दलित चिंतकों और वामपंथियों को मिथकों मे वर्णित घटनाओ को इतिहास का हिस्सा घोसित करने का बड़ा शौक है / लेकिन मुझे मालूम है कि इंका मानसिक स्तर इतना विकसित नहीं है कि ये #मिथक और #mythology कि परिभासा भी बता सकें /
इनको इतिहास की सच्चाई से वाकिफ करा रहा हूँ / चुनौती देता हूँ कि इस ऐतिहासिक सच्चाई को किस #मनुस्मृति से व्याख्यायित करेंगे / 1928 मे जब #बाबा_जी साइमन कमिसन को #depressed_class की व्याख्या का रहस्य खोल रहे थे , तो एक अमेरिकी विद्वान भारत को आर्थिक और सामाजिक सच्चाईयों का दस्तावेज़ इकट्ठा कर तात्कालिक स्थिति का खाका खींच रहा था /
देखिये J SUNDERLAND क्या लिख रहे हैं ? इसकी व्याख्या करें जरा विद्वान मित्रों /
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भारत के इस भयानक गरीबी का तीसरा कारण सरकार पर होने वाला पूर्णतः अनावश्यक विशाल खर्च है / भारत के आर्थिक स्थिति पर लिखने वाले लेखक प्रायः इस बात की चर्चा करते हैं तो इस तथ्य की तरफ इंगित करते हैं कि ये दुनिया की सबसे खर्चीली और मंहगी सरकार है / वस्तुतः कारण बहुत सीधा सादा है ; क्योंकि यह सरकार सुदूर देश के लोगों द्वारा चलायी जा रही है न कि खुद यहाँ के लोगों द्वारा चलायी जा रही है / ये विदेशी लोग , जिनहोने सत्ता की सारी ताकत अपने हांथों मे ले रखा है , जिसमे यह तथ्य भी शामिल है कि अपनी मनमर्जी मुताबिक कितने भी ऑफिस खोलें जा सकते हैं , और उनमे अपने लोगों को अपनी खुसी से कितना वेतन दिया जा सकता है , स्वाभाविक रूप से इन विभागों की अक्सर न संख्या कम होगी और न ही वेतन या पेन्सन कम होगा / भारत मे सारे बड़े ऑफिसर प्रायः ब्रिटिश ही हैं / तथ्यात्मक रूप से सिविल सर्विसेस का रास्ता भारतीयों के लिए नाम मात्र के लिए ही खुला हुआ है /( इस बात का वर्णन दादा भाई नौरोजी , गेनेश देउसकर और विल दुरान्त ने भी किया है ) भारतीयो पर इतने प्रतिवान्ध लगाए गयें हैं कि वे प्रायः सबसे निचले दर्जे और कम वेतन की नौकरियाँ ही पा पाते हैं / इन विदेशी सिविल सेरवेंट और ऊंचे पदों पर नियुक्त अधिकारियों की विशाल फौज का वेतन , और उनके कार्यकाल समाप्त होने के बाद उनको दिया जाने वाला पेन्सन ; जिसका खर्च भारत के लोगों को उठाना पड़ता है , वो बहुत विशाल है / अगर 90 प्रतिशत न भी कहें तो कम से कम 75 प्रतिशत जो अच्छी सरकारी सेवाएँ है , उनको उनको और बेहतर तरीके से , आज के दिन (सरकार के ऊपर ) आने वाले खर्च की तुलना मे बेहद कम खर्च मे उपलब्ध कराया जा सकता है , यदि उन पदों पारा पढे लिखे और योग्य भारतीयों को नियुक्त किया जाय , जो इस देश की आवश्यकता को बेहतर तरीके से समझ सकते हैं ; और यह निर्विवाद और आँख से दिखने वाला सत्य है / लेकिन ये ब्रिटिश के उद्देश्यों को पूरा नहीं करता , जो इन विलासी और वैभवशाली पदो को अपने बेटों के लिए सुरक्षित रखना चाहता है / इसलिए करोणों गरीब भारतीय किसानों को , दिन प्रति दिन बढ़ती जा रही इन विदेशी अफसरों की फौज के वेतन और पेन्सन का इंतजाम करने हेतु ,अपना खून पसीना एक करना और भूंख से मरना आवश्यक है / और , ये सर्वविदित है , कि इन दिये गए वेतनों का ज़्यादातर हिस्सा और पूरा का पूरा पेन्सन , पेरमानेंट रूप से भारत से बाहर चला जाता है /
