Monday, 6 August 2018

क्लैश ऑफ सिविलाइज़ेशन में "वसुधैव कुटुम्बकम" का औचित्य बचा भी है ?

क्लैश ऑफ सिविलाइज़ेशन में "वसुधैव कुटुम्बकम" का औचित्य बचा भी है ?
ग्लोबल विलेज का नारा भी समुद्री डकैतों के वंशजों द्वारा डिज़ाइन किया गया नव उपनिवेश वाद ही है जिसको यंत्र बनाकर तथाकथित तीसरी दुनिया के लोगों का वेल्थ ड्रेन करना ही इस चित्ताकर्षक नारे का उद्द्देष्य है।

इतनी यातनाओं, इतने बड़े पैमाने पर नरसंहार झेलने के बाद भी यदि हम बचे हैं तो उसमें हमारी अद्ध्यत्मिक दर्शन का बहुत बड़ा हाथ रहा है। गुरु गोविंद सिंह अपने बच्चों के साथ आत्म बलिदान करने को प्रस्तुत हो जाते हैं क्योंकि वे जानते थे कि - "मृत्युर्ध्रुवो सत्यं जन्म मृत्यु तथैव च" : जन्म और मृत्यु तथा कर्मफल सिद्धांत से वे परिचित थे। वे जानते थे कि मृत्यु के बाद जन्म लेने की बाध्यता है इसलिए धर्म काज हेतु जीवन बलिदान करना सौभाग्य की बात है।
लेकिन शायद यही अध्यात्म हमारी कमजोरी भी बनी - क्योंकि "स्वभाव अध्यात्म उच्चयते",। हम अपने स्वभाव से ही दुनिया के हर मजहब और रिलीजन के व्यक्ति या व्यक्ति समूह को आकलित करते हैं। हमारे सॉफ्टवेयर में धर्म के जिन लक्षणों की अवधारणा थी, उसी से हमने उन लुटेरों के धर्म का भी आकलन करना चाहा जो अरब या यूरोप से आये। यही हमारी भूल और कमजोरी सिद्ध हुई और 1000 साल की गुलामी हमारे हिस्से में आई। अहिंसा धर्म का मूल है, लेकिन हिंसा रिलीजन और मजहब की आत्मा है , साधन है सिद्धांत है। झूंठ छल फरेब धर्म के विरुद्ध है लेकिन अलतकिया मजहब की मूलआत्मा है। मनसा वाचा कर्मणा एक होना धर्म का मूलमंत्र है जबकि मुख में अल्ला और जीसस, बगल में बाइबिल और कुरान तथा हाँथ में तलवार ये रिलीजन और मजहब की ताकत रही है। इसके लिए प्रमाण की आवश्यकता नही है। आज 120 देश मे ईसाइयत और 56 देशों में इस्लाम का प्रसार इन्ही नीतियों और इन्ही हथियारों से हुवा है।
ऐसे में जब हम नारा देते हैं कि -
"इयं निजः परोवेति गणना लघु चेतसाम।
उदार चरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम"।।
तो सोचना ये पड़ेगा कि जब हमारे महामानव ऋषियो ने इस मंत्र की रचना तब किया था जब दुनिया में छल झूंठ फरेब और "किताब" के कमांड्स पर संगठित डकैतों के गिरोहों का जन्म नहीं हुआ था जो धर्म को जऱ जोरू जमीन पर कब्जा करने की मैन्युअल से ज्यादा कुछ नहीं है।
ऐसा न होता तो शायद पृथ्वीराज चौहान ने गोरी को रणक्षेत्र में हराने के बाद भी बार बार क्षमा नहीं किया होता। क्योंकि पृथ्वीराज के सॉफ्टवेयर के मैन्युअल में वो एप्प्स नहीं डाउनलोड थे जिसको विशुद्ध हरामीपन कहा जाता है - अलतकिया। इसलिए उन्होंने ये मूर्खता किया था।
लेकिन परेशानी और चिंता की बात ये है कि ये मूर्खता आज भी जारी है।
जब हम "गोल्डन रूल ऑफ रेसिप्रोसिटी" या गोल्डन एथिकल रूल के बारे में लिखते हौ कि ये तो हमारे ऋषियों ने बहुत पहले लिखा था कि -
" श्रूयतां धर्मसर्वस्वम् श्रुत्वा चाप्यवधार्यात्म।
आत्मनः प्रतिकूलानि परेशां न समाचरेत।।
अर्थात "धर्म का जीस्ट सुनो और उसको धारण करो। कि जो कर्म अपने विरुद्ध प्रतीत होता हो वह दूसरों के साथ व्यवहार न करो।
लेकिन यह तो दो सभ्य सुसंस्कृत आर्य लोगों के बीच होने वाले व्यवहार की बात की जा रही है। परंतु जब बात एक तरफ विश्वकल्याण की भावना वाले सॉफ्टवेयर वालों का मसला हो और दूसरी तरफ दुनिया के जर जोरू और जमीन पर किसी भी यंत्र तंत्र मंत्र से कब्ज करने वालो का गिरोह हो , तो "वसुधैव कुटुम्बकम" जैसे नारे सिर्फ भाषण के लिए ठीक हैं, व्यवहार के लिए नहीं ।

क्लेश ऑफ सिविलाइज़ेशन में रहीम का ये दोहा एकदम सटीक है कि :
"कह रहीम कैसे निभै केर बेर के संग"
वह डोलत रस आपने उनके फाटत अंग"।
क्योंकि छल फरेब झूंठ धोखा ताकत तलवार के दम पर उन्होंने दुनिया की जऱ जोरू जमीन पर कब्जा किया है। ये उनका मोडस ऑपरेंडी है। इतिहास इस बात का गवाह है।
इसलिए वसुधैव कुटुम्बकम के साथ एक मंत्र और जोड़ लीजिये - "शठे शाठयम् समाचरेत"।

क्योंकि उनका नारा है -"Survival of Fittest". और फिटेस्ट की परिभाषा है - साम दाम दंड भेद से फिट फाट।
और आपका नारा है :
"आत्म मोक्षर्थाय सर्वभूतेषु हिताय च। न सिर्फ मनुष्यों वरण समस्त जीवों का हित ही मनुष्य धर्म है।

इसलिए नारा थोड़ा जोर शोर से लगाइये लेकिन सावधान इंडिया।

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