गुलाम भारत के बारे मे भारत का पक्ष बहुत कम लोगों ने रखा है / कुछ पॉइंट
विशेष महत्व के हैं जो आज भी अप्रासंगिक है , जैसे पुरानी औद्योगिक
इंडस्ट्री की पुनर्स्थापना / जिसके प्रति गांधी बहुत ज्यादा प्रतिबद्ध थे /
लेकिन नेहरू ने प्रधानमंत्री बनते ही गांधी को तस्वीर बनाकर दीवारों की
शोभा बनने हेतु छोड़ दिया /
अगर भारत 25% जीडीपी का मालिक 1750 तक घरेलू इंडस्ट्री के कारण मालिक था , और ढाका का मलमल और सिल्क बनाता था घर घर , तो क्या उस आर्थिक मोडेल पर पलट कर समीक्षा करने की आवश्यकता नहीं है ? और अगर ठीक लगे तो उसको पुनर्स्थापित क्यों ण किया जाय ?
आज भारत निर्णय ले ले --- कि #पूरे_विश्व_को_कपड़े_पहनाएगा ,और इसकी खातिर #घर_घर_स्पिननिंग_कराएगा /
कल से ही ढेर सारी समस्याओं का निदान हो जाएगा ।
अब पढ़िये J Sunderland
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XIV
आखिर इन बुराइयों और इस बोझ का जिसके नीचे भारत पिस रहा है , उसका उपचार क्या है ? इस घृणास्पद और निरंतर बढ़ती गरीबी से भारतीयों को निजात कैसे मिलेगी ? किस तरह उनको वैभव, खुसी और संतोष प्रदान किया जा सकता है ?
इसके कई जबाव सुझाए जा रहे हैं / उनमे से एक है – टैक्स कम कर दिया जाय / ये वास्तव मे बहुत महत्वपूर्ण है : वस्तुतः जीवनदायी है / लेकिन इसको किस तरह करना संभव है जब लोगों के हाथ मे इन क्रूर टैक्स प्रणाली मे सुधार लाने का जरा सा भी अधिकार है ही नहीं , जिसके बोझ से वे पिस रहे हैं / सरकार अपने निजी हित के लिए भारी टैक्स वसूल रही है , जिसकी दर दिन प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है / लोगों का विरोध उनको सुनाई ही नहीं पड रहा /
दूसर उपाय जो भारत की बदहाली से निपटने के लिए सुझाया जा रहा है, कि ऐसे कानून लाये जाय जिससे भारत की जबरियन नष्ट की गई स्वदेशी उद्योगों को पुनर्स्थापित किया जा सके / और वास्तव मे भारत यही करेगा यदि उसके हाथ मे स्वराज्य आता है तो : लेकिन एक विदेशी सरकार जिसने स्वहित मे खुद ही इन उद्योगों को नष्ट किया है , क्या ये कदम उठाएगी ?
एक अन्य उपाय सुझाया गया है कि अनावश्यक और अनैतिक मिलिटरी खर्चों मे कटौती की जाय /ये कहना आसान है और अत्यंत reasonable भी है / लेकिन इसको किया जाना कहाँ तक संभव है जब सरकार इन खर्चों को बाध्यकारी बता रही है , और यहाँ के लोगों के हांथ मे इसके खिलाफ निर्णय लेने का कोई अधिकार नहीं है /
एक अन्य उपाय है कि इंग्लैंड को (भारत से ) होने वाली मनी ड्रेन पर पाबंदी लगाने की गुजारिश की जाय / लेकिन इसको रोकने की दिशा मे एक कदम भी आगे बढ़ाना किस तरह संभव है , जब सारी ताकत और अधिकार उन्ही लोगों के हांथो मे है , जिनहोने इस मनी ड्रेन की व्यवस्था को जन्म दिया और जो इसी से धन वैभव कमाए हैं , और जो इस व्यवस्था को जारी रखने के लिए प्रतिवद्ध हैं /
तो बात घूमफिर कर वहीं आ जाती है : मौलिक मुश्किलात , मौलिक बुराइयाँ , मौलिक गलतियाँ , और इनका कारण है भारत का धरती गुलाम है , और विदेशियों द्वारा शासित है / और इसी कारण वो अपने हितों की रक्षा करने मे सक्षम नहीं है , और अन्याय पूर्ण क़ानूनों से अपनी सुरक्षा नहीं कर पा रही है , और अपने विकास हेतु उन साधनों का उपयोग नहीं कर पा रही जिसको उसको तुरंत करने की आवश्यकता है /
पेज – 21- 22
अगर भारत 25% जीडीपी का मालिक 1750 तक घरेलू इंडस्ट्री के कारण मालिक था , और ढाका का मलमल और सिल्क बनाता था घर घर , तो क्या उस आर्थिक मोडेल पर पलट कर समीक्षा करने की आवश्यकता नहीं है ? और अगर ठीक लगे तो उसको पुनर्स्थापित क्यों ण किया जाय ?
