Saturday 16 May 2015

शब्दो की यात्रा : मजबूरी का नाम महात्मा गांधी

शब्दो की यात्रा : मजबूरी का नाम महात्मा गांधी ??

मैंने कल एक पोस्ट डाली थी  – “मजबूरी का नाम महात्मा गांधी ?? ये क्या है ?? “ /
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काफी प्रतिकियाये आयीं / कुछ पक्ष मे ज़्यादातर विरोध मे ; एकाध मित्रों ने  लताड़ा भी / पोस्ट मैंने इसीलिए लगाई ही थी /

लेकिन गांधी के बारे मे अपना विचार व्यक्त करने के पूर्व मैं चाहता हूँ,  कि आप उस समय काल मे भारत का क्या हाल था, इससे अवगत हो लें ; तो गांधी को समझना आसान हो जाएगा / गांधी भारतीय राजनीति मे 1915 के आस पास आए तो गोखले जी की सलाह पर उन्होने 3 वर्षों तक  भारत भ्रमण  करके भारत की असली  तस्वीर को समझने की कोशिश की ;  और उसको समझने के उपरांत  चिंतन मनन करके  जो नीति अपनाया , वो सब सार्वजनिक है / अब पहले भारत के उस समयकाल के बारे मे एक छोटा तथ्य : ---
“ आधुनिक  रेसेर्च बताती है कि 1750 AD तक भारत विश्व के 25 प्रतिशत जीडीपी का मालिक था और इंग्लैंड  मात्र 2 प्रतिशत का / लेकिन समुद्री डकैतों की लूट और मनी drain के कारण 1900 AD आते आते भारत विश्व जीडीपी का  मात्र 2 प्रतिशत का हिस्सेदार बचा और भारत के 700 प्रतिशत एक्सपेर्ट कारकुशीलव शिल्पादि निर्माता बेघर  और बेरोजगार हो गए / गणेश सखाराम देउसकर की 1904 की पुस्तक "देशर कथा" और Will Durant नामक अमेरीकन के 1930 की पुस्तक The Case For India के अनुसार -" 1875 से 1900 के बीच 2 करोड़ भारतवासी अकाल महामारी के चपेट मे अन्नाभाव के कारण  भूंख से मर जाते हैं / ऐसा नहीं था कि अन्न कि कोई कमी थी , अन्न तो उस समय भी भारत से एक्सपोर्ट हो रहा था / बस उस अन्न को खरीदने के लिए भारतीयों कि जेब मे पैसा नहीं था /"
इन बेघर बेरोजगार लोग पेट की ज्वाला शांत करने के लिए विस्थापित होकर गावों और शहरों की ओर भागे ; तो गावों मे तो इनको शरण मिली; झोपड़ी ही सही, लेकिन सिर छुपने के लिए  छत तो  मिला और वे  पेट की ज्वाला की शांति करने के लिए खेतों मे खेतिहर मजदूर बन गए / अब कोई अगर एक पूर्वव्यवस्थित गाव मे बाहर से आएगा तो उसको गाव की परिधि मे ही तो बसाया जाएगा ; ये तो उत्तर हुआ डॉ अंबेडकर के उस प्रश्न का जिसमे वो कहते हैं कि शूद्रों को गाव के बाहर शाजिस के तहत बसाया गया / और जो लोग शहर की ओर भागे ; उनमे से जिनको फ़ैक्टरी  मिल और खदानों मे जगह मिली वो तो उनकी तो बात ही अलग है  , लेकिन बाकी बेघर बेरोजगार  हुये लोगों मे, Wiil Durant के अनुसार -"जो लोग सौभाग्यशाली थे उन्हे गोरों का मैला उठाने का (Menial ) जॉब मिला क्योंकि गुलाम यदि सस्ते हों तो शौचालय बनवाने  की  जहमत कौन पाले "/ ये जबाव है डॉ अंबेडकर के -" Shudras were alotted मेनियाल जॉब / क्योंकि उनका जन्म वेदों मे वर्णित पुरुष के पैरों से हुआ " / अब देखिये भारत का इकनॉमिक मोडेल क्या था ; समाज का एक वर्ग मात्र एक ही कार्य विशेषज्ञता के साथ करता था, जिसको यूरोपियन इसाइयों ने caste कहा / उदाहरण स्वरूप नूनिया यानि नमक का निर्माता , रंगरेज यानि कपड़ो को रंगने वाला , सुनार लोहार तेली धुनिया बुनकर नाई कुंभकार शिल्पकार और मुसहर (नूनिया थे ) , बेड़िया ( ट्रांसपोर्टर ) आदि आदि / यही कारकुशीलव भारत के आर्थिक मोडेल की नीव  था जिसके दम पर रोमन काल से 1750 तक भारत एक एक्स्पोर्टर देश बना हुआ था / इसी मोडेल को  एडम स्मिथ ने  ‘ वैल्थ ऑफ नेशन ” मे वर्णन किया है , शायद भारत के आर्थिक मोडेल को पढ़कर , जिसको फादर ऑफ मॉडर्न इकॉनमी के नाम से बुलाते हैं / एक और बानगी : हैमिल्टन बूचनन ने 1807 मे लौह उत्पादन का वर्णन करते हुये लिखा है कि उत्पादन कार्य मे संलग्न सभी लोगों का , प्रोपरिटेर ( मालिक) से लेकर बैलगाड़ी वाले का , हथौड़ा चलाने वाले का, भट्टी मे कोयला झोंकने वाले का , सभी लोगों का अंतिम उत्पाद मे equitable हिस्सा होता था / “”
गांधी भारत के एकमात्र नेता थे , जिनहोने भारत के आर्थिक मोडेल और इतिहास की समझ थी ; इसलिए उन्होने वैकल्पिक अर्थव्यवस्था विकसित करने के लिए चरखा और खादी को पुनर्जीवित किया / विदेशी कपड़ों का वहिसकार  किया / उनकी होली जलायी /
अब “ मजबूरी का नाम महात्मा गांधी “
ये क्या है ?
ये भी मात्र शब्दों की यात्रा या शब्दों की गलत व्याख्या भर  है /
गांधी जी ने जब  भारत की पॉलिटिक्स को जॉइन किया तो कॉंग्रेस पार्टी मात्र शहरों के सुशिक्षित सभी लोगों की पार्टी थी / गांधी जी ने उसको आम जनमानस से जोड़ा / 1921 मे जब गांधी जी बरदौली मे एक लिमिटेड क्षेत्र, जिसकी जनसंख्या मात्र 87,000 थी ; वहाँ पर असहयोग आंदोलन का प्रयोग करने की एक कोशिश की /
लेकिन उसका संदेश पूरे देश मे चला गया और पूरा देश जन आक्रोशित हो गया / उसी मे चौरी चौरा का वो कांड हो गया  जिसमे पुलिस ठाणे मे आधे दर्जन पुलिस वालों को अनदोलन कारियों ने आग मे जला दिया / इस घटना के कारण अहिंसा / बुद्ध के पुजारी गांधी ने आंदोलन तुरंत वापिस लिया /
ये कॉंग्रेस का पहला आंदोलन था, जिसकी गठन 1885 मे हुआ था , वो देशव्यापी हुआ / कॉंग्रेस के अन्य  बड़े नेता जो आंदोलन की इस सफलता से काफी उत्साहित थे ; उन्होने गांधी की आलोचना की उनके मुंह पर कि आप इसको हम सबकी राय के बिना वापस कैसे ले सकते हैं ? गांधी ने कहा कि ये आंदोलन मेरे निर्धारित धर्म और नियमों से भटक गया , इसलिए वापस लिया, अगर  आप लोग चाहे तो दुबारा शुरू कर दे / लेकिन किसी की औकात नहीं थी कि उसको पुनरजीवित कर सके ---इसलिए गांधी को स्वीकारना सब की मजबूरी थी / इस निर्णय के बाद काँग्रेस मे गांधी की  लोकप्रियता काफी घट गई /
“ 1925 के आस पास किसी विदेशी पत्रकार ने पूंछा कि गांधी जी आपकी लोकप्रियता बहुत घट गई है, क्या कारण है ? गांधी जी ने कहा कि – Popularity comes without invitation and goes without farewell . ये मैंने कभी एस॰ गुरुमूर्ती के भाषण मे सुना था ,कि पत्रकारिता के जगत के चमकते सितारे प्रभास जोशी ने उनको “लोकप्रियता”  के संदर्भ बताया था / “

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