Wednesday, 4 November 2015

मध्यकालीन इतिहासकार ‪#‎इरफ़ान_हबीब‬ के ‪#‎अल_तकिया‬ इतिहास की जांच तथ्यों के आधार पर : ‪#‎झूंठ_या_इतिहास‬ ?

‪#‎एखलाकी‬ मध्यकालीन इतिहासकार ‪#‎इरफ़ान_हबीब‬ के ‪#‎अल_तकिया‬ इतिहास की जांच तथ्यों के आधार पर : ‪#‎झूंठ_या_इतिहास‬ ?
इसका निर्णय आप करें ।
अपनी पुस्तक के प्रथम अंक के दूसरे अध्याय को इरफ़ान हबीब ने खुद लिखा है ।
‪#‎पूर्व_पक्ष‬: यानि हबीब जी क्या लिखते हैं ?
‪#‎प्रौद्योगिकीय_परिवर्तन_और_समाज‬
( 13वीं और 14वीं शताब्दी के सन्दर्भ में )
वस्त्र उद्योग के बारे में उनके मुख्य विंदू इस प्रकार हैं ।
1- ऐसा प्रतीत होता है कि अंग्रेजी राज से पहले भारत में प्रौद्योगिकी एकदम आदिम अवस्था में थी ,लेकिन यह स्वीकार नही की जा सकती क्योंकि यह नीधम और लिन व्हाइट की खोजों से पता चलता है कि चीन और यूरोप इसमें अग्रणी थे ,जबकि भारत पर वो बात लागू नही होती ।
2- वस्त्र उद्योग की बात करते हुए उनका मत है कि ‪#‎चरखे‬ का जन्म भारत में 500 ई. पू. हुवा था । फिर इसको ख़ारिज करते हुए ‪#‎लिन_व्हाइट‬ के आग्रह को स्वीकार करते हुए कहते है कि #चरखे का जन्म पश्चिम यूरोप में हुवा था ।
3- फिर नीधम के 1270 के अध्ययन को संदर्भित करते हुए कहते हैं कि #चरखे का जन्म का मूलस्थान ‪#‎चीन‬ हुवा।
4- "जहाँ तक प्राचीन भारत का सम्बन्ध है , कताई के विषय में एकत्रित प्रमाणों के आधार पर यह तय है कि ‪#‎चरखा‬ यहाँ नहीं था । केवल हाँथ से चलने वाले पहिये और ‪#‎तकले‬ हो सकते हैं क्योंकि किसी आलेख में चरखे का उल्लेख किसी आलेख में नही मिलता ।अंत में ,जहाँ तक संस्कृत में इसके लिए कोई शब्द नहीं है । वहां अब अधिकांश उत्तरी भारतीय भाषाओँ और नेपाली में प्रयुक्त 'चरखा' शब्द ‪#‎फारसी‬ है ।(पेज 24-25)
5- भारत में 1350 में रजिया सुल्तान के समय 'फतुहस् सतालीन ' में इसका उल्लेख मिलता है ।
6- भारत में 1350 वाले प्रमाण की तुलना में यह प्रमाण बहुत अस्पस्ट है लेकिन इससे काफी संभावना यह प्रतीत होती है कि ईरान (पर्शिया) में 1257 तक चरखे का प्रचार हो चूका था ।
7-जहाँ तक ‪#‎भारत‬ का सम्बन्ध है , मूलस्थान कोई भी रहा हो ,चरखे का प्रयोग तेरहवी शताब्दी में ही आरम्भ हुवा ।
8- इन्होंने ‪#‎जुलाहा‬ (फारसी शब्द ) और ‪#‎कोरी‬ (1872 तक MAShering के अनुसार सम्मानित वैश क्षत्रिय) को एक ही ग्रुप में जोड़ दिया है ।
अब उनके कुछ खुद के ऑब्जरवेशन हैं जो बहुत ही मजेदार हैं ।
- चरखा के भारत में आयात होने के बाद मोटे और सूत के साधारण उत्पादन में बहुत वृद्धि हुयी ।
- यद्यपि महीन कपड़े हाथ से ही बनाये जा सकते थे ,चरखे से नहीं ।
- मुख्य रूप से इस व्यवसाय से जुड़े लोग मुसलमान ही हैं , इससे जाहिर है कि यह उपकरण मुसलमानों द्वारा ही भारत में लगाया गया होगा ।
-सबसे मजेदार बात जो इन्होंने लिखी है कि AS Altekar ने जो चित्रों में , देवी देवताओं पौराणिक राजकुमारऔर कुमारियों , के कम वस्त्रों में दिखलाये जाने को मुख्यतः कलाकार की सूंदर कला का नमूना हो सकता है ,लेकिन जहां कलाकार ने अर्धनग्न भीड़ को दिखाया है ,उसकी तुलना 16वीं और 17वीं शताब्दीयों में मुग़ल घरानों और और बाद के भारतीय घरानों के चित्रों में दिखाए गए गरीब लोगों के चित्रण से ही की जा सकती है । (पेज-28)
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‪#‎उत्तर_पक्ष‬ के पूर्व इनके लेख पर कुछ जिज्ञासाएँ
1- इनके इस झूंठ, कि भारत में वस्त्र उद्योग में प्रौद्योगिक क्रांति , लुटेरे बर्बर रेगिस्तान की तपती बालू में एक बाल्टी पानी के लिए अपने नवासे का भी कत्ल करने में जो एक क्षण भी न लगाएं , के द्वारा आययतित हुवा है ; इस झूंठ के खिलाफ रोमन काल से आज तक के अनेकों उदाहरण दूंगा ।
2- ‪#‎हबीब‬ जी ये बताने का कष्ट करें कि जिन्होंने #चरखा ईजाद किया 13वीं से 17वीं शताब्दी तक विश्व जीडीपी में कितने की हिस्सेदारी के मालिक थे ?
3- अलुबेरनी ने 1030 AD में ‪#‎अलुबरनीज_इंडिया‬ में लिखा कि ‪#‎इस्लाम‬ जहाँ जहाँ पहुंचा ‪#‎विज्ञानं‬ वहां से विलुप्त हो गया । Science retired from the places where Islam reached , and took refuse in Banaras and Kashmir , where our hand could not reach .
From the same source : Edward Sauchau.
उत्तरपक्ष और इनके झूंठ के खिलाफ तो प्रमाण मैं कल दूंगा ।
आज मेरा इतना ही प्रश्न है कि ‪#‎झूंठ‬ कौन बोल रहा है ?
#हबीब
या
‪#‎अलबर्नी‬ ??
एक बात और - यदि #चरखा पर्शियन है तो ‪#‎बेईमान‬ और ‪#‎बेईमानी‬ भी पर्शियन है ।
ये भी उन्ही ‪#‎अशरफों‬ ने अपनी गठरी बाँधी और आप जैसे #अजलफों के सर पर दे मारा ।
और आपने उसे पूरे भारत के इतिहास और चरित्र में पिरो दिया ।

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