"अनवीक्षकी त्रयी वार्ता दण्डनीति इति विद्या "-- कौटिल्य
---------------------------------------- ----------------------
विद्या के चार अंग है --आन्वीक्षकी ,त्रयी वार्ता और दण्डनीति (शासन की नीति )
--आन्वीक्षकी --का अर्थ सांख्य ,योग और लोकायत --धर्म और अधर्म ,अर्थ -अनर्थ , सुशासन -दुशासन का ज्ञान
--त्रयी --ऋक ,साम और यजुर्वेद का ज्ञान
--,वार्ता --कृषि पशुपालन और व्यापार वार्ता विद्या के अंग हैं-- यह विद्या धान्य , पशु , हिरण्य ,ताम्र आदि खनिज पदार्थों के बारे में ज्ञान ।
स्वधर्मो ब्राम्हणस्य अध्ययनम अद्ध्यापनम् यजनम ,याजनम् दानं प्रतिग्रहेश्वेति ।
क्षत्रियस्य अध्ययनम यजनम दानं शश्त्राजीवो भूतरक्षणम् च ।
वैश्यस्य अध्ययनम यजनम दानं कृषिपशुपाल्ये वाणिज्य च ।
शूद्रश्य द्विजात शुश्रूषा वार्ता कारकुशीलव कर्म च "।
अर्थात - ब्राम्हण का धर्म , अध्ययन अद्ध्यापन यजन ,याजन दान देना और लेना है ।
क्षत्रिय का धर्म है अध्ययन यजन ,याजन दान देना शस्त्र जीवी और समस्त जीवधारियों की रक्षा एवं पालन पोषण है।
वैश्य का धर्म अध्ययन यज्ञ करना दान देना कृषि कार्य ,पशुपालन और व्यापार है ।
शूद्र का धर्म कि द्विज की सुश्रुषा करे , कृषि कार्य ,,पशुपालन और व्यापार करे ,और शिल्प शास्त्र ,गायन वादन में कुशलता प्राप्त करे ।
रेफ : वार्तादंडनीतिस्थापना ।
अब आगे देखें और क्या कहते हैं कौटिल्य ..
--प्राचीन आचार्यों का मत है कि तेज कि अतिशयता होने के कारण ब्राम्हण , क्षत्रिय वैश्य और शूद्र , इन चार वर्णों की सेनाओं में उत्तर उत्तर की अपेक्षा पूर्व पूर्व की सेना अधिक श्रेष्ठ है
--इसके विपरीत आचार्य कौटिल्य का मत है कि -" शत्रुपक्ष ब्रम्हानसेना के आगे नमस्कार करके या शीश झुका कर अपने वष में कर लेता है । इसलिए युद्धविद्या में निपुण क्षत्रिय सेना को ही सर्वाधिक क्ष्रेष्ठ समझना चाहिए ; अथवा वैश्य सेना तथा ....शूद्र सेना ... को भी श्रेष्ठ समझना चाहिए , यदि उनमें वीर पुरुषों कि अधिकता हो तो ।
बाबा जी ने अपनी पुस्तक #Whowereshudras में शूद्रास ( menials) लिखते हैं।
भाई कोण सी पुस्तक से पढ़े से बाबा जी?
कि शुद्र को menial job अलॉट किय्या गया ?
----------------------------------------
विद्या के चार अंग है --आन्वीक्षकी ,त्रयी वार्ता और दण्डनीति (शासन की नीति )
--आन्वीक्षकी --का अर्थ सांख्य ,योग और लोकायत --धर्म और अधर्म ,अर्थ -अनर्थ , सुशासन -दुशासन का ज्ञान
--त्रयी --ऋक ,साम और यजुर्वेद का ज्ञान
--,वार्ता --कृषि पशुपालन और व्यापार वार्ता विद्या के अंग हैं-- यह विद्या धान्य , पशु , हिरण्य ,ताम्र आदि खनिज पदार्थों के बारे में ज्ञान ।
स्वधर्मो ब्राम्हणस्य अध्ययनम अद्ध्यापनम् यजनम ,याजनम् दानं प्रतिग्रहेश्वेति ।
क्षत्रियस्य अध्ययनम यजनम दानं शश्त्राजीवो भूतरक्षणम् च ।
वैश्यस्य अध्ययनम यजनम दानं कृषिपशुपाल्ये वाणिज्य च ।
शूद्रश्य द्विजात शुश्रूषा वार्ता कारकुशीलव कर्म च "।
अर्थात - ब्राम्हण का धर्म , अध्ययन अद्ध्यापन यजन ,याजन दान देना और लेना है ।
क्षत्रिय का धर्म है अध्ययन यजन ,याजन दान देना शस्त्र जीवी और समस्त जीवधारियों की रक्षा एवं पालन पोषण है।
वैश्य का धर्म अध्ययन यज्ञ करना दान देना कृषि कार्य ,पशुपालन और व्यापार है ।
शूद्र का धर्म कि द्विज की सुश्रुषा करे , कृषि कार्य ,,पशुपालन और व्यापार करे ,और शिल्प शास्त्र ,गायन वादन में कुशलता प्राप्त करे ।
रेफ : वार्तादंडनीतिस्थापना ।
अब आगे देखें और क्या कहते हैं कौटिल्य ..
--प्राचीन आचार्यों का मत है कि तेज कि अतिशयता होने के कारण ब्राम्हण , क्षत्रिय वैश्य और शूद्र , इन चार वर्णों की सेनाओं में उत्तर उत्तर की अपेक्षा पूर्व पूर्व की सेना अधिक श्रेष्ठ है
--इसके विपरीत आचार्य कौटिल्य का मत है कि -" शत्रुपक्ष ब्रम्हानसेना के आगे नमस्कार करके या शीश झुका कर अपने वष में कर लेता है । इसलिए युद्धविद्या में निपुण क्षत्रिय सेना को ही सर्वाधिक क्ष्रेष्ठ समझना चाहिए ; अथवा वैश्य सेना तथा ....शूद्र सेना ... को भी श्रेष्ठ समझना चाहिए , यदि उनमें वीर पुरुषों कि अधिकता हो तो ।
बाबा जी ने अपनी पुस्तक #Whowereshudras में शूद्रास ( menials) लिखते हैं।
भाई कोण सी पुस्तक से पढ़े से बाबा जी?
कि शुद्र को menial job अलॉट किय्या गया ?
No comments:
Post a Comment