Monday 18 May 2015

कास्ट सिस्टम एक नश्ल भेदी सोच और शाजिश की उत्पत्ति : ऊंची और निचली जाति का सच क्या है ??

भारत का आधुनिक कास्ट सिस्टम एक नश्ल भेदी सोच और शाजिश की उत्पत्ति : ऊंची और निचली जाति का सच क्या है ??

 पुर्तगालियों द्वारा 1600 AD  में जात के लिए के लिए Caste शब्द का प्रयोग किया गया / 1901 में जनगणनां Caste के आधार पर पहली बार करता है , और २००० से ज्यादा जातियां , "नेसल बेस इंडेक्स " और सोशल hiearchy , के आधार पर ./ उसने एक unfailing "लॉ ऑफ़ caste " बनाया और बताया कि "भारत में नाक की चौड़ाई किसी व्यक्ति के सामजिक हैसियत सामजिक स्टेटस के inversely proportionate होती है" / दूसरी मह्हत्वपूर्ण बात ये है कि सोशल hierarchy के क्रम जो उसने लिस्ट बनाई उसको अल्फबेटिकल क्रम में न रखकर सोशल hierarchy के आधार पर ऊपर से नीचे कि और लिस्टिंग किया / यहीं से उस ऊंची और निचली या अगड़ी और पिछड़ी जातियों के एक नए सिद्धांत की रचना होती है , जिसके आधार पर सरकारें आज भी काम कर रहीं है / हाल ही में जाटों को पिछड़ी जाति की लिस्ट में शामिल किया जाना सिर्फ इसी नजरिये से व्याख्यायित होता है /

जात कि जाति ???
........................................................................................................
.........................
माँगी नावं न केवट आना ,कहत तुम्हार मर्म मैं जाना ...............................................................................................................

निषाद कहत सुनइ रघुराई ,मैं न लेहूँ प्रभु तेरी उतराई

हमरे कुल की रीति दयानिधि,संत मिले त करब सेवकाई \

रीति छोड़ उनरीति न करिहौं ,मैं न लेहूँ प्रभु तेरी उतराई/

नदी नावं के हमहि खेवैया, औ भवसागर के श्री रघुराई /

तुलसी दास यही वर मांगू , उहवाँ न लागै प्रभु मेरी उतराई /

--जात पांत न्यारी, हमारी न तिहारी नाथ ,

कहबे को केवट , हरि निश्चय उपचारिये

तू तो उतारो भवसागर परमात्मा

औ मैं तो उतारूँ , घाट सुर सरि किनारे नाथ /

नाइ से न नाइ लेत , धोबी न धुलाई लेत

त तेरे से उतराई लेत, कुटुंब से निकारिहयों /

जैसे प्रभु दीनबंधु ,तुमको मैं उतारयो नाथ /

तेरे घाट जैहों नाट मोको भी उतारियों

उहवाँ न लागै प्रभु मेरी उतराई /

मैं न लेहूँ प्रभु तेरी उतराई/.......चुन्नू लाल मिश्रा केवट राम संवाद /

जात कि जाति ???
...एक जात शब्द को तुलसी दास ने बताया था ,,जिसमें केवट ने कहा कि
--रामचन्द्र जी आप और मैं एक ही जात के हैं ,,मैं नदी कि नावं खेता हूँ , और आप
भवसागर की नाव खेते हो , हमारी जात एक ही है ,जैसे नाउ नाउ से , और धोबी
धोबी से पारिश्रमिक नहीं लेता , तो वैसे एक केवट दूसरे केवट से कैसे
पारिश्रमिक ले सकता है / और लिया तो मुझे कुटुंब से बाहर कर दिया जाएगा
/यहाँ तक तो ठीक था /

लेकिन जब हमने जॉन मुइर ,मैक्समूलर ,और M A
शेरिंग पादरी , जैसे संस्कृतविज्ञों इंडोलॉजिस्ट से हम संस्कृत ग्रंथो को
संस्कृत - अंग्रेजी - अंग्रेजी , के क्रम में सीख कर, 1946 " शूद्र कौन थे "
, जैसे ग्रन्थ की रचना करते हैं , और उसकी उत्पत्ति वेदों में खोजने निकल
जाते हैं , तो हमारी मंशा पर भले ही सवाल न खड़े होते हों , लेकिन मेरे
तथ्यपरकता पर तो संदेह की सुई घूम ही जाएगी /
 वेदों से  इसलिए क्योंकि वे बाइबल से बहुत प्रभावित थे और अपने आप को पैगंबर मूसा के समतुल्य मानते थे /
ये बात धनंजय कीर जैसे इतिहासकारों ने डॉ अंबेडकर की बायोग्राफ़ि मे लिखा है /
.......... आज न सही, कल सही ..........................................

