Saturday 16 May 2015

अगर ज्यादा उम्मीदवार न हुये तो उसे दिल्ली में काम मिल जता है ; जहाँ वो गोरों का मैला उठाता है /

भारत पिछले 2000 साल से ज्यादा समय से विश्व की जीडीपी का 25% का हिस्सेदार रहा है। अंगुस मद्दिसों और पॉल बरोच जैसे अर्थशास्त्रियों ने व्यापक खोज कर जो डेटा दिया उसके अनुसार 1750 में जहाँ भारत 25% जीडीपी का हिस्सेदार था विश्व जीडीपी का , वहीँ ब्रिटिश और अमेरिका मात्र 2 % जीडीपी का हिस्सेदार थे।
1900 आते आते लूटमार शोषण overtaxation के कारण भारत मात्र 2 % जीडीपी का हिस्सेदार बचा।
इस जीडीपी का बेस घरेलु उद्योग थे। और मैन्युफैक्चरिंग हर घर में होती थी।
अब इस आर्थिक विनाश के कारण 700% लोग deindustrialise हुए , और भारत मात्र एक कृषि आधारित देश बन के रह गया।
उन निर्माताओं और उनके परिवार वालों को बेरोजगारी के कारण क्या क्या करना पड़ा ??
1947 तक तो न जाने कितने और मैन्युफैक्चरर बेघर बेरोजगार हुए होंगे ?
इस विशाल जनसमूह की कंगाली और दुर्दशा का कारण जहाँ डॉ आंबेडकर वेदों और स्मृतियों से खोजकर भारत का बंटाधार किया ; वहीँ Wiil Durant ; जोकि आजतक का सबसे लोकप्रिय और निर्विवाद लेखक ने भारत आकर इसके पीछे के खड्यंत्रों को जानने की कोशिश करता है , और तथ्यों और डॉक्यूमेंट के आधार पर एक पुस्तक लिखता है : The Case For India .
उसी से उद्धृत एक अंश जो आपको अछूत प्रथा की भी झलक दिखायेगा।
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"अगर वो शौभाग्यशाली है तो वह ओवर taxed जमीन को छोड़कर भाग जाता है और शहरों में शरण लेता है / और अगर ज्यादा उम्मीदवार न हुये तो उसे दिल्ली में काम मिल जता है ; जहाँ वो गोरों का मैला उठाता है ; अगर गुलाम सस्ते हों तो शौंचालयों का निर्माण अनावश्यक है "/
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(v) Economic Destruction of India 

भारत की अर्थिक दुर्दशा राजनैतिक शोषण का अपरिहार्य परिणाम है /
एक समान्य यात्री भी कृषि की दुर्दशा ( जिस पर देश की 85 % जनता निर्भर है ) और किसानों की बदहाली को समझ सकता है /वो विदेशी निरंकुश शासकों के धान के खेतों मे नंगे बदन घूमते हिन्दू रैयत को देख सकता है , जिसकी एकमात्र पूंजी उसके कमर में बन्धी धोती है / 1915 मे भारत के सबसे धनी प्रान्त बंगाल के सांख्यकी विभाग ने एक स्वस्थ श्रीर के खेतिहार मजदूर की सालाना आय 3 . 60 डोलर प्रतिमाह गणना की / उसकी झोपदी फूस की बनी है जिसमे दीवार भी नहीं है , या फिर कच्चे घर हैं जिसकी छत घास फूस की मदाद से तैयार किए गए हैं / छ लोंगों के परिवार के पूर घर के लोगों की बर्तन भाडा , कपड़ा लत्ता फर्नीचर आदी को मिलाकर सबकी कीमत 10 डोलर से ज्यादा न होगी / एक किसान अखबार पुस्तेकें , मनोरंजन या तम्बाकू शराब जैसे चीजों को हासिल करने का सामर्थ्य नहीं रखता / उसकी कमाई का आधा हिस्सा सरकार ले लेती है ; और यदी वह टैकस न चुका पाये तो सदियों से अर्जित उसकी और उसके परिवार की सम्पत्ति को सरकार कुर्की (confiscate) कर लेती है /
"अगर वो शौभाग्यशाली है तो वह over taxed जमीन को छोड़कर भाग जाता है और शहरों में शरण लेता है / और अगर ज्यादा उम्मीदवार न हुये तो उसे दिल्ली में काम मिल जता है ; जहाँ वो गोरों का मैला उठाता है ; अगर गुलाम सस्ते हों तो शौंचालयों का निर्माण अनावश्यक है "/ या फिर वो फैक्टरी मे जा सकता है , जहाँ वो अगर शौभाग्यशाली हुवा तो भारत के 1,409,000 (14 लाख 9000) लोगों में से एक हो सकता है / (नोट - ये उस समय फैक्टरियों मे अजीविका प्राप्त लोगों की संख्या है ) / उसको अक्टरियों में भी जगह मिलना असान नहीं है क्योंकी इनमे 33% वर्कर महिलायें हैं और 8% बच्चे हैं / खदानों मे रोजगार प्राप्त लोगों मे 34% महिलायें है जिनमे से आधों को जमीन के नीचे काम करना पड़ता है ; और इन खदानों में 16% वर्कर बच्चे हैं /

Will Durant ; 1930 The Case For India पेज ३० - 31

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