Sunday 5 June 2016

वर्ण व्ययस्था की ख़ूबसूरती।

वर्ण व्ययस्था की ख़ूबसूरती।
अध्यययन अद्ध्यापण जो करे और करवाये , लेकिन वो अपने ज्ञान को दूसरों को शिक्षित करने और समाज के लिए नियम कानून बनाये - वो ब्रम्हाण है ।उसकी एक और विशेषता ये थी कि वो नियम कानून को अपने हित में प्रयोग नही करेगा । और अपरिग्रही रहेगा । क्योंकि अपरिग्रही रहेगा इसलिए उसके भरण पोशण की जिम्मेदारी समाज पर रहेगी । इसलिए उसको भिक्षा और सिद्ध अन्नम से जीने का नियम बनाया हमारे पूर्व आचार्यों ने ।

आज भांति भांति के NGOs उसी काम के लिए सर्कार से पैसा पेलकर रेल पेल बम्बई मेल हुए जा रहे है तो किसी को अनुचित प्रतीत नही होता और न आँखें उनके कोटरों से बाहर निकलती है ।

मनु वादी ब्राम्हणो ने ये भी नियम बनाया कि - एक ही अपराध के लिए चेतना के स्तर पर ही दंड दिया जाना चाहिए ।
अर्थात एक ही अपराध के लिए शूद्र को सबसे कम , वैश्य को उससे ज्यादा , क्षत्रिय को उससे ज्यादा और ब्रम्हाण को सबसे ज्यादा ।

लेकिन 1820 -30 के बाद शूद्रों के बेरोजगार होने के पूर्व ब्राम्हण ही एक ऐसा समुदाय था , जो उनसे पहले बेरोजगार हुवा , मैकाले की शिक्षा नीति के आने से ।

लेकिन लोकतंत्र का अभिशाप देखिये - नीति वो अपनपढ़ बनाएगा जो शासक भी है ।
इसलिये नीति बनाने में अपना हित भी साधेगा - और भिक्षा पर जीवित नहीं रहेगा ।
विकास के नाम पर अपने लिए फण्ड का अपने लिए बंटवारा करव्वायेगा ।

और उसमे दलाली खायेगा।
MLA और MP फण्ड ।

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