Annie Besant's Comparison of "British one tenth submerged" and "India's "Generic One Sixth Depressed Class". Both are the Same
ये एक ऐतिहासिक डॉक्यूमेंट हैं जो आंबेडकर साहित्य का हिस्सा है / डॉ आंबेडकर ने जिस एनी बेसेंट को उद्धृत कर "अछूत समूह " की स्थापना किया था , और गांधी और काँग्रेस को अछूतो की अशिक्षा और और दुर्दशा के लिए जिम्मेदार थराया था / उसी तथ्य को मैं एक नए नजरिये से पेश कर रहा हूँ /
डॉ आंबेडकर ने शूद्र , अतिशूद्र अछूत भंगी आदि शब्दों को एक जगह जोड़कर उनको अछूत की संज्ञा दी / वस्तुतः दिया नहीं बल्कि ब्रिटिश अधिकारीयों और लेखकों के द्वारा परिभाषित डिप्रेस्ड क्लास का हिंदी अनुवाद किया , क्योंकि गांधी द्वारा प्रदत्त "हरिजन" सम्बोधन को नकारना था /अब एक नजर नयी रेसेअर्चेस के जरिये इस स्टेटमेंट को समझने की कोशिश करते हैं /Angus Madison ने "वर्ल्ड इकनोमिक हिस्ट्री " नामक एक शोधग्रंथ प्रकाशित किया 2000 AD में जिसमें उसने 0AD से 2000AD तक का विश्व का आर्थिक इतिहास पर शोध किया है / उसके अनुसार 0AD से 1750 तक भारत पुरे विश्व की कुल जीडीपी का 25 प्रतिशत के आसपास की जीडीपी का हिस्सेदार रहा है (मुग़ल अत्याचार और लूटपाट के बावजूद ) जबकि 1750 में ब्रिटेन और अमेरिका दोनों की मिलकर मात्र 2 प्रतिशत GDP का हिस्सेदार था / 1900 आते आते ब्रिटिश लूट और भारतीय उद्योंगो का विनाश के कारन मामला एक दम upside down / भारत की जीडीपी बचाती है मात्र 2 प्रतिशत और ब्रिटेन और अमेरिका 42 प्रतिशत GDP के हिस्सेदार / पॉल कैनेडी की बुक राइज एंड फॉल ऑफ़ ग्रेट पावर्स में में पॉल बैरोच नामक इकोनॉमिस्ट के अनुसार भारत में पैर कैपिटा इनकम भयानक कमी आयी / वही जहाँ 1750 percapita industrialisation जहाँ भारत और इंग्लॅण्ड का लगभग एक बराबर होता है , 1900 में ब्रिटेन की percapita industrialisation में 1000 प्रतिशत का इजाफा होता है , वहीं भारत में percapita industrialisation में लगभग 87.5% की कमी आती हैं / इस बात की पुस्टि 1853 में कार्ल मार्क्स के छपे एक लेख से भी की जा सकती है जिसमे उसने लिखा है कि 1815 में जहाँ धक में डेढ़ लाख अर्टिसन निवास करते थे , 1835 आते आते मात्र 20 हजार अर्टिसन बचते हैं /यानि जहाँ एक तरफ भारत का अर्टिसन बेरोजगार और बेघर हो रहा है , इन १५० वर्षों में वहीँ इंग्लैंड के लोग रोजगार युक्त हो रहें है /अब इस तथ्य को एनी बेसेंट के स्टेटमेंट की तराज़ू पर तौलें / तो पाएंगे कि १९१७ में इंग्लैंड में industrialisation कि क्रांति के बावजूद देश का एक तबका जिसको एनी बेसेंट ने इंग्लैंड के "one टेंथ submerged जनसँख्या की तुलना " भारत के बेरोजगार और बेघर हुए " जेनेरिक one sixth depressed क्लास " से करती हैं , जिनकी आर्थिक सामजिक , शैक्षणिक और जीवन पालन करने का तरीका एक जैसा ही हैं / आपको क्या ये आर्थिक व्याख्या उचित नहीं प्रतीत होती ??? डायरेक्ट एविडेंस के बजाय आप अछूतों और शूद्रों को स्मृतियों और वेदों में खोजने लगते हैं /
अमिय बघची पॉल बाइरोच गांधी और विल दुरान्त सखाराम देउसकर सबके सब इस बात को प्रमाण क साथ लिखते हैं कि भारत की 20 प्रतिशत आबादी handicraft पर निर्भर थी और जब भारत का उद्योग नष्ट कर दिया गया तो उनका क्या हाल हुआ ?
