Sunday, 5 June 2016

नेहरू भारत के प्रथम प्रधानमंत्री ही नहीं , स्वतंत्र भारत के मानसिक गुलामी के नायक भी है

जब किसी देश का प्रधानमंत्री लिखता है - ‪#‎Diuscovery_Of_India‬ /
तो ये बात समझना चाहिए कि ये मानसिक गुलाम है / औपनवेशिक दास है /
क्यों ?
विल दुरान्त के अनुसार समुद्री डकैत और उनकी बर्बर सन्ताने एक सम्पन्न राष्ट्र मे व्यापारी बनकर आते हैं और छल छद्म द्वारा उस पर कब्जा करते हैं / और बाद मे उनकी क्षिकषा व्यवस्था चुराकर अपने देश मे ले जाकर अपने यहाँ लोगों को शिक्षित करते हैं /
भारत से लूटी हुयी संपत्ति से अपने देश मे इंडस्ट्रियल क्रांति करते हैं और दुनिया के विभिन्न देशों पर कब्जा करते हैं /
बाद मे रंग और नश्ल और रेलीजन की सुपेरिओरिटी कॉम्प्लेक्स के तहत उनही भारतीयों को बर्बर असभ्य और अंधविश्वासी करार देते हैं /
जोई जाहिल नम्बरिंग सिस्टम भी भारत से उधार ले जाते हैं , और बाद मे घोसित करते हैं कि उन्होने भारत की ‪#‎खोज‬ की /
जैसे उसके पूर्व भारत का अस्तित्व ही नहीं था /

भारत का प्रथम ‪#‎खूंखार_आधुनिक‬ व्यक्ति नेहरू , जो मौकाले की भाषा अपने लिए गर्व से प्रयुक्त करता है - रंग रूप और खून से भारतीय और सोच विचार से अंग्रेज़ (यूरोपियन ) , वो भी वही भाषा अपने मातृभूमि के लिए वही लिखता है - भारत एक खोज ; और उसको उसी की तरह के कार्लमार्क्स के शिष्य , जिसने नारा दिया था 1853 मे कि _"अंग्रेजों के पास दो कार्य है - एक विध्वंशक - भारत की सभ्यता का विनाश , और दूसरी रचनात्मक - भारतीय समाज पर पश्चिमी भौतिकवाद की नीव कि स्थापना ; इन मरकसिए बंदरों ने उस गुलाम मानसिक दास की प्रशंसा के गीत लिख लिख कर पोथियान लिख मारी , तो क्या इतिहास और इन नायको के चरित्र का पुनरावलोकन का समय नहीं आ गया है /

जो समृद्ध भारत हजारों साल से विश्व जीडीपी का एक चौथाई हिस्से का मालिक रहा हो , और मात्र 150 सालों की लूट के कारण इस तरह बरबादी के कगार पर पहुँच जाता है , कि उस समृद्धि के उत्पादकों मे 2.5 करोड़ लोग 1875 से 1900 के बीच ( कुल जनसंख्या 22 करोड़ , उसका दसवा हिस्सा ) भूंख से इसलिए मर जाता है कि उसके पॉकेट मे अन्न खरीदने का पैसा नही था / और जो ‪#‎दूसरा‬ खूंखार ‪#‎आधुनिक‬ चरित्र 1942 मे अंग्रेजों के साथ खड़ा हो , जब भारत ने अंग्रेजों भारत छोड़ो का नारा दिया , और जिसमे हजारों लोग जेल गए और हजारों लोगों ने प्राण त्यागे / उसी व्यक्ति ने उन समृद्धि के निर्माताओं की दुर्दशा का कारण वेद और स्मृतियों मे खोजकर , उनकी वंशजो के मन मे 3000 साल की गुलामी घृणा और कुंठा का बीज बोया हो / और फिर मरकसिए बंदरों ने उनको महानायक बनाकर भारतीय समाज को तोड़ने कि कोशिश की हो , तो क्या इतिहास के पुनरावलोकन की आवश्यकता महसूस नहीं होती ? क्या उस महानायक के बारे मे फिर से नए चिंतन और तथ्यों के अदध्ययन की आवश्यकता महसूस नहीं होती ?
क्या वे उस औपनिवेशिक दासता से मुक्त थे , जिनहोने लूट अत्याचार के साथ साथ देश के इतिहास को भी तोड़ मरोड़ के पेश क्या ; जिसको स्वतन्त्रता के 70 साल बाद भी जस का तस हमारे बच्चों को पढ़ाया जा रहा है /

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