Thursday, 27 October 2016

Summary of Early Part Of "Battle For Sanskrit"

अभी तक जो पढा उसकी समरी :
यूरोप के लुटेरे जब् भारत आये तो हास्टिंग्स के जमाने में विलियम जोहंस जैसे लोग मात्र एक वर्ष में संस्कृत सीखकर मनुस्मृति का अनुवाद कर देते है , जिससे ईस्ट इंडिया कंपनी के लोगो को भारत के हिन्दुओ को शासित करने में भारतीय रीति रिवाज में दखल न् देना पड़े।
लेकिन उसकी समस्या ये थी कि हिन्दू संस्कृति बिब्लिक संस्कृति से पुराणी थी । इसलिए उसको सभी चीजें बाइबिल के जेनिसिस के अनुरूप ही वर्णित करनी थी। इसलिए उसने सारे भारतीय ग्रंथो का समयकाल उसी के अनुरूप रखा ।उसको #फिलोलोजिस्ट कहा जाता है ।उसका समयकाल था 1885 के आस पास।
अगले एक शतक तक संस्कृत और संस्कृति के साथ यही रोमांस किया जाता है ।
फिर 1900 के आसपास आता है मैक्समूलर । जिसने आर्य बाहर से आये नामक एक कथा रची जो जर्मनी को शुद्ध आर्य बनाकर अपने ही देशवासियों को चुन चुन के मारता है क्योंकि वे यहूदी थे ।
इस सीरीज के विदेशी संस्कृतज्ञों को #इंडोलॉजिस्ट कहा जाता है ।
लेकिन दूसरे विश्वयुद्ध के बाद ये शक्ति केंद्र ब्रिटेन से शिफ्ट होकर अमेरिका चली जाती है तो साजिश का केंद्र भी ऑक्सफ़ोर्ड से बदलकर हावर्ड और कोलुम्बीया विश्वविद्यालय पहुँच जाता है ।
अब जब् उन्होंने संस्कृत ग्रंथो का अद्ध्ययन शुरु किया तो उनके पूर्वजों के कर्म और चरित्र उनके संस्कृत के व्याख्यान में आ रहे है । ये 1978 के आस पास एक नए नाम् से जाने जाते है जिनको #ओरेंटलिस्ट कहा जाता है ।
उनके पूर्वजों के क्या कर्म थे ?
जब् यूरोप से कोलूम्बस् अमेरिका पहुंचा तो वहां के मूलनिवासियो को वो इंडियन और खुद को यूरोपीय कहते थे । और जिस इलाके पर इंडियन का कत्ल करते थे और कब्जा करते थे उसको उसको #सेटलमेंट कहते थे ।
बाद में जब् अन्य यूरोपीय देशों के लोग वहां पहुंचे तो खुद को क्रिस्चियन और वहां के नेटिव को heathen कहते थे ।
बाद में ईसाई मिशनरियां जब् वहां के नेटिव को इसाईं बनाने में , और जिसने विरोध किया उसका क़त्ल करने में सफल रही ; तथा तब तक वहां खेती के लिए काले अफ्रीकन गुलाम को लाने में सफल रही तो खुद को वाइट और उनको ब्लैक बोलने लगी ।
बाद में इस नाशलभेद का राजनेटिक विरोध हुवा तो उन्होंने वाइट को caucasean से बदल दिया ।
ये 1600 से 1900 की कहानी है ।
इनके सेटलमेंट के बॉर्डर के बाद जो लोग रहते थे उनको #फ्रंटियर कहा जाता है। फ्रंटियर के बाद के इलाके में इनके अनुसार sabage यानि बर्बर लोग रहते थे ।
लेकिन इनके इलाके पर कब्जा कर साम्राज्य को बढ़ावा देना था तो इस्के लिए एक स्ट्रेटेजी तैयार हुई।
इनके साथ 'गुड कोप' और 'bad कोप' का खेल खेला गया।
