Wednesday, 11 March 2015

भारत का आर्थिक इतिहास : de Industrialisation और उसका भारतीय समाज पर क्या असर हुआ

डॉ अंबेडकर और उनके समर्थक, जिन्होने 20वीं शताब्दी मे बहुसंख्यक भारतीयों की दुर्दशा को ऋग्वेद , नारद स्मृति , और मनुस्मृति से जोड़कर इस देश के हजारों साल से ,  आर्थिक आधार और रीढ़ रहे लोगों के अंदर जो कुंठा और हीनता का भाव भरा , और ऋग्वेद की  एक आध्यात्मिक रिचा का भौतिक अपभ्रंश और भ्रस्ट व्याख्या की और उसके आधार पर समाज का अनैतिक आधारहीन विवेचना किया , उनको नीचे वर्णित तथ्यों का या तो जबाव देना चाहिए , या फिर चुल्लू भर पानी मे डूब मरना चाहिए / ये भी न कर पाएँ तो  उनको सार्वनिक रूप से कम से कम उस वर्ग से माफी मांगना चाहिए , जिनके अंदर उन्होने हजारों साल से दलित होने का अपमानजनक और हीनतापरक कुंठित भाव भरा /
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भारत 18वीं शताब्दी तक एक एक्सपोर्टिंग देश था / लेकिन मात्र 100 सालों मे इंपोर्टिंग देश बन गया , ब्रिटिश सरकार के लूट और Money  drain  के कारण / अब इस एक्सपोर्ट क्वालिटी के सामानो का उत्पादक कौन था ?
 कोई टाटा बिरला अंबानी अदानी की फ़ैक्टरी तो बनी नहीं थी / इसका अर्थ हुआ समाज का हर आमजन इस कार्य मे हिस्सेदार था / लेकिन  इकॉनमी के ध्वस्त होने के कारन जो  de Industrialisation हुआ उसके कारण इन manufacturers का क्या हाल हुआ ?? इस पर किसी ने सवाल नहीं खड़े किए ? 
अब इस पर इकनॉमिक इतिहासकार  क्या कहते हैं जरा एक नजर डालें :

""भारत early 18थ सेंचुरी के पीक में 30 मिलियन गज से ज्यादे का मोटा और महीन टेक्सटाइल का एक्सपोर्ट सालाना करता था। 1760 में 2.43 मिलियन रुपयों के माल का एक्सपोर्ट हुवा जो ईस्ट इंडिया द्वारा भारत से किये गए टोटल एक्सपोर्ट का 79.4 प्रतिशत था।
1802 में एक्सपोर्ट में बृद्धि हुयी । ये मात्र बंगाल से एक्सपोर्ट होने वाले माल की कीमत 18.6 मिलियन था ।
1811 में ये सम्पूर्ण एक्सपोर्ट का 33 % हिस्सा बंगाल से ही होता था।
1839/40 में टोटल एक्सपोर्ट में बंगाल का हिस्सा घटकर मात्र 5% बचता है।

1809-13 और 1901 में यद्यपि जनसंख्या में बृद्धि हुई लेकिन इंडस्ट्री पर आधारित लोगो की संख्या 50% तक घट गयी। सबसे ज्यादा deindustrialisation पुर्डिया और भागलपुर में हुवा । दोनों जगह कुल मिलाकर .65 मिलियन(6.5 लाख ) लोग अपनी पारंपरिक आर्थिक व्यसाय से displace हुए।
डेटा के अनुसार vent of surplus तर्क के विपरीत ढेर सारे लोग जो न अपना पारंपरिक व्यसाय बचा सके और न ही खेतों में मजदूरी करके जीवन यापन कर पाये , और न ही उनको फैक्टरियों खदानों या प्लांटेशन में ही नौकरी मिली / ( और Will Durant के अनुसार बाकी बचे बेरोजगारों मे जो सौभाग्यशालि थे उनको गोरों का मैला उठाने का काम मिला क्योंकि अगर गुलाम इतने सस्ते हों तो सौचालय बनवाने का कष्ट कौन उठाए /)
उनके लिए de industrialization अत्यंत ही कष्ट साध्य  सिद्ध हुवा होगा । ( miserable)।""
From : Colonialism in Action : Trade, Development and Dependence in late Colonial India ; by Debdas Benerjee P. 84-85.

"यद्यपि बाकी इंडस्ट्रीज में भी इन 100 सालों में रोजगार घटा लेकिन सबसे ज्याडा महत्वपूर्ण ये बात है सबसे ज्यादा  deindustrialisation कॉटन स्पिनिंग में हुयी।
1809 से 1813 के बीच जितनी भी जनसंख्या वीविंग और स्पिनिंग से जीवन यापन करती थी उसका 80% जनता स्पिनिंग करती थी। चूँकि कॉटन स्पिनिंग पार्ट टाइम में महिलाएं भी अपने घरो में सिंपल टेक्नोलॉजी से करती थी ये तर्क महत्वपूर्ण हो जाता है कि 19वीं शताब्दी में कॉटन स्पिनिंग के नष्ट होने के कारन भारत के आधुनिक industrialisation का आधार ही खत्म हो गया।" -

From : Trade and Poverty ; Williamson Jeffrey G
Page 87 -88


"स्पिनिंग एक राष्ट्रीय व्यवसाय था , जो प्रे देश मे होता था , जिसको मुख्य से महिलाएं करती थी / छोटे और बड़े , सभी परिवारों की महिलाए दोपहर के बाद हंसी ठट्ठा करते हुये सूत कातती थी , जिनसे उनको सालाना कमाई (1807 ) मे 3- 7 सात रुपये होते थे / वही एक छोटा लूम चलाने मे एक स्त्री और एक पुरुष की आवश्यकता पड़ती थी , जिनकी सालाना कमाई 20 - 70 रुपये होती थी / " - Romesh Dutt - Economic History Of Colonial India


ये डाटा बहुत भारत मे हुये व्यापक बेरोजगारी का एक संफल भर है / अगर इसको तत्कालीन भारत के सम्पूर्ण समाज पर अप्लाई करें तो आपको इस्की व्यापकता की सच्चाई पता चलेगी /

क्या हुआ इन उद्यमियो  और उनके वंशजो  का? 

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