इस पर मनुस्मृति मौन है /
उनमे से 2.5 करोड़ लोग 1875 से 1900 के बीच अन्न के अभाव मे मौत का शिकार हो जाते हैं , जो बचते है , वे या तो गाव की शरण मे जाते है तो कृषि पर आधारित लोगों की संख्या 70 प्रतिशत से बढ़कर 90 प्रतिशत हो जाती है / या फिर overtaxation के बोझ से बचने के लिए शहरों की तरफ भागे जहां 1930 मे 14 लाख लोगों को खदानों और मिलों मे काम मिला , लेकिन वहाँ भी काम मिलना आसान नहीं था क्योंकि इन जगहों पर महिलाओं और बालश्रमिकों की आबादी 30 प्रतिशत के आसपास थी, - यदि शौभाग्यशाली हुये तो उनको गोरों का मैला उठाने का काम मिला , क्योंकि गुलाम अगर इतने सस्ते हों तो शौचालय कौन बनवाए / बाकी बेघर बेरोजगार और जिंदा बचे लोग किस स्थिति मे रहने को बाध्य हुये होंगे - असौच वस्त्रहीन भूखे नंगे भारतीय /
गांधी ने उनकी दुर्दशा पर मलहम लगाने के लिए उनको हरिजन कहा , लेकिन अंबेडकर झोलछाप इसाइयों को पढ़कर ये बताया कि - ब्रांहड़ों की शाजिश के कारण वेदों मे पुरुषोक्त घुसेड़ा गया , और उसके अनुसार चूंकि शूद्र उस पुरुष यानि ब्रम्ह के पैडों से पैदा हुआ इसलिए उसे 3000 साल से menial Job अलोट किया गया / उनको ये नाही ज्ञात था कि ब्रामहन भी उसी ब्रम्ह यानि पुरुष के चरणों (यानि शूद्र ) की ही पूजा करता है , और न ये बताया कि उसी पुरुष के पैरो से हरिण्यगर्भा धरती का निर्माण हुआ जिस पर सुबह उठकर पैर रखने के पूर्व उससे क्षमा मांगा जाता है कि - धरती माँ मुझे अपना पैर तुम्हारे ऊपर रखने के लिए क्षमा करना /
अंबेडकर को भारत के अर्थ की रीढ़ रहे वंशजों को कुंठा आत्महीनता घृणा और निराशा के अंधकूप मे धकेलने के लिए उनसे क्षमा मांगनी चाहिए /
ये एक ऐतिहासिक डॉक्यूमेंट हैं जो आंबेडकर साहित्य का हिस्सा है / डॉ आंबेडकर ने जिस एनी बेसेंट को उद्धृत कर "अछूत समूह " की स्थापना किया था , और गांधी और काँग्रेस को अछूतो की अशिक्षा और और दुर्दशा के लिए जिम्मेदार थराया था / उसी तथ्य को मैं एक नए नजरिये से पेश कर रहा हूँ /
डॉ आंबेडकर ने शूद्र , अतिशूद्र अछूत भंगी आदि शब्दों को एक जगह जोड़कर उनको अछूत की संज्ञा दी / वस्तुतः दिया नहीं बल्कि ब्रिटिश अधिकारीयों और लेखकों के द्वारा परिभाषित डिप्रेस्ड क्लास का हिंदी अनुवाद किया , क्योंकि गांधी द्वारा प्रदत्त "हरिजन" सम्बोधन को नकारना था /अब एक नजर नयी रेसेअर्चेस के जरिये इस स्टेटमेंट को समझने की कोशिश करते हैं /Angus Madison ने "वर्ल्ड इकनोमिक हिस्ट्री " नामक एक शोधग्रंथ प्रकाशित किया 2000 AD में जिसमें उसने 0AD से 2000AD तक का विश्व का आर्थिक इतिहास पर शोध किया है / उसके अनुसार 0AD से 1750 तक भारत पुरे विश्व की कुल जीडीपी का 25 प्रतिशत के आसपास की जीडीपी का हिस्सेदार रहा है (मुग़ल अत्याचार और लूटपाट के बावजूद ) जबकि 1750 में ब्रिटेन और अमेरिका दोनों की मिलकर मात्र 2 प्रतिशत GDP का हिस्सेदार था / 1900 आते आते ब्रिटिश लूट और भारतीय उद्योंगो का विनाश के कारन मामला एक दम upside down / भारत की जीडीपी बचाती है मात्र 2 प्रतिशत और ब्रिटेन और अमेरिका 42 प्रतिशत GDP के हिस्सेदार / पॉल कैनेडी की बुक राइज एंड फॉल ऑफ़ ग्रेट पावर्स में में पॉल बैरोच नामक इकोनॉमिस्ट के अनुसार भारत में पैर कैपिटा इनकम भयानक कमी आयी / वही जहाँ 1750 