Monday 17 August 2015

नष्ट की गई इकॉनमी और मैनुफेक्चुरिंग का समाजशास्त्र

अभी कुछ दिन पूर्व शशि थरूर ने ब्रिटेन मे एक भासन दिया जिसमे उन्होने ब्रिटेन को भारत के आर्थिक तंत्र और उत्पादकता को नष्ट करने का दोषी सिद्ध किया / भारत के लोग बड़े खुश हुये / प्रधानमंत्री मोदी जी ने भी पार्टी लाइन से निकलकर शशि थरूर को बधाई दी /
शशि थरूर या अन्य जो लोग भारत के स्वर्णिम आर्थिक इतिहास और उसके अविस्मरणीय उत्पादों की बात करते है ; वो उसके विनष्ट होने के बाद उन उत्पादों के उत्पादकर्ताओं और उनके वंशजों का क्या हुआ , इसको नहीं बताते / क्यों ?
क्या कोई इकॉनमी , सोशियोलॉजी से पृथक जीवित रह सकती है ? आप तो हमेशा socio- economic की ही बात करते हैं ?
‪#‎सोशियोलॉजी‬ ये हुई कि हजारों साल से इन उत्पादों के निर्माणकर्ताओं में से , 1875 से 1900 के बीच 22 करोड़ भारतीयों में से 2 करोड़ लोग ‪#‎अन्न_के_अभाव‬ में प्राण त्याग देते हैं ।
बाकियों को 1901 में जातियों में बाटने के उपरांत उनको डिप्रेस्ड क्लास , opressed क्लास और बाद में अनुसूचित जातियों में चिन्हित किया जाता है ‪#‎मनुस्मृति‬ के हवाले से । जिसको आंबेडकर और अम्बेडकरवादी आज भी कुंठित होकर जला रहे है ।
आइये उस विनष्ट हुये एकोनोमिक मोडेल के उत्पादकर्ताओं की एक झलक देखें /
---------------------------------------------------------------------------------------------नए लोग पहले ये लिंक पढ़ें /
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भारत की गरीबी का दूसरा कारण , ब्रिटिश शासन द्वारा भारत के मैनुफेक्चुरिंग का विनष्ट किया जाना है / जब ब्रिटिश यहाँ के परिदृश्य मे उपस्थित हुआ तो , भारत दुनिया के सबसे धनी देशों मे से एक हुआ करता था ; वस्तुतः ये उसका वैभव ही था जिसने ब्रिटिश को यहाँ आने को मजबूर किया था / भारत के इस धन वैभव का श्रोत मुख्यतः उसका विशाल मैनुफेक्चुरिंग था / उसका सूती वस्त्र , सिल्क के सामान , ढाका का मलमल , अहमदाबाद का brocades , rugs , सिंध की pottery , ज्वेलरी , मेटल वर्क , और Lapidary Work , एशिया मे ही प्रसिद्ध नहीं थे , बल्कि उत्तरी अफ्रीका और एउरोप के बड़े बाज़ारों मे भी प्रसिद्ध थे /
क्या हुआ उन निर्माताओं का ?? उनमे से ज्यादातर लोग एकदम विनष्ट हो चुके हैं / सैकड़ों गाव और कस्बे जहां इन उद्योगों को चलाया जाता था , प्रायः अब जनता वहाँ से पलायन कर चुकी है , और लाखों करोनो लोग जो इन उद्योगों पर निर्भर थे , अब वे तितर बितर होकर उन्हीं जमीन पर लौटने को विवश हो गए हैं , जो पहले से ही गरीब किसानों के निर्वहन के लिए कम पड़ रही थी /
इसका क्या एक्सप्लनेशन है ?
ग्रेट ब्रिटेन को भारत का बाजार चाहिए था / ब्रिटिश निर्माताओं को यहाँ तब तक कोई प्रवेश नहीं मिल सकता था जब तक भारत खुद के उत्पादों से अपनी आवश्यकता पूरी कर रहा था / इसलिए भारत के उत्पाद निर्माण करने वालों की बलि देना आवश्यक था / इंग्लैंड के हाथ मे सत्ता और ताकत थी , इसलिए उसने ऐसे टैरिफ और एक्साइज़ कानून बनाए जिससे भारत के निर्माताओं को नष्ट किया जा सके और , यहाँ का बाजार मैंचेस्टर और बर्मिंघम के उत्पादों के लिए सुरक्शित किया जा सके / भारत उन टैरिफ कानूनों के खिलाफ काउंटर टैरिफ कानून नहीं बना पाया क्योंकि वो विजेताओं ( अंग्रेज़ ) की दया पर निर्भर था / ये सत्य है कि भारत मे थोड़ा बहुत उत्पाद कार्य दुबारा शुरू हो रहा हैं / कॉटन जूट और ऊन की मिलें और अन्य मिलें भी , कई शहरों मे काफी संख्या मे स्थापित हो रही हैं और सक्रिय हैं / लेकिन उनकी भारत के लिए उपयोगिता संदेहास्पद है / जो धन वैभव ये मिलें कमा रही हैं , उसका फायदा , भारतीयों को एकदम नहीं मिल रहा है, यदि इसकी तुलना भारत के पूर्व समय काल के खुद के उत्पादन से किया जाय तो ; इन मिलों से इसके मालिकों और कुछ पूजीपतियों की ही कमाई हो रही है , जिसमे ज़्यादातर ब्रिटिश हैं / ये अलग बात है कि इन मिलों मे काफी भारतीयों को रोजगार मिल रहा है ; लेकिन ज्यादातर लोग बहुत कम वेतन पर , ज्यादा समय तक , अस्वच्छ अवस्था मे काम कर रहे हैं , और अमानवीय स्थिति मे निवास कर रहे हैं /
J Sunderland पेज 16 - 17

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