Monday, 6 August 2018

दक्षिण भारत मे हिन्दी के विरोध की पृष्ठीभूमि

 ईसाई धरमपरिवर्तको और डिवाइड एंड कन्वर्ट की राजनीति।

आज भी राष्ट्रभाषा हिन्दी का दक्षिणभारत में विरोध होता है और उसकी जगह देशी भाषा नही बल्कि विदेशी नग्रेजी भाषा को स्थापित करने की बात होती है।
ये रहस्य लोगों को समझ में नही आता। लेकिन ये रहस्य भी कोलोनियल शासन और मिशनरी गठबंधन से उपजे समस्कृत विरोध की रणनीति अपनाकर ईसाइयत की स्थापना करने के लिए किए गए षड्यंत्र की देन भर है।
1801 में HT Colerbrooke ने एक आर्टिकल लिखा कि सभी भारतीय भाषाएं संस्कृत से उतपन्न हुई हैं। और समस्त भारतीय भाषाओं को जोड़ती है।

इसका खंडन किया अलैक्सडर D कैम्पबेल और फ्रांसिस whyte Ellis , जो मद्रास का कलेक्टर था और मद्रास के फोर्ट सेंट कॉलेज में अच्छा प्रभाव था, जो भारत में आने वाले अंग्रेज अधिकारियो को भारत के बारे में टीचिंग का केंद्र था, ने ये दावा किया कि दक्षिण भारतीय भाषाएं संस्कृत से नही निकली हैं। इन दोनों ने मिलकर 1816 में "तेलगू भाषा का व्याकरण " नामक पुस्तक भी लिखी - जिसमे ये दावा किया गया कि तेलगू और तमिल गैर संस्कृत उत्पत्ति की भाषाएं है। ऐसा दावा इसके पूर्व किसी ने भी नही किया था।

एलिस ने दावा किया कि इन भाषाओं का संबंध हिब्रू और अरब भाषाओ से है। जिसके मूल में बाइबिल के नोह् के संततियों के द्वारा विश्व की पूरी धरती को आबाद करने का सिद्धान्त की स्थापना की गई थी ।

उनका तर्क ये था कि विलियम जोहन्स ने चूंकि नूह के बड़े पुत्र की भाषा को संस्कृत प्रमाणित किया है तो शेम ही द्रविड़ियन लोगो का पूर्वज रहा होगा । अतः तमिल भाषा का सम्वन्ध हिब्रू और प्राचीन अरब भाषा से है।

उसी समयकाल में मिशनरी रोबर्ट कॉडवेल (1814- 91) ने एलिस की कल्पना को समाजशास्त्र से जोड़कर किया कि द्रविड़ एक अलग नश्ल है और भारत में आर्यो के पूर्व से रहती आयी है । उसने Comparative Grammer of Dravidian Race नामक एक पुस्तक लौकही जो आज भी खासी लोकप्रिय है। उस पादरी ने ये दावा किया कि तेलगू भाषा में आर्यों के एजेंट ब्राम्हणो ने धूर्ततापूर्वक संस्कृत घुसेड़ दिया है। और प्रस्तावित किया कि द्रविड़ नश्ल के लोगों को आर्यो के चंगुल से मुक्त करके उनको ईसाइयत के प्रकाश में लाना पड़ेगा और तमिल भाषा से संस्कृत शब्द निकालने होंगे।
दूसरा मोड़ इसमें 1840 में आया जब जॉन स्टीवेंशन नामक पादरी स्कॉटिश मिशनरी और ब्रायन HH ने #एबोरिजिनल_लैंग्वेज का प्रस्ताव रखा और उसमें उसनव उन समस्त भाषाओ को समाहित किया जिनको आज द्रविड़ियन और मुंडा फैमिली की भाषाएं कहते है।

बाकी आगे इस झूंठ को आगे बढ़ने का काम पेरियार और दक्षिण भारत के अन्य नेताओं ने किया और आज भी कर रहे है । आज तमिलनाडु ईसाइयत का सबसे बड़ा केंद्र बन चुका है ।
तो वस्तुतः दक्षिणभारत में हिंदी विरोध नही होता बल्कि सफेद चमड़ी के हरामियों द्वारा फैलाया हुवा झूंठ और ईसाइयत के फैलाव के लिए आधार बनाने के लिए संस्कृत और ब्रमहिनिस्म का विरोध था , जो आज हिंदी विरिध का रूप धारण कर चुका है।

दक्षिण भारत के लोग भी संभवतः इस गहरी शाजिश से अपरिचित हैं। उत्तर भारतीयों के प्रति उनके अजीब रवैये( विशेषकर तमिलनाडु) को आप इसी पृष्ठिभूमि में समझ सकते हैं।

( ब्रैकिंग इंडिया से )

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