Friday, 27 March 2015

Race and Caste a Foreign Philosophy

रेस या नश्ल एक ऐसा शब्द है जिसका समानर्थी शब्द संस्कृत या हिन्दी में उपलब्ध नहीं हैं (हो तो बताएं ), और जब शब्द ही नहीं है तो वो संस्कृति भी भारतीय सभ्यता का अंग नहीं है / जैसे २० वर्श पूर्व के शब्दकोशों में स्कैम शब्द नहीं मिलता , क्योंकी सरकारी बाबू और नेता के चोरी चकारी का स्तरहीन चोरी को घोटला जैसे शब्दो से काम चला लिया जाता था / लेकिन जब १ लाख ७५ हजार जैसे स्तरीय डकैतियां होने लगी ती स्कैम शब्द का इजाद हुवा/
इसी तराह race Science का जन्म भी १८ वीं शताब्दी में सफ़ेद चमडी के युरोपियन की पूर विश्व में कोलोनी बनने और उस शासन को justify करने से शुरू हुवा / जिसका जन्म डार्विन के survival ऑफ फिटेस्ट से होता है और उसका justification Rudyard Kipling's "White Man's Burden" से खत्म होता है / race साइंस के तहत एन्थ्रोपॉलॉजी अंथ्रोपोमेट्री क्रानिओमेट्री जैसे विषय आते हैं , जिनका प्रयोग सफ़ेद चमदी वाले इसाई विद्वानों ने रेसियल सुपेरियोरिटी और इनफेरियोरिटी के लिये किया हैं / विश्व की विभिन्न देशों मे ब्राउन और काले रंग के लोगों के ऊपर अपने अत्याचारों और लूटपाट का justification करने के लिये , इस साइंस ने उनको नैतिक बल दिया / बहुत ज़ोर शोर से इस इस साइंस का प्रयोग दूसरे विश्वयुद्ध तक किया गया /
इधर मैकसमुल्लर जैसे विद्वानों ने जब ये अफवाह फैलाई की आर्य बाहर से आये थे और संस्कृत भाषा को इंडो इरानिनन इंडो युरोपियन और इंडो जर्मन सिद्ध कर दिया गया और स्वस्तिक जर्मनी के सिपाहियों की भजाओं पर शुशोभित हो गया । लेकिन मैक्समुल्लेर के झूंठ खामियाजा यहूदिओं को अपने खून से चुकाना पड़ा । और जब दूसरे विश्वयुद्ध में जर्मन और युरोपियन इसाइयों ने शुद्ध आर्य खून के नाम पर ६० लाख यहूदियों और ४० लाख जिप्सियों को हलाक कर दिया तो उनेस्को ने race साइंस के आधार पर रेसियल सुपेरियोरिटी और इनफेरियोरिटी कलर और अंथ्रोपोमेट्री और क्रानिओमेट्री जैसे साइंस को खारिज कर दिया /
दूसरे विश्वयुद्ध के बाद जर्मनी और यूरोप की पुस्तकों से आर्य शब्द और उस थ्योरी को सायास मिटाया गया /
अब भारत की कहानी देखिये १९०१ मे H H Risley ने अंथ्रोपोमेट्री और क्रानिओमेट्री के अधार पर मात्र 5000 लोगों पर रिसर्च करके एक " Unfailing law ऑफ caste ' बनाया और उसके आधार पर एक लिस्ट तैयार की / क्या है ये law ? इस law के अनुसार भारत में किसी व्यक्ति या उसके वर्गसमूह की सामाजिक हैसियत उसकी नाक की चौडाई के inversely proportinate होगी / अर्थात् जिसकी नाक पतली वो समाजिक हैसियत में ऊपर और जिसकी चौडी उसकी समाजिक हैसियत नीचे / 1901 की जन गणना में यही unfailing law ऑफ caste के आधार पर जो लिस्ट बनी वो अल्फाबेटिकल क्रम में नहीं है / वो नाक की चौडाई के आधार पर तय किया गए समाजिक हैसियत यानी सोसियल Hierarchy के आधार पर क्रमबद्ध हैं / उसने 1901मे 2378 caste यानी जातियों और 42 races की लिस्ट तैयार की / इस लिस्ट में जो caste ऊपर दर्ज है वो हुई ऊंची जाति और जो नीचे दर्ज हैं वो हुई नीची जाति /
एक शब्द और विज्ञान होता है Taxonomy जिसमें कुच्छ खास लक्षण वाले वनस्पतियों और जीवों को , उन लक्षणों के आधार पर एक विशेष वर्ग में रखा जाता है / उसी तरह एक सनकी ईसाई जनगनणना कमिशनर ने १९०१ में नाक की बनावट के आधार पर (सुतवां नाक , चौड़ी नाक) के आधार पर भारत के हिन्दू समाज को 1901 की जनगणना में 2738 castes और 42 races में taxonomy की साइन्स को आधार बनाकर बांटा / 1921 में इसी जनगणना में depressed class (दलित वर्ग ) घुशेड़ा गया , जिसका आधार क्या है ? ये स्पस्ट नहीं था/ और वो आज भी नहीं हैं / वही race science का प्रयोग करके हिन्दू समाज का caste के आधार पर जो taxonomical विभाजन किया गया , वो आज तक जारी है , और अब तो उसी लिस्ट को संविधान मे डालकर उसे संविधान सम्मत भी बना दिया गया है / डॉक्टर आम्बेडकर का annihilation of caste ने अपने इस सिद्धांत और सपने को अपने सामने बलि चढ़ा दी / उनसे बड़ा हाइपोक्राइट कौन होगा ?

अब उनेस्को ने तो इस साइंस के इन parameter पर रचे गए सारे साहित्य और तथ्य खरिज कर दिये / लेकिन भारत मे race science and Taxonomy के आधार पर तैयार की गयी ये लिस्ट अभी भी जारी हैं ,और अब तो संविधान सम्मत भी हो गयी है , इसको कब खारिज किया जायेगा ?

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