Wednesday, 11 March 2015

Riddle of modern Caste sysyem :भारतीय संविधान मे फर्जी Aryan Invasion Theory को कैसे घुसेड़ा गया ?

भारत में ब्रिटिश राज में जनगणना 1872 से शुरू हुई ।1872 और 1881 मे जनगणना वर्ण और धर्म के आधार पर हुई । 1885 का Gazetteer of India भी हिन्दू समाज को वर्ण के आधार पर ही classify करता है ।
1891 में एबबस्तों भारत की जनगणना पेशे को मुख्य आधार बनाकर करता है

लेकिन 1901 में लार्ड रिसले कास्ट ( Caste  एक लैटिन शब्द Castas से लिया गया है ) के आधार पर जनगणना करवाता है जिसमे 1738 कास्ट और 42 नश्ल को आधारहीन तरीके से anthropology को आधार बनाकर करता है । 19वीं शताब्दी मे यूरोप के ईसाई लगभग पूरी दुनिया पर कब्जा कर चुके थे और और स्वाभाविक तौर पर उनके मन मे श्रेष्ठता का भाव जाग्रत हो गया था / यहीं से एक नए विज्ञान का जन्म होता है जिसका नाम था Race Science , जिसमे चमड़ी के रंग और शरीर की संरचना के आधार पर दुनिया के विभिन्न देशों के लोगों को विभिन्न नशलों मे बांटने का काम किया /

अब ये तरीका क्या था ? उसको सुनिए और समझिये जरा ।
" रिसले नामक इस racist व्यक्ति ने बंगाल मे
6000 लोगों पर प्रयोग करके  एक लॉ (नियम ) बनाया ,  कि जिसकी नाक चौड़ी है उसकी सामाजिक हैसियत कम है नीची है और जिसकी नाक पतली या सुतवां है उसकी सामजिक हैसियत ऊँची है ।यही लार्ड Risley का unfailing law of caste है।इसी को आधार बना कर उसने 1901 की जनगणना की जो लिस्ट बनाई वो अल्फाबेटिकल न बनाकर ; नाक की चौड़ाई के आधार पर वर्गों की सामाजिक हैसियत तय की हुई social Hiearchy के आधार पर बनाई / यही लिस्ट  आज भारत के संविधान की थाती है /
 
इसी unfailing law के अनुसार चौड़ी नाक वाले लोग लिस्ट में नीचे हैं ।ये नीची जाति के लोग माने जाते हैं ।
और पतली नाक वाले लोग लिस्ट में ऊपर हैं वो ऊँची जाति वाले लोग माने जाते हैं।


इस न fail होने वाली कनून के निर्माता लार्ड रिसले ने 1901 में जो जनगणना की लिस्ट सोशल higharchy के आधार पर तैयार की वही आज के मॉडर्न भारत के समाज के Caste System को एक्सप्लेन करता है

1921 की जनगणना में depreesed class (यानि दलित समाज ) जैसे शब्दों को इस census में जगह मिली ।लेकिन depressed class को परिभाषित नहीं किया गया / 1935 मे इसी लिस्ट की सबसे निचले पायदान पर टंकित जातियों को एक अलग वर्ग मे डाला गाय जिसको शेडुले कहते है / उसी से बना शेडुल कास्ट /

अब इन दलित चिंतकों से आग्रह है कि इस रिसले स्मृति को व्याख्यसयित करने का कष्ट करें ।