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भारत के इस भयानक गरीबी का तीसरा कारण सरकार पर होने वाला पूर्णतः अनावश्यक विशाल खर्च है / भारत के आर्थिक स्थिति पर लिखने वाले लेखक प्रायः इस बात की चर्चा करते हैं तो इस तथ्य की तरफ इंगित करते हैं कि ये दुनिया की सबसे खर्चीली और मंहगी सरकार है / वस्तुतः कारण बहुत सीधा सादा है ; क्योंकि यह सरकार सुदूर देश के लोगों द्वारा चलायी जा रही है न कि खुद यहाँ के लोगों द्वारा चलायी जा रही है / ये विदेशी लोग , जिनहोने सत्ता की सारी ताकत अपने हांथों मे ले रखा है , जिसमे यह तथ्य भी शामिल है कि अपनी मनमर्जी मुताबिक कितने भी ऑफिस खोलें जा सकते हैं , और उनमे अपने लोगों को अपनी खुसी से कितना वेतन दिया जा सकता है , स्वाभाविक रूप से इन विभागों की अक्सर न संख्या कम होगी और न ही वेतन या पेन्सन कम होगा / भारत मे सारे बड़े ऑफिसर प्रायः ब्रिटिश ही हैं / तथ्यात्मक रूप से सिविल सर्विसेस का रास्ता भारतीयों के लिए नाम मात्र के लिए ही खुला हुआ है /( इस बात का वर्णन दादा भाई नौरोजी , गेनेश देउसकर और विल दुरान्त ने भी किया है ) भारतीयो पर इतने प्रतिवान्ध लगाए गयें हैं कि वे प्रायः सबसे निचले दर्जे और कम वेतन की नौकरियाँ ही पा पाते हैं / इन विदेशी सिविल सेरवेंट और ऊंचे पदों पर नियुक्त अधिकारियों की विशाल फौज का वेतन , और उनके कार्यकाल समाप्त होने के बाद उनको दिया जाने वाला पेन्सन ; जिसका खर्च भारत के लोगों को उठाना पड़ता है , वो बहुत विशाल है / अगर 90 प्रतिशत न भी कहें तो कम से कम 75 प्रतिशत जो अच्छी सरकारी सेवाएँ है , उनको उनको और बेहतर तरीके से , आज के दिन (सरकार के ऊपर ) आने वाले खर्च की तुलना मे बेहद कम खर्च मे उपलब्ध कराया जा सकता है , यदि उन पदों पारा पढे लिखे और योग्य भारतीयों को नियुक्त किया जाय , जो इस देश की आवश्यकता को बेहतर तरीके से समझ सकते हैं ; और यह निर्विवाद और आँख से दिखने वाला सत्य है / लेकिन ये ब्रिटिश के उद्देश्यों को पूरा नहीं करता , जो इन विलासी और वैभवशाली पदो को अपने बेटों के लिए सुरक्षित रखना चाहता है / इसलिए करोणों गरीब भारतीय किसानों को , दिन प्रति दिन बढ़ती जा रही इन विदेशी अफसरों की फौज के वेतन और पेन्सन का इंतजाम करने हेतु ,अपना खून पसीना एक करना और भूंख से मरना आवश्यक है / और , ये सर्वविदित है , कि इन दिये गए वेतनों का ज़्यादातर हिस्सा और पूरा का पूरा पेन्सन , पेरमानेंट रूप से भारत से बाहर चला जाता है /
XI
एक और भार जो भारतीयों के को जबरन बहन करने को मजबूर किया गया है ,जो इस देश को दरिद्रता की ओर धकेल रहा है , वो है इस सरकार की सेना पर होने वाला खर्च / मैं इस सेना के रखे जाने का उलाहना नहीं दे रहा हू क्योंकि सीमाओं की सुरक्षा के लिए इस सेना का रखा जाना आवश्यक हो सकता है / लेकिन भारतीय सेना को देश की आवश्यक सुरक्षा से बहुत दूर रखा जा रहा है / भारत को (ब्रिटिश ) साम्राज्य की सेना के लिए सैनिक सिलैक्ट करने और उनके ट्रेनिंग कंप की तरह इस्तेमाल क्या जा रहा है , जिनकी सेवाएँ सुदूर भूमि ( विदेश ) मे ली जाती है – एशिया के अनेकों स्थानों पर , अफ्रीका मे ,समुद्री टापुओं , और यहाँ तक कि यूरोप मे भी / भारत के बाहर अनेकों युद्ध और अभियान चलाये जाते हैं , जिसका ज़्यादातर खर्च भारत को उठाने को मजबूर किया जाता है / इन