Monday 6 August 2018

जात को अगर समझना है तो मात्र क्षत्रिय वर्ण से समझिये ।

जात को अगर समझना है तो मात्र क्षत्रिय वर्ण से समझिये ।
इसमें सूर्यवंशी हैं, चंद्रवंशी हैं, राजकुमार हैं ,गौतम हैं , वैश हैं , गहरवार हैं , बत्सगोत्रीय चौहान , लोनिया वत्सगोत्रीय चौहान हैं । और भी अनेक हैं । ये सब वंश यानि फॅमिली ट्री हैं , कुल वृक्ष हैं । 

सबके गोत्र अलग अलग या मिक्स हैं , शादी विवाह की एक परंपरा है कि किसके यहाँ शादी हो सकती है , किसके यहाँ नहीं ।
इसी को Endogamy कहा गया है अंग्रेज और ईसाई संस्कृतज्ञों द्वारा।
यद्यपि ये बंधन क्षीण हो रहा है ।

परंतु ये caste नहीं है ।
ये वंश परंपरा है ।

अब ये उन ईसाईयों को समझ में न आया तो दोष किसका ?
मनुस्मृति को संदर्भित करके एक नश्लवादी ईसाई इंसान रिसले ने तीन वर्णो - ब्राम्हण क्षत्रिय और वैश्य को #सवर्ण और #आर्य के नाम पर तीन जातियों में तब्दील किया तो दोष किसका है ?

बाकी भारत के कारकुशीलव उत्पादक लोगों को शूद्र वर्ण में चिन्हित कर उनका 2000 जातियों में चिन्हित किया तो डॉ आंबेडकर किसका संहार करना चाहते थे ?
#Annihilation_of_Caste ।

इसी को संविधान में घुसेड़ दिया संविधान निर्माता ने।

बख्तियार ख़िलजी एक डकैत था जिसने नालन्दा का ग्रंथालय जलाया था।

उसको कोई शांति दूत भी आदर्श नही मानता अपना।

लेकिन डॉ आंबेडकर को क्या उपाधि मिलनी चाहिए जिन्होंने मनुषमृति जैसा ग्रंथ जलाया, जिसको पढ़ने और समझने की भी कूबत नहीं थी उनके अंदर।

ज्ञान को स्वाहा करके ही भारत से इंडिया बना है भारत।
उसी स्वाहा ज्ञान के नायक है ग्रंथ जलाने के अपराधी बाबा साहेब।

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