दो जिलों पूर्णिया और भागलपुर के सिल्क वस्त्र तथा अन्य उद्योगों पर आधारित .65 मिलियन यानि 6.5 लाख लोग ‪#‎बेरोजगार_बेघर_हुये‬ / इसको यदि एक ‪#‎पायलट_स्टडी‬ को आधार माना जाय , और इस लूट और भारत के औद्योगिक विनाश के कारण हुये बेरोजगार बेघर हुये लोगों की संख्या को 190 साल ( 1757 से 1947) तक के समकाल का हिसाब लगाएँ तो आप एक अंदाजा लगा सकते हैं कि जो ‪#‎skilled‬ लोग भारत के आर्थिक उत्पादन का आधार थे , उनका क्या हाल हुआ होगा ? और उनके वंशजों का क्या हाल हुआ होगा , जब डॉ अंबेडकर ने एनी बेसंट को संदर्भित किया , तो ये ‪#‎one_sixth_generic_depressed_क्लास‬ मे बादल चुके थे , जिनकी तुलना बेसंट ने ब्रिटेन की जनसंख्या के ‪#‎तलछट_के_दसवें‬ हिस्से से किया था /
‪#‎फर्क‬ सिर्फ इतना था कि ‪#‎भारत‬ के ‪#‎skilled_उत्पादक‬ वर्ग की तुलना #ब्रिटेन के ‪#‎unskilled‬ लोफर गंदे शराबियों से की गई , जो उस महान औद्योगिक क्रांति के बावजूद मैंचेस्टर की कपड़ा बनाने वाली फकतरियों मे ‪#‎apprentice‬ करके रोजगार प्राप्त करने मे , अभी तक असफल रहे थे /
भाग - 1
कल आगे की कहानी /

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