उसी तरह पुर्तगालियों द्वारा ,, १६०० में जात के लिए के लिए Caste शब्द का प्रयोग किया गया /
1901 में जनगणनां Caste के आधार पर पहली बार करता है ,
और २००० से ज्यादा जातियां , "नेसल बेस इंडेक्स " और सोशल hiearchy , के आधार पर ./ उसने एक
unfailing "लॉ ऑफ़ caste " बनाया और बताया कि "भारत में नाक कि चौड़ाई उसके
सामजिक स्टेटस के inversely proportionate होती है / दूसरी मह्हत्वपूर्ण
बात ये है कि सोशल hierarchy के क्रम जो उसने लिस्ट बनाई उसको अल्फाबेटिकल
क्रम में न रखकर कृत्रिम  सोशल hierarchy के आधार पर ऊपर से नीचे कि और लिस्टिंग
किया / यहीं से उस ऊंची और निचली या अगड़ी और पिछड़ी जातियों के एक नए
सिद्धांत की रचना होती है , जिसके आधार पर सरकारें आज भी काम कर रहीं है /
हाल ही में जाटों को पिछड़ी जाति की लिस्ट में शामिल किया जाना सिर्फ इसी
नजरिये से व्याख्यायित होता है /

डॉ आंबेडकर खुद इस आधार को निराधार बताते हुए खंडन करते हैं , तो शायद एक ही
तथ्य स्पस्ट होता है , कि वे तात्कालिक समय के एंथ्रोपोलॉजी जैसे
विषयों में तो एक्सपर्ट थे ,लेकिन जब उन्होंने इतिहास की तरफ नजर उठाई तो ,
शायद कहीं फर्जी संस्कृत विदों के जाल में उलझ कर रह गये /

और जब हमारे देश के विद्वान जो कॉपी एंड पेस्ट के , आधार पर न जाने कितनी
पीएचडी ,लेते और देते रहते हैं , उन्होंने caste का अनुवाद जाति में करते
हैं , तो आधुनिक भारत की तस्वीर सामने आती है /

A L Basham जैसे लोग शायद इसी को जाति की तरलता और rigidity ऑफ़ caste सिस्टम के नाम से बुलाये  /
डॉआंबेडकर को ये छूट दी जा सकती है , की उनके पास सूचना के श्रोत सीमित थे ,
इसलिए जिस भी निष्कर्ष पर वे पहुंचे , अगर वे होते , तो शायद उसको
रेक्टिफी करते /

अतिशूद्र Outcastes कुटुंब से निकारिहों

इसीको ईसाई विद्वानों ने ..Outcasts का नाम दिया /, हिन्दू समाज में समाज को
नियंत्रित करने के लिए एक व्यवस्था थी - जो उन मान्यताप्राप्त परम्पराओं
का पालन नहीं करेगा उसको _"कुटुंब से निकारिहों " यानी जात-बाहर कर दिया
जाता था / यानि उनको भिक्षा मांगकर अपना गुजारा करना पड़ता था /
उनकी सारी व्यक्तिगत अधिकारों से वंचित कर कुटुंब और समाजबहिस्कृत कर दिया था /

इस बात का वर्णन डॉ बुचनन ने अपनी पुस्तक में 1807  में भी किया है - कि
शूद्रों को अपने कुटुंब को संचालित करने के लिए ,उस समाज के बुजुर्ग आपसी
सलाह के उपरांत किसी को सजा भी दे सकते थे /
ये सामाजिक व्यवस्था ईसाइयत फैलाने में सबसे बड़ी बाधा थी / इसबात का जिक्र संस्कृत
विद्वान मॅक्समुल्लर और पादरी M A शेरिंग दोनों ने लिखा है /
इसलिए इस कुप्रथा का दानवीकरण करना ही पड़ेगा / और वही हुवा --इसी को
outcasts कहा डॉ आंबेडकर ने ,,और आगे चलकर वर्ण व्यवस्था में एक और अंग के
रूप में लिखा -"अवर्ण " /
अब बांटे प्रमुखता से -
(१)
जब इन -"कुटुंब से निकारिहों " को धनसम्पत्ति बाल बच्चे पत्नी ,सब का
त्याग करना पड़ता था ,तो इनके वंश कैसे आगे बढ़ेंगे / कैसे डॉ आंबेडकर के
द्वारा वर्णित पांचवे वर्ण का निर्माण होगा ??
(२)
ईसाई संस्कृत विद्वानों ने बताया वर्ण - यानि चमड़ी का रंग / तो ये नहीं
बताया कि कौन सा रंग गोरा काला नीला पीला या सतरंगी ?? किस रंग का सवर्ण
समाज था ??
(३)
....पांचवा वर्ण - अवर्ण / ये भी नहीं बताया कि इसका क्या मतलब होता है -
बदरंग कि बिना रंग का ?? या discouloured , जो ईसाई mythology
में वर्णित अनंतकाल तक स्लेवरी में रहने के लिए नूह द्वारा श्रापित Ham के
वंशज - जिसके पाप के कारण गॉड ने उसके वंशजों को "काला" रंग दे दिया ???