percapita industrialisation जहाँ भारत और इंग्लॅण्ड का लगभग एक बराबर होता है , 1900 में ब्रिटेन की percapita industrialisation में 1000 प्रतिशत का इजाफा होता है , वहीं भारत में percapita industrialisation में लगभग 87.5% की कमी आती हैं / इस बात की पुस्टि 1853 में कार्ल मार्क्स के छपे एक लेख से भी की जा सकती है जिसमे उसने लिखा है कि 1815 में जहाँ धक में डेढ़ लाख अर्टिसन निवास करते थे , 1835 आते आते मात्र 20 हजार अर्टिसन बचते हैं /यानि जहाँ एक तरफ भारत का अर्टिसन बेरोजगार और बेघर हो रहा है , इन १५० वर्षों में वहीँ इंग्लैंड के लोग रोजगार युक्त हो रहें है /अब इस तथ्य को एनी बेसेंट के स्टेटमेंट की तराज़ू पर तौलें / तो पाएंगे कि १९१७ में इंग्लैंड में industrialisation कि क्रांति के बावजूद देश का एक तबका जिसको एनी बेसेंट ने इंग्लैंड के "one टेंथ submerged जनसँख्या की तुलना " भारत के बेरोजगार और बेघर हुए " जेनेरिक one sixth depressed क्लास " से करती हैं , जिनकी आर्थिक सामजिक , शैक्षणिक और जीवन पालन करने का तरीका एक जैसा ही हैं / आपको क्या ये आर्थिक व्याख्या उचित नहीं प्रतीत होती ??? डायरेक्ट एविडेंस के बजाय आप अछूतों और शूद्रों को स्मृतियों और वेदों में खोजने लगते हैं /
अमिय बघची पॉल बाइरोच गांधी और विल दुरान्त सखाराम देउसकर सबके सब इस बात को प्रमाण क साथ लिखते हैं कि भारत की 20 प्रतिशत आबादी handicraft पर निर्भर थी और जब भारत का उद्योग नष्ट कर दिया गया तो उनका क्या हाल हुआ ?
इस पर मनुस्मृति मौन है /
उनमे से 2.5 करोड़ लोग 1875 से 1900 के बीच अन्न के अभाव मे मौत का शिकार हो जाते हैं , जो बचते है , वे या तो गाव की शरण मे जाते है तो कृषि पर आधारित लोगों की संख्या 70 प्रतिशत से बढ़कर 90 प्रतिशत हो जाती है / या फिर overtaxation के बोझ से बचने के लिए शहरों की तरफ भागे जहां 1930 मे 14 लाख लोगों को खदानों और मिलों मे काम मिला , लेकिन वहाँ भी काम मिलना आसान नहीं था क्योंकि इन जगहों पर महिलाओं और बालश्रमिकों की आबादी 30 प्रतिशत के आसपास थी, - यदि शौभाग्यशाली हुये तो उनको गोरों का मैला उठाने का काम मिला , क्योंकि गुलाम अगर इतने सस्ते हों तो शौचालय कौन बनवाए / बाकी बेघर बेरोजगार और जिंदा बचे लोग किस स्थिति मे रहने को बाध्य हुये होंगे - असौच वस्त्रहीन भूखे नंगे भारतीय /
गांधी ने उनकी दुर्दशा पर मलहम लगाने के लिए उनको हरिजन कहा , लेकिन अंबेडकर झोलछाप इसाइयों को पढ़कर ये बताया कि - ब्रांहड़ों की शाजिश के कारण वेदों मे पुरुषोक्त घुसेड़ा गया , और उसके अनुसार चूंकि शूद्र उस पुरुष यानि ब्रम्ह के पैडों से पैदा हुआ इसलिए उसे 3000 साल से menial Job अलोट किया गया / उनको ये नाही ज्ञात था कि ब्रामहन भी उसी ब्रम्ह यानि पुरुष के चरणों (यानि शूद्र ) की ही पूजा करता है , और न ये बताया कि उसी पुरुष के पैरो से हरिण्यगर्भा धरती का निर्माण हुआ जिस पर सुबह उठकर पैर रखने के पूर्व उससे क्षमा मांगा जाता है कि - धरती माँ मुझे अपना पैर तुम्हारे ऊपर रखने के लिए क्षमा करना /
अंबेडकर को भारत के अर्थ की रीढ़ रहे वंशजों को कुंठा आत्महीनता घृणा और निराशा के अंधकूप मे धकेलने के लिए उनसे क्षमा मांगनी चाहिए /
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