Monday 11 May 2015

varna system ?? colour of skin or more than modern democratic institutions / It is classification of duties

वर्ण व्यवस्था शाजिश या आधुनिक लोकतन्त्र की जननी
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#पूर्वपक्ष :

जब यूरोप के ईसाई विद्वानों ने संस्कृत ग्रंथो का अदध्ययन किया तो विलियम जोहन्स ने 19वी शताब्दी के अंत मे बताया कि संस्कृत latin और ग्रीक से भी भव्य भाषा है / बाद मे इस को सारी यूरोपीय भाषाओं कि जननी घोषित किया / बाद मे अनेक ईसाई विद्वान आए जिनहोने संस्कृत ग्रन्थों से भारतीय परंपरा को समझने कि कोशिश की और फिर उसका विश्लेषण किया लेकिन मासूमियत मे या शाजिसन उसको अपनी रीति रिवाज और बाइबल के धर्मसिद्धांतों के अनुरूप उसकी व्याख्या भी की /

उनका पहला शिकार बना वर्ण व्यवस्था / उन्होने बताया कि वर्ण अर्थात चमड़ी का रंग / और उसी के साथ साथ दक्षिण भारत मे ईसाई अधिकारियों और मिशानरियो ने एक विवेचना की और स्थापित किया कि दक्षिण भारतीय तमिल एक अलग नश्ल थे जिनको #द्रविड़ की संज्ञा दी गई /
 अब एक नयी परिकल्पना मैक्स मुलर ने गढ़ी कि आर्य अर्थात संस्कृत बोलने वाले लोग बाहर से आए और द्रविणों को दक्षिण मे विस्थापित कर दिया / ये आर्य गोरों अंग्रेजों से निम्न थे परंतु काले द्र्विनों से उच्च थे / अब फिर उसमे बताया कि पूरे भारत के तीन वर्ग क्षत्रिय ब्राम्हण वैश्य आर्य अर्थात साफ रंग के थे और शूद्र और द्रविन काले थे / तो जो साफ रंग के थे वो हुये सवर्ण बाकी सब असवर्ण / लेकिन कौटिल्य के अर्थशास्त्रम और अन्य ग्रन्थों के अनुसार सवर्ण और असवर्ण  मात्र शादी  विवाह  के संदर्भ मे  ही उद्धृत है/ अर्थात एक  ही और समान  कुल  समुदाय  मे हये विवाह  को  सवर्ण  और  पृथक पृथक कुल  समुदाय मे होने  वाले  विवाह को  असवर्ण की संज्ञा  दी गई/
लेकिन  आज  समाज  मे   और  राजनीति  मे इसका  अर्थ   किस  रूप  मे प्रयोग  होता है , आप  सब लोग उससे अवगत हैं /

ये तो हुआ संक्षिप्त सारांश : अब इसी आधार पर भारत के जो लोग आर्य थे वो हुये सवर्ण और जो काले शूद्र और द्रविण थे वो हुये असवर्ण बाद मे एक और वर्ण भी जोड़ा गया अवर्ण / तो सवर्ण ; असवर्ण : और अवर्ण
उत्तरपक्ष :
अलुबेर्नी ने 1030 AD मे संस्कृत के बारे मे लिखा कि ये ऐसी भाषा है जिसमे किसी शब्द का अर्थ समझने के लिए उस वाक्य मे उस शब्द के पहले और बाद के शब्दों को , और किस संदर्भ और प्रसंग मे उसका प्रयोग किया जा रहा है ; इसको यदि नहीं समझा गया तो उस शब्द का अर्थ समझ मे नहीं आएगा , क्योंकि एक ही शब्द के कई अर्थ हो सकते हैं /
ईसाई संस्कृतज्ञों ने बताया कि वर्ण यानि चमड़ी का रंग / ठीक है हो सकता है, क्योंकि श्याम वर्ण भारत मे काफी श्रद्धा से जुड़ा हुआ रंग है भगवान राम और कृष्ण दोनों ही श्याम वर्ण के थे /
लेकिन वर्ण का एक अर्थ शब्द भी होता है / तुलसीदास की रामचरीत मानस का प्रथम श्लोक है :
वर्णनामर्थसंघानाम रसानाम छन्दसामपि /
मंगलनाम च कर्तारौ वंदे वाणी विनायकौ //
अर्थात – अक्षरों अर्थसमूहों रसों छंदो और मगल करने वाली सरस्वती और गणेश जी की मैं वंदना करता हूँ /
वर्ण का अर्थ अगर चमड़े का रंग है तो वरणाक्षर का क्या अर्थ है ? वर्णमाला का क्या अर्थ है ?
वर्णध्रर्मआश्रम का क्या अर्थ है ?
वर्ण व्यवस्था मे और वर्णध्रर्मआश्रम मे वर्ण का अर्थ होता है वर्गीकरण / तो किस चीज का वर्गीकरण ?
वर्णधर्मआश्रम में जीवन को चार चरणों मे व्यतीत करने का वर्गिकरण है वर्ण का अर्थ ब्रांहचर्य गृहस्थ वानप्रसथा तथा सन्यास , ये चारा आश्रम हैं /
वर्ण-व्यवस्था : मे भी वर्ण का अर्थ है वर्गीकरण / क्लासिफिकेसन
तो प्रश्न उठता है कि किस चीज का वर्गीकरण ??

