Monday, 6 August 2018

ग्रंथ जलाने की मानसिकता

 आंबेडकर ने मनुषमृति जलायी 1927 में। 

बख्तियार ख़िलजी ने नालन्दा विश्विद्यालय का ग्रंथालय। 

एक ने ग्रंथ जलाया दूसरे ने ग्रंथालय। 

दोनों के कृत्य एक ही हुए। 

ये मोडस ऑपरेंडी अब्राहमिक रेलिजन्स की मूल कार्यप्रणाली है। असहमति को सहन न करना। दरअसल आसमानी किताबों के पैगम्बरों ने विश्व के श्रम और मेधा से अर्जित धन वैभव और भूमि पर कब्जा करने के लिए जो विधान बनाया उसी को धर्म का नाम देकर एक गिरोह तैयार किया जो तीसरी शताब्दी में यूरोप और सातवी शताब्दी से अरब में पैदा हुवा।
इतने वर्षों में इसी मोडस ऑपरेंडी से विश्व के 122 देशों में ईसाइयों ने , और 56 देशों में मुसलमानों ने जर जोरू और जमीन पर कब्जा किया।

भारत शाश्त्रार्थ का देश है - 1030 में अलुबेरणी ने लिखा।
सैकड़ो दृश्टान्त है जब लोगों ने शाश्त्रार्थ से एक दूसरे को अपना अनुयायी बनाया। आदि शंकर और मंडन मिश्र का प्रसिद्ध शाश्त्रार्थ इसका उद्धरण है।

ये जाहिलियत भारत भूमि की धरती का कलंक है।

क्या डॉ अम्बेडकर को संस्कृत आती थी ?
नहीं आती थी।
तो कहां से पढ़ लिया उन्होंने।
पढ़ भी लिया और असहमति थी तो क्या किसी शास्त्री के पास जिज्ञासा लेकर गए कि ऐसा ही है या कि किसी ने क्षेपक घुसेड़ दिय्या है ?

दरअसल 1927 तक उनको कोई नही जानता था। ये कदम उन्होंने स्वयं के मन से राजनैतिक महत्वाकांक्षा की पूर्ति हेतु उठाया या फिर अंग्रेज आकाओं ने उनसे ऐसा करवाया - ये गहन जांच का विषय है।

क्योंकि 1928 में जब साइमन आया तो पूरे भारत ने उसका विरोध किया। लाला लाजपत राय ने अपने जीवन की कुर्बानी उसी का विरोध करते हुए दिया था।

लेकिन साइमन डॉ आंबेडकर को बहुत पसंद आया। और उसके साथ इन्होंने पहली बार अछूत शब्द को ब्रिटिश डॉक्यूमेंट का हिस्सा बनाया। आगे की कहानी आप जानते हैं।

https://sabrangindia.in/article/why-did-dr-babasaheb-ambedkar-publicly-burn-manu-smruti-dec-25-1927

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