Monday, 6 August 2018

जो ज्ञान धन जेनेरेट करे वही ज्ञान है?

जो ज्ञान धन जेनेरेट करे वही ज्ञान है।

धन जेनेरेट करने के लिए जितने भी मार्ग और पड़ाव हैं, उन पर चलने वाला व्यक्ति उन मार्ग पर चलता हुवा यदि किसी भी पड़ाव पर पहुंचने में सक्षम हो जाता है, और धन जेनेरेट कर लेता है, तदोपरांत वो जो भी अपने मुखारबिंद से उवाचता है वही असली ज्ञान है। और हम इसी ज्ञानी को सम्मान भी करते हैं।

डॉक्यूमेंट कहते हैं कि आज से मात्र एक शताब्दी पूर्व तक भारत मे दरिद्र ( अपरिग्रही) ब्राम्हण ज्ञानी और सम्मानित माना जाता था। John O Campbell ने 1904 में अपनी पुस्तक में लिखता है कि - Respect for Brahmavidya and Poverty is loosing fast in India and the day will come when they will worship Monmoth like West.

नग्रेजी में इसका अर्थ है - दरिद्र (अपरिग्रही) ब्रम्हवेत्ता का सम्मान भारत में बहुत तेजी से घट रही है और वो दिन दूर नहीं जब भारत धन की पूजा पश्चिम की तरह करेगा।

ऑब्जरवेशन एकदम सटीक था उसका।

लेकिन ये पृष्ठिभूमि तैयार कैसे हुई ?
भारत की गुरुकुल परंपरा को चोरी करके सफेद ईसाइयों ने अपने यहां सर्वजन तक शिंक्षा पहुंचाई।

लेकिन भारत में मैकाले शिंक्षा लागू की गई वुड्स डिस्पैच की 1854 में, जिसमे 1853 का मार्क्स का ऑब्जरवेशन और निर्देश अंतर्निहित था - कि "अंग्रेजों को दो काम करना ही होगा :
(1) भारतीय समाज के ताने बाने का विनष्टीकरण
(2) और उसके ऊपर पश्चिम के भौतिकवाद के नींव लादना।

ये काम सफेद नग्रेज़ों के बाद उनके मानद पुत्र परम प्रपंची कुटिल मुनि वामपंथी विद्वानों ने जारी रखा। उसका सबसे बड़ा उदाहरण है कि एक नशलभेदी लेखक शेक्सपियर की तुलना कालिदास से की जाती है। और वो भी इस तरह - कालिदास पूर्व ( भारत) के शेक्सपीयर हैं।

दुर्भाग्य की बात ये है कि Narendra Modi की सरकार भी अभी तक उसी ढर्रे पे है जिस पर सफेद और काले नग्रेज चलते आये हैं।

कोई परिवर्तन शिंक्षा नीति या किसी भी क्षेत्र में हुई क्या ?

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