Wednesday, 11 March 2015

अब वार्ता का क्या अर्थ है ??

"ज्ञान क्या है विज्ञानं क्या है "
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हमारे ग्रन्थों में जीवन के चार लक्ष्य है ;-- अर्थ धर्म काम मोक्ष।
धर्म का तातपर्य है कर्तव्य ड्यूटी ; कर्मणीय कर्तव्य
उदाहरण के लिए मातृधर्म पित्रधर्म राष्ट्रधर्म

ज्ञान की क्या परिभाषा है : ज्ञानेर्धीह मोक्षः अर्थात मोक्ष की प्राप्ति के लिए बुद्धि और वृत्ति जो विद्याधधयन किया जाय उससे ज्ञान की प्राप्ति होती है : वेद पुराण उपनिषद रामायण आदि।

विज्ञानं की क्या परिभाषा है : विज्ञानं शिल्पशास्त्रयो अर्थात भौतिक जीवन की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए जो भी शिल्प शास्त्र या अन्य शास्त्र हैं उनकी ऒर बुद्धि और वृत्ति के लिए जो विद्याध्ययन किया जाय वो विज्ञानं ।

अभी अपनी न तो ज्ञान की ऒर प्रवृत्ति है न ज्ञान तक कोई पहुँच है , तो वेद शाश्त्र छोड़े।
विज्ञानी हूँ इस लिए शिल्प शास्त्र की बात करते हैं ।
कौटिल्य के अर्थशाश्त्र की बात करें जो कि ऐतिहासिक है मिथकीय या प्रागैतिहासिक नहीं ।


 आधुनिक लोकतंत्र में विधायिका जुडिशरी और एक्सर्क्युटिवे के कर्तव्य यानि धर्म निर्धारित किये हैं ।अब देखिये कौटिल्य क्या कहते हैं ब्राम्हण क्षत्रिय वैश्य और शुद्र के बारे में ।

"कौटिल्य भी उसी कर्तव्य यानि धर्म की बात करते हैं ।"

"स्वधर्मो ब्रम्हणस्य अध्ययनम् अध्यापनम यज्ञम् याजनम दानं प्रतिग्रहश्वेति।
क्षत्रियश्य अध्ययनम् यजनम दानम् शश्त्र जीवो भूत्ररक्षणम् च।
वैश्यास्याध्ययनम यजनम दानम् कृषिपशुपाल्ये वाणिज्य च।
शुद्रस्य द्विजात शुश्रूषा वार्ता कारकुशीलव कर्मम च।

बाकियों की तो आप समझते हैं न समझते हों तो पूछ लीजिएगा।
शुद्र की बात : इसका काम सर्विस सेक्टर एवं वार्ता में कार्यकुशल होने के कर्म से संवंधित है।


 अब वार्ता का क्या अर्थ है ??
कृषिपशुपाल्ये वाणिज्या च वार्ता। धान्य पशुहरिन्यकुप्यविष्टिप्रदानादौपकारिकी। तया स्वपक्षम् परपक्षम च वशिकारोति कोषदण्डाभ्याम ।
अनुवाद: कृषि पशुपालन और व्यापार वार्ता विद्या के अंग हैं ।यह धान्य पशु हिरण्य ताम्र आदि खनिज पदार्थ और नौकर चाकर देने वाली परमुपकारिणी विद्या है। इसी विद्या से उपार्जित कोष और सेना के बल पर राजा स्वपक्ष और परपक्ष को वष में कर लेता है।

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ये भी देखें कौटिल्य के अर्थ शाश्त्र से ही:---
एक स्त्री पुत्रणाम ज्येष्ठांशः ब्रम्हणानां अजः क्षत्रियनाम अश्वह वैश्यानां गावः शूद्रानाम वयः।
अर्थात एक स्त्री के कई पुत्र हों तो कर्मानुसार ज्येष्ठ भाग ब्राम्हण को बकरियां क्षत्रिय को घोडा वैश्य को गायें और शुद्र को भेंड दें ।
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कौटिल्य के अनुसार सेना संबंधी कार्य :
ब्राम्हण क्षत्रिय वैश्य शुद्र सैन्यानाम तेजः प्रधान्यतपूर्वम पूर्वं श्रेयः सन्नाहयितुमित्याचार्याह ।
नेति कौटिल्यह्।प्रणिपातेन ब्रम्हणबलम परोअभिहारयेत।
प्रहरण विद्याविनीतं तु क्षत्रियबलम श्रेयः , बहुलसारं वा वैशिशुद्रबलम इति।
अर्थात ; प्राचीन आचार्यों का मत है कि तेज की अतिशयता होने के कारण ब्राम्हण क्षत्रिय वैश्य और शुद्र , इन चारों को सेनाओं में उत्तर उत्तर की अपेक्षा पूर्व पूर्व की सेना अधिक श्रेष्ठ है।
इसके विपरीत कौटिल्य के मतानुसार - शत्रुपक्ष ब्राम्हणसेना को नमस्कार कर या सर झुकाकर अपने वश में कर लेता है।
इसलिए यद्ध में क्षत्रिय सेना को ही निपुण माना जाना चाहिए; अथवा वैश्य और शुद्रसेना को भी शेष्ठ समझना चाहिए यदि उसमे वीर पुरुषों की अधिकता हो ।

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