अमिय कुमार बागची के पुस्तक Colonialism and Indian Economy से :-------
"1860 में अमेरिकन सिविल वॉर के समय बंगाल चैम्बर ऑफ़ कॉमर्स ने भारत सर्कार से शिकायत की कि अंग्रेजी वस्त्रों की डिमांड उत्तर पश्चिम राज्यों में काफी कम हो गयी है क्योंकि हैंडलूम वीविंग का कार्य को पुनर्जीवित कर लिया गया है।सर्कार ने इस पर एक इन्क्वायरी बिठाया और हर जिले में इन कारणों का पता लगाया और रिपोर्ट पब्लिश हुई । Sudder board of revenue के सचिव ने निम्नलिखित शब्दों में उसको varnit कियआ ;
' सर्वप्रथम ये बात निश्चित तौर पर कही जा सकती है कि अंग्रेजी कपड़ो की घटी हुई मांग का कारन बढ़ा हुवा देशी उत्पादन नही है।कुछ अपवादों को छोड़कर कही भी उत्पादन नही बढ़ा है। इसके विपरीत सामान्य तौर पर उत्पादन में भारी तकलीफदेह कमी आई है ।पश्चिमी प्रदर्शों में ये (उत्पादन में कमी ) थोडा कम दीखता है परंतु ये पूरी तरह नष्ट हो चूका है ।मात्र 2 -3 सालों के अदर ही कहीं आधा तो कहि एक तिहाई लूम बन्द हो चुके हैं लेकिन ज्यादातर लूम कभी कभी ही चलते हैं । वीवर्स या तो कृषि कार्य करने लगे है , या menial labour या मेनिअल सर्विसेज करने लगे हैं ,कुछ maritutius या अन्यत्र विस्थापित हो गए हैं और कुछ भीख मांग के गुजारा कर रहे है ' "।
अन्यत्र से उसी पुस्तक से ;
"1828 तक मात्र बंगाल में कॉटन ट्रेड में रोजगार करने वाले 10 लाख लोग अपनी रोजी रोटी खो चुके थे "
टॉपिक :De Industrialisation in India in 19th Century .
डॉ आंबेडकर ने भी वेदों की यात्रा करकर शूद्रों को मेनिअल जॉब अलॉट किया था।
बोर्ड ऑफ़ रेवेनुए और आंबेडकर जी के शब्दों में कितना साम्य है सिर्फ तथ्य फर्क है।
"1860 में अमेरिकन सिविल वॉर के समय बंगाल चैम्बर ऑफ़ कॉमर्स ने भारत सर्कार से शिकायत की कि अंग्रेजी वस्त्रों की डिमांड उत्तर पश्चिम राज्यों में काफी कम हो गयी है क्योंकि हैंडलूम वीविंग का कार्य को पुनर्जीवित कर लिया गया है।सर्कार ने इस पर एक इन्क्वायरी बिठाया और हर जिले में इन कारणों का पता लगाया और रिपोर्ट पब्लिश हुई । Sudder board of revenue के सचिव ने निम्नलिखित शब्दों में उसको varnit कियआ ;
' सर्वप्रथम ये बात निश्चित तौर पर कही जा सकती है कि अंग्रेजी कपड़ो की घटी हुई मांग का कारन बढ़ा हुवा देशी उत्पादन नही है।कुछ अपवादों को छोड़कर कही भी उत्पादन नही बढ़ा है। इसके विपरीत सामान्य तौर पर उत्पादन में भारी तकलीफदेह कमी आई है ।पश्चिमी प्रदर्शों में ये (उत्पादन में कमी ) थोडा कम दीखता है परंतु ये पूरी तरह नष्ट हो चूका है ।मात्र 2 -3 सालों के अदर ही कहीं आधा तो कहि एक तिहाई लूम बन्द हो चुके हैं लेकिन ज्यादातर लूम कभी कभी ही चलते हैं । वीवर्स या तो कृषि कार्य करने लगे है , या menial labour या मेनिअल सर्विसेज करने लगे हैं ,कुछ maritutius या अन्यत्र विस्थापित हो गए हैं और कुछ भीख मांग के गुजारा कर रहे है ' "।
अन्यत्र से उसी पुस्तक से ;
"1828 तक मात्र बंगाल में कॉटन ट्रेड में रोजगार करने वाले 10 लाख लोग अपनी रोजी रोटी खो चुके थे "
टॉपिक :De Industrialisation in India in 19th Century .
डॉ आंबेडकर ने भी वेदों की यात्रा करकर शूद्रों को मेनिअल जॉब अलॉट किया था।
बोर्ड ऑफ़ रेवेनुए और आंबेडकर जी के शब्दों में कितना साम्य है सिर्फ तथ्य फर्क है।
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