ये
तो सब जानते हैं कि किसी देश की जीडीपी का क्या महत्व है / इस देश के
निर्माण मे अगर सम्मान होना चाहिए तो या तो उसका हो जो निस्वार्थ सेवा कर
रहा है , या निस्वार्थ ज्ञान प्राप्त कर उसको समाज को निस्वार्थ वितरित कर
रहा है - जिसको हम कभी ब्रामहन के नाम से जानते थे /
या तो उसका सम्मान होना चाहिए जो देश और समाज के लिए अपने प्राण प्रस्तुत करने के लिए उद्धत रहता है - जिसे हम कभी क्षत्रिय कहते थे /
फिर उनका सम्मान होना चाहिए जो सममानपूर्वक बिना चोरी चमारी किए देश के कृषि , उत्पादन , और जीडीपी के प्रॉडक्शन मे अपना श्रम देते हैं जिसमे टेच्नोक्रटेस कृषक व्यापारी और सर्विस क्लास आदि आते हैं जिनको वैश्य या शूद्र कहते थे /
एक नजर भारत के जीडीपी पर :
स्वरोजगार - 50 %
कृषि - 18 %
कॉर्पोरेट - 14 %
सरकार - 18 %
( प्रोफ आर वैद्यनाथन )
लेकिन आज सम्मान की जहां तक बात होती है तो शायद वो समाज मे किसी के किए हुये प्रतिदान के inversely Proportionate है /
भारत के प्रति जिसका जितना कम योगदान - उसका उतना ही बड़ा सम्मान /
देश के लिए सुरक्षा उपकरण तैयार करने वाले इंजीनियर या जीवन की रक्षा करने वाले डॉ के सेलेकशन पर , या देश को स्वरोजगार देकर भारत की जीडीपी मे 50 % योगदान देने वाले लोगों के प्रति, जिनमे से प्रायः क्लास 10 से ऊपर पढे नहीं है , या फिर देश को अपने खून पसीने से उपजाए हुये अन्न से लोगों के पेट पालने वाले किसानों के प्रति क्या हमारा सम्मान का रवैया है ?
नहीं है /
वरना देश मे उनका भी उतना ही सम्मान किया जाता जितना एक unskilled व्यक्ति के मात्र cognitive knowledge (जो कि किसी व्यक्तित्व के ज्ञान का मात्र 20 प्रतिशत होता है ) के आधार पर एक परीक्षा उत्तीर्ण करने वाले IAS मे पास होने पर किया जाता है /
क्योंकि हम अभी भी मानसिक गुलामी से बाहर नहीं आ पाये ?
या
पोप की सत्ता कायम है , जिसमे सरकार के दिये गए वेतन के अलावा प्राइवेट business ( फमझ रहे हैं न ) द्वारा वेतन के कई गुना धन कमाने की प्रक्रिया का हम आज भी उतना ही आदर और सम्मान करते हैं ?
या तो उसका सम्मान होना चाहिए जो देश और समाज के लिए अपने प्राण प्रस्तुत करने के लिए उद्धत रहता है - जिसे हम कभी क्षत्रिय कहते थे /
फिर उनका सम्मान होना चाहिए जो सममानपूर्वक बिना चोरी चमारी किए देश के कृषि , उत्पादन , और जीडीपी के प्रॉडक्शन मे अपना श्रम देते हैं जिसमे टेच्नोक्रटेस कृषक व्यापारी और सर्विस क्लास आदि आते हैं जिनको वैश्य या शूद्र कहते थे /
एक नजर भारत के जीडीपी पर :
स्वरोजगार - 50 %
कृषि - 18 %
कॉर्पोरेट - 14 %
सरकार - 18 %
( प्रोफ आर वैद्यनाथन )
लेकिन आज सम्मान की जहां तक बात होती है तो शायद वो समाज मे किसी के किए हुये प्रतिदान के inversely Proportionate है /
भारत के प्रति जिसका जितना कम योगदान - उसका उतना ही बड़ा सम्मान /
देश के लिए सुरक्षा उपकरण तैयार करने वाले इंजीनियर या जीवन की रक्षा करने वाले डॉ के सेलेकशन पर , या देश को स्वरोजगार देकर भारत की जीडीपी मे 50 % योगदान देने वाले लोगों के प्रति, जिनमे से प्रायः क्लास 10 से ऊपर पढे नहीं है , या फिर देश को अपने खून पसीने से उपजाए हुये अन्न से लोगों के पेट पालने वाले किसानों के प्रति क्या हमारा सम्मान का रवैया है ?
नहीं है /
वरना देश मे उनका भी उतना ही सम्मान किया जाता जितना एक unskilled व्यक्ति के मात्र cognitive knowledge (जो कि किसी व्यक्तित्व के ज्ञान का मात्र 20 प्रतिशत होता है ) के आधार पर एक परीक्षा उत्तीर्ण करने वाले IAS मे पास होने पर किया जाता है /
क्योंकि हम अभी भी मानसिक गुलामी से बाहर नहीं आ पाये ?
या
पोप की सत्ता कायम है , जिसमे सरकार के दिये गए वेतन के अलावा प्राइवेट business ( फमझ रहे हैं न ) द्वारा वेतन के कई गुना धन कमाने की प्रक्रिया का हम आज भी उतना ही आदर और सम्मान करते हैं ?
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