अभी मैं कल .@Chandra Bhan pRASAD जी जैसे एक विद्वान दलित चिंतक की timeline
पर गया , तो उनके अनुसार मैकाले --" भारतीय इतिहास में शूद्रो और दलितों की
शिक्षा का सूत्रधार था "/
मैं उनको अल्पज्ञ और अविज्ञ तो नहीं कह सकता , हाँ अनभिज्ञ या धूर्त और खड़ड़यंत्रकारी
अवश्य कह सकता हूँ / क्योंकि जिन अंग्रेजों के प्रति आप इतने कृतज्ञ हैं ,
वे इतने ईमानदार अवश्य थे की जो डेटा उन्होंने एकत्रित किये तात्कालिक
भारतीय समाजिक और सांस्कृत व्यवस्थाके सन्दर्भ में , वे इंडियन ऑफिस
लाइब्रेरी लन्दन में अभी भी संरक्षित हैं /
..........................
....वही डेटा ये भी कहता है की -" -
" 1830  के आसपास मैकाले की शिक्षा पद्धति लागू होने के पहले- भारतीय
स्कूलों में अंग्रेज कलेक्टरों द्वारा इकट्ठे किये डेटा के अनुसार - शूद्र
छात्रों की संख्या ब्राम्हण छात्रों से चार गुना थी" /

कुछ अंय तथ्य और रेफेरेंकेस

In 1891 Risley published a paper entitled The Study of Ethnology in India.[10] It was a contribution to what Thomas Trautmann, a historian who has studied Indian society, describes as "the racial
theory of Indian civilisation". Trautmann considers Risley, along with
the philologist Max Müller, to have been leading proponents of this idea which
... by century's end had become a settled fact, that the constitutive
event for Indian civilisation, the Big Bang through which it came into
being, was the clash between invading, fair-skinned, civilized
Sanskrit-speaking Aryans and dark-skinned, barbarous aborigines

Its Census based on Caste . You can see list of bramhins taken  from different places

https://ia700407.us.archive.org/.../BookReaderImages.php... https://ia700407.us.archive.org/.../BookReaderImages.php... किस तरह जनगणना हुई है ...पहले जाति फिर व्यक्ति फिर डिस्ट्रिक्ट और फिर अन्थ्रोपोमेट्रिकल मेज़रमेंट / हमारे ख़्याल से तो जनगणना जिला , तहसील और फिर मोहल्ले में यान एक गांव में कितने निवासी हैं , सब कि एक जगह लिस्टिंग होती है / ये तो अजीब गणना है /देखिये किस तरह जनगणना हुई है ...पहले जाति फिर व्यक्ति फिर डिस्ट्रिक्ट और फिर अन्थ्रोपोमेट्रिकल मेज़रमेंट / हमारे ख़्याल से तो जनगणना जिला , तहसील और फिर मोहल्ले में यान एक गांव में कितने निवासी हैं , सब कि एक जगह लिस्टिंग होती है / ये तो अजीब गणना है /देखिये किस तरह जनगणना हुई है ...पहले जाति फिर व्यक्ति फिर डिस्ट्रिक्ट और फिर अन्थ्रोपोमेट्रिकल मेज़रमेंट /
https://fbcdn-sphotos-a-a.akamaihd.net/hphotos-ak-xpf1/t31.0-8/s960x960/10989200_987149847981749_679122207202501925_o.jpg

In 1921 Census, for ‘low castes’, the term ‘depressed classes’ was used for the
first time, but no standard list of such classes was available for want of an adequate
definition. Population data were collected and published for each individual castes and
tribes separately at the state and district levels. In 1931 Census, these figures were
confined to exterior castes and primitive tribes, besides all other castes except those
whose number fell short of four per thousand of the total population; and for those
whose figures were considered unnecessary by the then local government. The 1941
Census data on population of tribes were presented on a somewhat modest scale since
their compilation was restricted due to World War II. It was also felt by the then Census
Commissioner, Mr. Yeatts, that in the then prevailing circumstances, the scope of
enquiries on castes and tribes could be dissociated from the Census. The group totals
for Scheduled Castes, Scheduled Tribes and Anglo-Indians were, however, brought out
for all the states. Figures were also compiled at the district level for 62 Scheduled
Castes and 14 Scheduled Tribes, included in the Scheduled Castes Order, 1936, and
56 other castes and three non-specified tribes. The term ‘primitive’ tribe was given up
during this Census.....P Pdmnabhan Registrar General Of India Xi congres of statistic and anthropology.
Xxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxx
xxxxxxxxxxxxxx
नीचे दिए गए census डेटा को देखें ध्यान से तो पाएंगे कि पहले nasal बेस इंडेक्सिंग ( नाक की लम्बाइ और चौड़ाई को गणना ) के आधार पर 1901 में लोगों की पहले cast निर्धारित किया फिर उनकी गणना की ।
क्या आपने ऐसी जनगणना सुनी या देखी है या उड़कर भी कल्पना कर सकते एक लिस्ट में अलग अलग जिलों के लोगों एक क्रम में रखा जाय ।

यही लिस्ट आज तक चल रही है।

No comments:

Post a Comment