आइये समझते हैं / किसी  भी  समाज  के उत्थान के लिए  ज्ञान का  उद्भव  और  उसका प्रसार  और  उसका समाज के  हित  मे  जीवन राज्य  और राष्ट्र की  समृद्धि के  लिए  उपयोग  आवश्यक  है - जो  इन कार्यों मे  रुचि रखेगा  और ज्ञान प्राप्त  करेगा -- उसको ब्रामहन  की संज्ञा दी  जाएगी / लेकिन  ज्ञान  को  प्राप्त करने वाले  को  अपरिग्रही  जीवन व्यतीत करना होगा/
किसी राज्य  या  राष्ट्र मे  जीवन  उपयोगी  वस्तु  अन्न  पशु  पालन  व्यवसाय  और  सर्विस  सैक्टर की आवश्यकता  होती है - जो  इन  कार्यों मे  रुचि रखेगा  और इन कार्यों को संपादित  करेगा  उसे शूद्र की संज्ञा दी जाएगी - आज की  तारीख मे  सर्विस सैक्टर  इंजीनियर  टेक्नोक्रटे  आदि आदि /
किसी  भी  राष्ट्र मे  निर्मित  वस्तुओं को  देश विदेश मे  ले जाकर  क्रय विक्रय की आवश्यकता होती है - जो व्यक्ति  स्वरूचि के  अनुसार  ये काम करेगा - उसे वैश्य  कहा जाएगा /
किसी भी समाज मे  सुशासन हेतु  समाज ज्ञान विज्ञान , निर्माण और  व्यवसाय  के उन्नति  के लिए  इन तीन  वर्गों और राज्य और  राष्ट्र की  रक्षा करने की आवश्यकता होती है - जो व्यक्ति  इस कार्य  को स्वरूचि के अनुसार  करेगा उसको क्षत्रिय की  संज्ञा दी गई /

अब इस  कर्म  आधारित धर्म यानि  कर्तव्य के  वर्गीकरण को  संस्कृत  ग्रन्थों से समझने की कोशिस करते हैं /


गीता मे कृष्ण कहते हैं कि – चतुषवर्ण मया शृष्टि गुणकर्म विभागसः
अर्थात मैंने चारो वर्णों की रचना की है लेकिन गुण और कर्मों के अनुसार / अर्थात जिसके जैसे कार्य होंगे उन्हीं गुणों के आधार पर उनको उस श्रेणी मे रखा जाएगा /
आचार्य कौटिल्य कहते है – #स्वधर्मो ब्रांहनस्य अध्ययनम अद्ध्यापनम यजनम याजनम दानम प्रतिगहश्वेति /
क्षत्रियस्य अद्ध्ययनम यजनम दानम शस्त्राजीवो भूतरक्षणम च /
वैश्यस्य अध्ययनम यजनम दानम कृशिपाल्ये वाणिज्या च/
शूद्रश्य द्विजात्शुश्रूषा वार्ता वार्ता कारकुशीलवकर्म च /
बाकी तो सबको सब पता ही है मैं सिर्फ स्वधर्मों और शूद्र पर लिखूंगा /
स्व धर्मो अर्थात अपने धर्मानुसार ,अपनी इच्छा से , अपने विवेक से ,अपने  एप्टिट्यूड के अनुसार अपने धर्म का पालन करें /ज़ोर जबर्दस्ती नहीं है, न समाज की तरफ से सरकार की तरफ से क्योंकि ये कौटिल्य का G O हैं यानि सरकारी परवाना छपा है/
धर्म का अर्थ रिलीजन नहीं है ये आप सब जानते हैं और अगर नहीं जानते तोhttps://www.facebook.com/…/difference_between_dharma_and_re… पढे /
जब आप मातृधर्म पित्रधर्म राष्ट्रधर्म पुत्रधर्म जैसे शब्दों का प्रयोग कराते है तो धर्म का अर्थ कर्तव्य होता है /