1885 के गौज़्ज़ेटेयर ऑफ इंडिया मे वर्णित है - भारत मे ब्रामहन क्षत्रिय वैश्य और aborigines तथा मुसलमान रहते है / अब आज की तारीख मे ब्रामहन क्षत्रिय वैश्य #वर्ण के नाम से न जाने जाकर जाति के नाम से जाने जाते हैं / और अंग्रेजों की कल्पना मे बसने वाले aborigines , और भारत के ग्रन्थों के हिसाब से - शुश्रूषा वार्ता कारकुशीलव वाला भारत का उत्पादक वर्ग को हजारों जतियों मे चिन्हित किया गया /
इसके पीछे कारण क्या थे ? 
अंग्रेज़ शासक और धर्म परिवर्तन करने वाली ईसाई मिशनरियों के बीच एक गुप्त सम्झौता था कि यदि धर्मपरिवर्तन मे प्रशासनिक हस्तक्षेप किया गया तो भीषण संघर्ष होगा , जिसका उदाहरण गोवा मे और 1857 मे देखा और समझा जा चुका था / इसलिए प्रशासन कूट रूप से मिशनरियों के लिए आधार प्रदान करेगा / दूसरी बात अंग्रेजों के खिलाफ 1857 मे मुसलमान लड़ा तो था परंतु स्वतन्त्रता के नाम पर नहीं - दीन के नाम पर / वरना उस समय भी और आज भी मुसलमान मातृभूमि हेतु लड़ नहीं सकता कुछ अपवादों को छोडकर / 1919 मे भी गांधी के साथ जब वो अंग्रेजों के खिलाफ बगावत पर उतरा था तो खलीफा का साथ देने के लिए न कि मातृभूमि की रक्षा के लिए /
अंग्रेजों का विरोध विशुद्ध रूप से हिंदुओं ने ही किया अधिकतर / अतः अंग्रेज़ प्रशासन के मुख्य विरोधी हिन्दू ही थे / इसलिए उनको बांटना उनके प्रशानिक और धरंपरिवर्तन दोनों ही दृष्टिकोण से लाभपरक था / 
अगर हिन्दू मात्र चार वर्णों / वर्गों मे बंटा होता तो ये उनके लिए सहज नहीं था / इस लिए उन्होने हजारो छोटे छोटे टार्गेट ग्रुप बनाए / अब देखिये भारतीय बनवासी हिंदुओं को उन्होने पहले अनिमिस्ट के टाइटल से जनगणना मे शामिल किया , फिर उनको शैड्यूल tribe के नाम से चिन्हित किया / लेकिन आज उन्हे पुनः  ब्रामहन क्षत्रिय वैश्य या आदिवासी के नाम से पुकारा जा रहा है / क्यों किस तरह वे हिन्दू रीतिरिवाजों से अलग थे ? वे भी प्रकृतिपूजक ही तो थे जोकि हिंदुओं की मूल पहचान है / लेकिन उसका परिणाम देखें - आज ज़्यादातर बनवासी ईसाई मे धर्म परिवर्तित किया जा चुका है /
कोई ये प्रश्न उठा सकता है कि क्या भारत मे जातिया नहीं थी / थी जी / लेकिन जाति / Caste नहीं , जात थी / और उस जात की परिभाषा से आज जाति के नाम से जानी जाने वाली ब्रामहन क्षत्रिय वैश्य जातियों के अंदर ही सैकड़ो जातिया पायी जाती हैं /
एक और बात मक्ष्मुल्लर द्वारा मचाए गए हल्ला - Aryan Invasion theory को अगर ध्यान से विचार करिएगा तो आप पाएंगे कि अंग्रेज़ हमारे संविधान मे वे इस फर्जी थियरी को , जिसको स्वयं अंबदेकर भी खारिज कर चुके थे , भारत के संविधान मे पैवस्त करणे मे सफल रहे , जिसको काले अंग्रेज़ समझ भी न सके /
कैसे ? 
उन्होने बताया कि आर्य यानि ब्रामहन क्षत्रिय वैश्य, बाहर से आए -  ब्रामहन क्षत्रिय वैश्य  ने aborigines / शूद्र / द्रविड़ आदि को धकिया कर दक्षिण मे भेजा / शब्दों को अपने हिसाब से जहां जैसा फिट होता था , उसका वैसे प्रयोग किया / 
तो आने वाले - ब्रामहन क्षत्रिय वैश्य - अर्थात #सवर्ण 
और धकियाए हुये aborigines / शूद्र / द्रविड़ - #असवर्ण 
संविधान मे दोनों को अलग चिन्हित किया गया है न बाबा के संविधान मे/

हे राम !
 

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