विदेशी युद्धों और अभियानों मे – जिंका एकमात्र उद्देश्य ब्रिटिश साम्राज्य का विस्तार और विजय अभियान है ,जिनसे भारत और भारतीयो का कोई लेना देना नहीं है , न ही उनसे इनको कोई लाभ मिलता है ---- पिछली शताब्दी मे भारत को ( इन अभियानों हेतु ) वृहद मात्रा मे 450, 000, 000 डॉलर (45 करोन डॉलर ) चुकाना पड़ा था / इसमे यूरोप मे 1914 -1918 के बीच हुये यूद्ध् का खर्चा नहीं जुड़ा है / इन युद्धों मे 1,401,350 भारतीय सैनिक और नागरिकों को अपनी जान गवानी पड़ी / ( ये सरकारी दस्तावेज़ के आकडे है ) भारत को अपनी दरिद्रता के बावजूद भीसन 100,000,000 स्टरलिंग (500,000,000 डॉलर ) (50 करोड़ ) चुकाना पड़ा / विश्व मे इसको " उपहार " के तौर पर घोसित किया गया , जो कि सच नहीं है / तथ्य ये है कि इसको भारतीयों से जबर्दस्ती वसूला गया , और इससे हर भारतीय परिचित है / पूरा धन मात्र इतना ही नहीं है , जिससे दुनिया नावाकिफ है / भारत से दिया जाने वाला ( जबर्दस्ती , दबाव बनकर ) कुल धन, जिसको कि भिन्न भिन्न नामों से दी गई ---- अनुमानित अतिरिक्त राशि 500.000.000 डॉलर है / इस तरह के कितने बोझ भारतीय#बिना_विनष्ट हुये उठा सकते हैं ??
एक और भार जो भारतीयों के को जबरन बहन करने को मजबूर किया गया है ,जो इस देश को दरिद्रता की ओर धकेल रहा है , वो है इस सरकार की सेना पर होने वाला खर्च / मैं इस सेना के रखे जाने का उलाहना नहीं दे रहा हू क्योंकि सीमाओं की सुरक्षा के लिए इस सेना का रखा जाना आवश्यक हो सकता है / लेकिन भारतीय सेना को देश की आवश्यक सुरक्षा से बहुत दूर रखा जा रहा है / भारत को (ब्रिटिश ) साम्राज्य की सेना के लिए सैनिक सिलैक्ट करने और उनके ट्रेनिंग कंप की तरह इस्तेमाल क्या जा रहा है , जिनकी सेवाएँ सुदूर भूमि ( विदेश ) मे ली जाती है – एशिया के अनेकों स्थानों पर , अफ्रीका मे ,समुद्री टापुओं , और यहाँ तक कि यूरोप मे भी / भारत के बाहर अनेकों युद्ध और अभियान चलाये जाते हैं , जिसका ज़्यादातर खर्च भारत को उठाने को मजबूर किया जाता है / इन विदेशी युद्धों और अभियानों मे – जिंका एकमात्र उद्देश्य ब्रिटिश साम्राज्य का विस्तार और विजय अभियान है ,जिनसे भारत और भारतीयो का कोई लेना देना नहीं है , न ही उनसे इनको कोई लाभ मिलता है ---- पिछली शताब्दी मे भारत को ( इन अभियानों हेतु ) वृहद मात्रा मे 450, 000, 000 डॉलर (45 करोन डॉलर ) चुकाना पड़ा था / इसमे यूरोप मे 1914 -1918 के बीच हुये यूद्ध् का खर्चा नहीं जुड़ा है / इन युद्धों मे 1,401,350 भारतीय सैनिक और नागरिकों को अपनी जान गवानी पड़ी / ( ये सरकारी दस्तावेज़ के आकडे है ) भारत को अपनी दरिद्रता के बावजूद भीसन 100,000,000 स्टरलिंग (500,000,000 डॉलर ) (50 करोड़ ) चुकाना पड़ा / विश्व मे इसको " उपहार " के तौर पर घोसित किया गया , जो कि सच नहीं है / तथ्य ये है कि इसको भारतीयों से जबर्दस्ती वसूला गया , और इससे हर भारतीय परिचित है / पूरा धन मात्र इतना ही नहीं है , जिससे दुनिया नावाकिफ है / भारत से दिया जाने वाला ( जबर्दस्ती , दबाव बनकर ) कुल धन, जिसको कि भिन्न भिन्न नामों से दी गई ---- अनुमानित अतिरिक्त राशि 500.000.000 डॉलर है / इस तरह के कितने बोझ भारतीय#बिना_विनष्ट हुये उठा सकते हैं ??
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