गुड कोप उनके बीच जाकर प्यार मोहब्बत से रहता था यहाँ तक की उनकी औरतों से शादी कर लेता था । यहाँ तक कि उनकी तरंफ से 'बैड कोप' से लड़ाई कर लेता था। लेकिन उसकी प्लानिंग लॉन्ग टर्म में उनका उन्मूलन या धर्म परिवर्तन करना होता था ।
Natives में भी दो तरह के लोग होते थे एक डेंजरस और दूसरा नोबल।
जो अपने अधिकार और भूमि को त्यागने के लिए तैयार न् हो वो डेंजरस - उसको बैड कोप की आर्मी से विनष्ट करना ।
जो समझौता करने को तैयार है - वो नोबल । उसको गुड कोप इसाई बना देगा ।
#एट्रोसिटी_लिटरेचर :
वहां की academicia इन सैवेज और डेंजरस लोगों के रहन सहन , पूजा पाठ (मूर्तिपूजा) को पिछड़ा अंधविश्वासी और प्रिमिटिव संस्कृति घोसित करने के साहित्य से बाजार अंटे पड़े है ।
इस साहित्य के जरिये ये उन डेंजरस लोगो के ऊपर हिंसा करने और उनको सभ्य बनाने का आधार बनाते थे ।
इन बर्बरों की संस्कति को एक ऑप्रेसिव संस्कृति का एक साहित्य तैयार किया जाता है जिनमे इन्हें बच्चों औरतों और समाज के निचले तबके (जिनको आज #सबाल्टर्न कहा जाता है ) के ऊपर अत्याचार की कथाएं गढ़ना ।
#भारतीय_वामपंथी को #गोंद लेने की stretegy :
भारत में नेहरू के जमाने से ही एक इंटेलीजेंट अकादमिक विंग तैयार हुयी जिनकी संस्थानों और शासन में अच्छी पकड़ थी । लेकिन 1990 में सोवियत रूस के पतन के बाद इनकी स्थिति त्रिशंकु जैसी हो गयी ।
ऐसे में जिस तरह रूस के नुक्लेअर साइंटिस्ट्स को सीआईए ने अपने यहाँ शरण दी , वैस्र ही भारत के इन वामपंथियों को अमेरिका ने शरण दी ।सीआईए ने फोर्ड फाउंडेशन जैसी संस्थाओं से इनको सारी मदद की ।
उसी की पैदाइश रोमिला थापर और इरफ़ान हबीब है ।
इन वामपंथियों संस्कृत साहित्य का सहारा लेकर सबाल्टर्न कहानियां और साहित्य रचना शुरू किया ।
और वे प्रसिद्द और सम्मानित भी होते रहे ।
लेकिन इनकी दिक्कत ये थी कि इनको संस्कृत नहीं आती थी तो इनको कोई भी जानकार पटखनी दे देता था ।
ऐसे में जब् भारत सरकार से अनेकों पुरस्कार लिए शेल्डन पोलॉक की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है , जिनको इनफ़ोसिस जैसी भारतीय इंडस्ट्री के आँख के अंधे और गांठ के पूरे पोलॉक जैसे लोगो को फण्ड देते है ।
और पोलॉक जैसे लोग अब मैक्समूलर और जॉन मुइर की तरह ओरिजिनल संस्कृत टेक्स्ट्स लिखेंगे और संस्कृत तो पोलिटिकल और ऑप्रेसिव भाषा सिद्ध करेंगे , जिससे भारत के उन वामपंथियों को मदद मिलेगी जो संस्कृत ह्यी पढ़ सकते ।
दुर्भाग्य से जो ट्रेडिशनल संस्कृतज्ञ है , उनको न् इस शाजिस की जानकारी है, न् उनके पास संसाधन है और न् ही उनके अंदर इस खड्यंत्र से लड़ने का तरीका।

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