आज लोकतन्त्र मे जब न्यायपालिका संसद सेना और कार्यकारिणी हैं सबके कर्तव्य ही तो निर्धारित किया गए हैं संविधान ने / तो वर्ण व्यवस्था आधुनिक लोकतन्त्र की जननी ही तो है /
और जहां तक जन्मना किसी वर्ण को धारण करने की बात है तो ये कम से कम कौटिल्य के समय तक तो नहीं था /
जन्मना जायते शूद्रः कर्मणाय द्विजः भवति " एक मिथ नहीं एक सच ; प्रमाण कौटिल्य अर्थशास्त्रम्
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आंबेडकर जी के पूर्व के क्रिश्चियन मिशनरियों के लेखक और इतिहासकारों ने ऋग्वेद के पुरुष शूक्त को आधार बनाकर समाज में राजनैतिक और धर्म परिवर्तन के लिहाज से प्रमाणित करने की कोशिश की कि वैदिक काल से ये समाज का वर्गीकरण कर्म आधारित न होकर जन्म आधारित रहा है /
उसी विचार को बाद में मार्क्सिस्टों ने और आंबेडकर वादियों ने आगे बढ़ाया / 1901 की के पूर्व जाति आधारित जनगणना भी नहीं होती थी (पहली जनगणना 1871 में हुयी थी ) बल्कि वर्ण और धर्म के आधार पर होती थी/ 1901 में जनगणना कमिशनर रिसले नामक व्यक्ति ने ढेर सारे त्रुटिपूर्ण तथ्यों और एंथ्रोपोलॉजी को आधार बनाकर 1700 से अधिक जातियों और 43 नाशलों में भारत के हिन्दू समाज को बाटा / वही जनगणना भारतीय हिन्दू समाज का आजतक जातिगत विभाजन का मौलिक आधार है / जाति के इस नियम को उसने "कभी गलत न सेद्ध होने वाला जाति का नियम " बनाया जिसके अनुसारे जिसकी नाक जितनी चौणी वो समाज के हैसियत के पिरामिड मे उतना ही नीचे होगा / और उसले अल्फबेटिकल लिस्ट न बनाकर इसी नाक के सुतवापन और चौड़ाई को मानक मानकर इसी हैसियर के अनुसार लिस्ट बनाई / जो इस लिस्ट ऊपर दर्ज हैं वो हुये ऊंची जाति और जो नीचे हैं वो हुये निचली जाति /

पुनश्च : गीता के -"जन्मना जायते शूद्रः कर्मण्य द्विजः भवति " को इतिहासकार प्रमाण नहीं मानते क्योंकि उनके अनुसार महाभारत एक मिथ है /

लेकिन अभी मैं कौटिल्य अर्थशाश्त्रम् पढ़ रहा था तो एक रोचक श्लोक सामने आया / " दायविभागे अंशविभागः " नामक अध्ह्याय में पहला श्लोक है -"एक्स्त्रीपुत्राणाम् ज्येष्ठांशः ब्राम्हणानामज़ा:, क्षत्रियनामाश्वः वैश्यानामगावह , शुद्रणामवयः "
अनुवाद : यदि एक स्त्री के कई पुत्र हों तो उनमे से सबसे बड़े पुत्र को वर्णक्रम में इस प्रकार हिस्सा मिलना चाहिए : ब्राम्हणपुत्र को बकरिया ,क्षत्रियपुत्र को घोड़े वैश्यपुत्र को गायें और शूद्र पुत्र को भेंड़ें /
दो चीजें स्पस्ट होती हैं की वैदिक काल से जन्म के अनुसार वर्ण व्यस्था नहीं थी क्योंकि कौटिल्य न तो मिथ हैं और न प्रागैतिहासिक / ज्येष्ठपुत्र को कर्म के अनुसार ही हिस्सा मिलता था/ और एक ही मान के पुत्र कर्मानुसार किसी भी वर्ण में जा सकते थे /
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अब शुद्र् के कर्तव्यों के बारे मे जानना हो तो शुश्रूषा यानि सर्विस सैक्टर , और वार्ता जो की विद्या का ही एक अंग है उसमे एक्सपर्ट होना / वार्ता का अर्थ है -https://www.blogger.com/blogger.g…
अब अंत मे सवर्ण असवर्ण और अवर्ण जैसे शब्दों को जानना चाहते है तो पढ़ें -https://www.blogger.com/blogger.g…
ईसाई विद्वानों ने ये तो बताया कि वर्ण यानि चमड़ी का रंग ।लेकिन ये न बताया कि कौन सा रंग ? काला सफ़ेद की पीला ।
तो सवर्ण किस रंग का ?
और असवर्ण किस रंग का ?
अगर असवर्ण माने काला रंग तो हमारे भगवान् राम और कृष्ण तो काले / साँवले ही थे न
तो वो भी असवर्ण ??
यानि पेंच कही और है ।
हाँ सही सोचा आपने ये बाइबिल का लोचा है।

संविधान मे खडयंत्र : ऊपर वर्णित तीन वर्ग ब्रामहन क्षत्रिय और वैश्य , जिनको कि मक्ष्मुल्लर ने आर्य  ( पीले या गहए रंग का : सफ़ेद रंग से नीचे ) होने की कहानी गढ़ी - उनको 1901 मे वर्ण के  बजाय 3 जातियों का  नाम दिया गया / बाकी एन वर्ग शूद्र  मे से  1700 से ऊपर  जातिया  खोजकर , बाद मे उनको SC ST और OBC बनाकर संविधान मे  घुशेड दिया गया /

भारत के संविधान मे ये फर्जी #Aryan_Invasion_Theory घुसेड़ी गई है / जब तक इसका निरीक्षण परीक्षण और शोधन और संशोधन नहीं होगा, भारत खंड खंड मे बंटा रहेगा , और राजनीतिज्ञो कसाइयों  इसाइयों और मर्कसियों का #भारत_तोड़ो_भारत_लूटो अभियान चलता ही रहेगा /

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