Saturday 21 May 2016

बच्चों को स्कूलो में धार्मिक शिक्षा क्यों नही दी जा सकती है ?

यद्यपि यूरोप मे सेकुलरिस्म का आविसकार मजबूरी मे हुआ था क्योंकि यूरोप मे रोमन साम्राज्य और संस्कृति के इसाइयत द्वारा विनाश किए जाने के बाद शासन के अधिकार की खींचतान चर्च और राजा के बीच लंबे समय तक चलता रहा / उसका उदाहरण है 1600 मे चर्च द्वारा ब्रुनो नामक वैज्ञानिक की आग मे डालकर हत्या करने का जघन्य दुष्कर्म का करना / क्योंकि उसने heliocentric Theory का प्रतिपादन किया था जिसके अनुसार पृथ्वी सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाती है , जोकि होली बाइबल की अवधारणा के विपरीत है / कालांतर मे गैलीलियो को भी इसी थियरी को आगे बढ़ाने के कारण उम्रक़ैद की सजा सुनाई गई /
इसलिए लोकतान्त्रिक परंपरों की शुरुवात होने पर यूरोप मे चर्च को राज काज मे दखल देने से रोकने का जो नया सिस्टम गठित किया गया उसे सेकुलरिस्म का नाम दिया गया,  जिसकी उत्पत्ति भी ग्रीक शब्द से है /

भारत मे भी सेकुलरिस्म है , इस बात से सहमत होना पड़ेगा क्योंकि संविधान मे लिख दिया गया है / यूरोप और अम्रीका का सेकुलरिस्म भारत से किस तरह भिन्न है उस पर चर्चा नहीं करूंगा /

चर्चा जिज्ञासा और सुझाव का एक अलग मुद्दा है आज /

अम्रीका और यूरोप मे सेकुलरिस्म है लेकिन वहाँ भी विभिन्न धर्मों को स्कूल और विश्वविद्यालय मे पढ़ाये जाने का प्रावधान है /Inter Religious Institutes हैं // और अगर उनके देशों मे ये हो रहा है तो उसको अपने देश मे क्यों न लागू किया जाय ? आखिर आज हम उनही को तो अपना आदर्श मानते है / और नहीं भी मानते तो सेकुलर राज मे भी अपने धर्म मजहब और रेलीजन का ज्ञान तो होना ही चाहिये , क्योंकि वही तो मूलाधार है चरित्र का /

इस्लाम और ईसाई मत के मानने वाले भी इस बात से सहमत होंगे कि धर्म रेलीजन या मजहब का उद्देश्य मनुष्यों मे अच्छे चरित्र का निर्माण , उनके चरित्र मे मानव मात्र के लिए दया भाव , और विश्व कल्याण की भावना को प्रवाहित  करना है /
तो क्यों न एक काम किया जाय कि सभी धर्म मजहब और रेलीजन के धर्माचार्यों के मत अनुसार बाइबल कुरान और हिन्दू धर्म शास्त्रों  के नीति वाक्य बच्चों के प्रथम कक्षा से ही उनके पाठ्य क्रम का हिस्सा बनाया जाय ? कक्षा 1 से 5 तक हर धर्म के 10 - 10 नीति वाक्य , 6 से 10 तक 20 नीति वाक्य , और 11 से ग्रेजुएशन तक  30 - 30 नीति वाक्य पढ़ाएँ जाय /

जिस चीज का विरोध होने की समभावना  है , उसका समाधान भी दे रहा हू / ये तर्क किया जा सकता है कि मुस्लिम बच्चे हिन्दू शास्त्र क्यूँ पढे और क्यों उसका इम्तहान दे , या फिर बाकियों के भी इसी तरह की  आपत्तियाँ हो सकती हैं / तो उसके लिए ये सुझाव है कि किसी भी धर्म मजहब और रेलीजन के छात्र के लिए दूसरे धर्मों के नीति वाक्य न ही पढ़ने की बाध्यता हो और न ही उसमे इम्तिहान देकर पास होने की / सिर्फ अपने धर्म के नीतिवाक्य पढे और उसी का इम्तिहान दें /

अब एक समस्या आएगी वामपंथियों की जो नास्तिक हैं / यद्यपि उनकी संख्या बहुत कम है फिर भी उनको नीति वाक्य पढ़ने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता क्योंकि चरित्र उनके लिए प्रायः गौड़ है / तो उनको चारवाक दर्शन या कताई बुनाई जैसे विकल्प दिये जा सकते हैं /

PMO India Rajnath Singh Smriti Zubin Irani

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