Friday, 15 May 2015

स्वधर्मों was replaced by Law by Pirates : Will Durant:1930; The Case for India

आचार्य कौटिल्य कहते है – स्वधर्मो ब्रांहनस्य अध्ययनम अद्ध्यापनम यजनम याजनम दानम प्रतिगहश्वेति /क्षत्रियस्य अद्ध्ययनम यजनम दानम शस्त्राजीवो भूतरक्षणम च /वैश्यस्य अध्ययनम यजनम दानम कृशिपाल्ये वाणिज्या च/शूद्रश्य द्विजात्शुश्रूषा वार्ता वार्ता कारकुशीलवकर्म च /
 धर्मो अर्थात अपने धर्मानुसार ,अपनी इच्छा से , अपने विवेक से , अपने धर्म का पालन करें /ज़ोर जबर्दस्ती नहीं है, न समाज की तरफ से सरकार की तरफ से क्योंकि ये कौटिल्य का G O हैं यानि सरकारी परवाना छपा है/ धर्म का अर्थ रिलीजन नहीं है ये आप सब जानते हैं और अगर नहीं जानते तोhttps://www.facebook.com/…/difference_between_dharma_and_re… पढे /
जब आप मातृधर्म पित्रधर्म राष्ट्रधर्म पुत्रधर्म जैसे शब्दों का प्रयोग कराते है तो धरम का अर्थ कर्तव्य होता है / आज लोकतन्त्र मे जब न्यायपालिका संसद सेना और कार्यकारिणी हैं सबके कर्तव्य ही तो निर्धारित किया गए हैं संविधान ने / तो वर्ण व्यवस्था आधुनिक लोकतन्त्र की जननी ही तो है / लेकिन कर्तव्य कि जगह इसमे अधिकारों को वरीयता दी गयी /
भारतीय संविधान  मे मौलिक अधियाकरों पर लगभग 12 से ज्यादा आर्टिक्ल हैं जो डॉ अंबेडकर ने अमेरिका के संविधान से bill of Rights से उठाकर चेंप दिया / कर्तव्य और मौलिक कर्तव्यों पर एक भी आर्टिक्ल नहीं है संविधान मे / बहुत बाद मे आर्टिक्ल 51 के एक भाग मे इसको जोड़ा गया , वो भी उसका पालन बाध्यकारी नहीं है / इसलिए जेब धर्म ( कर्तव्यों ) से निर्पेक्ष्य संविधान से भारत मे शासन चल रहा है तो नीति-अनीति ,धर्म-अधर्म की बात क्यों करते हो बे ?
अब सिर्फ ये बात करो की संवैधानिक है कि असंवैधानिक : कानूनी है कि गैरकानूनी

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