आज भारत निर्णय ले ले --- कि #पूरे_विश्व_को_कपड़े_पहनाएगा ,और इसकी खातिर #घर_घर_स्पिननिंग_कराएगा /
कल से ही ढेर सारी समस्याओं का निदान हो जाएगा ।
अब पढ़िये J Sunderland
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आखिर इन बुराइयों और इस बोझ का जिसके नीचे भारत पिस रहा है , उसका उपचार क्या है ? इस घृणास्पद और निरंतर बढ़ती गरीबी से भारतीयों को निजात कैसे मिलेगी ? किस तरह उनको वैभव, खुसी और संतोष प्रदान किया जा सकता है ?
इसके कई जबाव सुझाए जा रहे हैं / उनमे से एक है – टैक्स कम कर दिया जाय / ये वास्तव मे बहुत महत्वपूर्ण है : वस्तुतः जीवनदायी है / लेकिन इसको किस तरह करना संभव है जब लोगों के हाथ मे इन क्रूर टैक्स प्रणाली मे सुधार लाने का जरा सा भी अधिकार है ही नहीं , जिसके बोझ से वे पिस रहे हैं / सरकार अपने निजी हित के लिए भारी टैक्स वसूल रही है , जिसकी दर दिन प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है / लोगों का विरोध उनको सुनाई ही नहीं पड रहा /
दूसर उपाय जो भारत की बदहाली से निपटने के लिए सुझाया जा रहा है, कि ऐसे कानून लाये जाय जिससे भारत की जबरियन नष्ट की गई स्वदेशी उद्योगों को पुनर्स्थापित किया जा सके / और वास्तव मे भारत यही करेगा यदि उसके हाथ मे स्वराज्य आता है तो : लेकिन एक विदेशी सरकार जिसने स्वहित मे खुद ही इन उद्योगों को नष्ट किया है , क्या ये कदम उठाएगी ?
एक अन्य उपाय सुझाया गया है कि अनावश्यक और अनैतिक मिलिटरी खर्चों मे कटौती की जाय /ये कहना आसान है और अत्यंत reasonable भी है / लेकिन इसको किया जाना कहाँ तक संभव है जब सरकार इन खर्चों को बाध्यकारी बता रही है , और यहाँ के लोगों के हांथ मे इसके खिलाफ निर्णय लेने का कोई अधिकार नहीं है /
एक अन्य उपाय है कि इंग्लैंड को (भारत से ) होने वाली मनी ड्रेन पर पाबंदी लगाने की गुजारिश की जाय / लेकिन इसको रोकने की दिशा मे एक कदम भी आगे बढ़ाना किस तरह संभव है , जब सारी ताकत और अधिकार उन्ही लोगों के हांथो मे है , जिनहोने इस मनी ड्रेन की व्यवस्था को जन्म दिया और जो इसी से धन वैभव कमाए हैं , और जो इस व्यवस्था को जारी रखने के लिए प्रतिवद्ध हैं /
तो बात घूमफिर कर वहीं आ जाती है : मौलिक मुश्किलात , मौलिक बुराइयाँ , मौलिक गलतियाँ , और इनका कारण है भारत का धरती गुलाम है , और विदेशियों द्वारा शासित है / और इसी कारण वो अपने हितों की रक्षा करने मे सक्षम नहीं है , और अन्याय पूर्ण क़ानूनों से अपनी सुरक्षा नहीं कर पा रही है , और अपने विकास हेतु उन साधनों का उपयोग नहीं कर पा रही जिसको उसको तुरंत करने की आवश्यकता है /
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