Thursday, 27 August 2015

जे Sunderland : भारत की इकॉनमी कैसे बर्बाद की गई ? एक कहानी - भाग 2

1928 मे जब अंग्रेज़ सिमन कमिशन के रूप मे ‪#‎बाबा_जी‬ को बहेलिया की तरह अपने जाल मे फाँसकर ‪#‎Depressed_क्लास‬ की परिभाषा सीख रहे थे / और जब सीख लिया तो 1931 के राउंड टेबल कॉन्फ्रेंस मे उनको depressed class का लीडर चुनकर गांधी के समक्ष खड़ा किया , मुसलमानों के साथ , तो बाबाजी ने मांग रखी कि depressed class को मुसलमानों की तर्ज पर अलग एलेक्टोराते दिया जाय / बाद मे मुसलमान पाकिस्तान लेकर वहाँ चले गए / लेकिन बाबा जी आज भी भारत के समाज को विभाजित करने की व्यवस्था कर रखे हैं /
खैर बाबा के अनुयायियों से आज फिर पुंछ रहा हूँ --- अंग्रेजों भारत छोड़ो के 1942 के नारे के समय बाबा कहाँ थे ?

जब बहेलिये ‪#‎बाबा‬ को बुलबुल की तरह फांस रहे थे , उसी समय 1929 मे J Sunderland ने लिखी ‪#‎इंडिया_इन_Bondage‬
उसी से कुछ उद्धरण पेश है :

पीछे वालों के लिए लिंक पेश है / जो अपडेट हैं वे सीधे पढ़ें /

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XII
इंग्लैंड का दावा है कि भारत उसे कुछ खास ‪#‎शुकराना‬ नहीं देता / तकनीकी रूप से ये बात सच है , लेकिन वास्तविकता मे सच्चाई से कोसों दूर है / वेतन के रूप मे आया धन जो कि प्रायः, और पेन्सन तो पूर्णरूप से ही इंग्लैंड मे खर्च किया जाता है , भारत मे इंग्लैंड द्वारा इन्वेस्ट किए गए धन का ब्याज , और भारत मे उसके द्वारा कमाया गया मुनाफा , जो कि घर (इंग्लैंड ) भेज दिया जाता है , और अन्य भांति भांति प्रकार के भारत मे शोषणों से अंग्रेजों और इंग्लैंड के लाभ हेतु कमाया गया धन ; धन का एक अजस्र श्रोत ( जिसको शुक्राना कहे या न कहें ) भारत से इंग्लैंड मे तब से प्रवाहित किया जा रहा है , जब से ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत की धरती पर कदम रखा है , और ये प्रवाह आज भी लगातार बढ़ते हुये भारी मात्रा जारी है /
मिस्टर R C Dutt जो “ एकोनोमिक history ऑफ इंडिया “ के लेखक हैं ( उनसे बड़ा आज कोई इस विषय मे विद्वान नहीं है ) , उन्होने लिखा है : “ भारत से प्रतिवर्ष 20 million इंग्लैंड के रुपयों मे , या 100 million अमेरिकी रुपयों के बराबर का धन – कुछ लोग इससे ज्यादा भी अनुमान लगाते हैं , इंग्लैंड भेजा जाता है / ये बात अवश्य मस्तिस्क मे रहना चाहिए कि ये धन भारत मे इकट्ठा किए गए कुल रेविन्यू का आधा हिस्सा है / इसको नोट कर ले ---- भारत जो तक्ष देता है उसका आधा हिससा देश के बाहर चला जाता है , जिसका उपयोग उन लोगों की सेवा मे नहीं होता जिनहोने तक्ष दिया है / दुनिया का कोई भी देश इस प्रताड़णा से नहीं गुजर रहा है / धरती का कोई भी देश इस तरह का आर्थिक दोहन बिना दरिद्र हुये और बारंबार अकाल से प्रभावित हुये बिना , नहीं झेल सकता /” हम प्राचीन रोम को गौल इजिप्त ,sicily और फिलिस्तीन के शोसन करके गरीब बनाने , और खुद को अमीर बनाने के लिए दोषी ठहराते हैं / हम स्पेन को “ नए विश्व “ और नीदरलैंड्स को लूट कर अमीर बनने का दोषी ठहराते है / इंग्लैंड भी भारत मे वही कर रहा है / ये कौन सी अनोखी बात है कि उसने अपने शासन मे भारत को एक व्यापक भुखमरी का घर बना दिया है ?
XIII
लेकिन भारत की भीषण दरिद्रता इंग्लैंड के द्वारा भारत के प्रति किए गए अन्याय का एक पहलू मात्र है / सबसे बड़ा अन्याय ये है कि इसने भारत की स्वतन्त्रता छीन ली है --- तथ्यात्मक रूप से से उसको अपने भाग्य के निर्माण मे कोई ज़िम्मेदारी निभाने से पूर्णतया या प्रायः वंचित कर दिया गया है / जैसा कि हमने देखा हैं , कि कनाडा औस्ट्रालिया और अन्य दूसरी ब्रिटिश औपनिवेश स्वतत्न्त्र और स्वयं शासित हैं / लेकिन भारत को पूर्ण गुलाम बनाकर रखा गया है / यद्यपि वे एशिया के सबसे सुंदर नाशल के लोग है , और उनके अंदर आर्य रक्त है / यहाँ पर ऐसे लोगों की कमी नहीं है , या ये कहिए कि उनकी बहुतायत है , जो ज्ञान योग्यता और विस्वास्पात्रता मे हर क्षेत्र मे , अपने मालिकों ( ब्रिटीस्श ) के समकक्ष हैं / ऐसे लोगों से ये बर्ताव भयानक उत्पीड़न मात्र ही नहीं है ( जैसा कि बहुत से अंग्रेज़ भी मानते हैं ) बल्कि ये अंग्रेजों के स्वतन्त्रता और न्याय के उस आदर्श का सीधा उल्लंघन है जिसकी वे दिन रात डींगे मारा करते हैं , और जिन आदर्शों मे विसवास रखने की वे कसमें खाते रहते हैं / ये इंग्लैंड के खुद के हितों के दृस्टिकोन से short sighted पॉलिसी है / ये उसी तरह की नीति है जिसकी वजह से उसकोण अम्रीका की औपनिवेश गँवाना पड़ा , और कनाडा को गवाते गवाते बचा / और अगर यही नीति उसकी जारी रही , तो उसे भारत को भी गँवाना पड़ेगा /
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