Thursday, 26 July 2018

#अछूत और #दलित (Depressed Class ) की उत्पत्ति का कारण , #पृष्ठीभूमि_और_इतिहास ।

#अछूत और #दलित (Depressed Class ) की उत्पत्ति का कारण , #पृष्ठीभूमि_और_इतिहास ।
एक मजेदार बात -- डॉ #अंबेडकर ने कभी भी #दलित (Depressed Class ) शब्द का प्रयोग नहीं किया , बल्कि उन्होने शूद्र और #अछूत शब्द का प्रयोग किया।
इसके विपरीत ब्रिटीशेर्स ने अपने किसी भी शासकीय दस्तावेज मे #अछूत शब्द का प्रयोग नहीं किया , बल्कि #Depressed Class और #Oppressed क्लास का प्रयोग किया ।
इस लोचे को समझने के लिए पढ़ें --
Any Besant's Comparison of "British one tenth submerged" and "India's "Generic One Sixth Depressed Class". Both are the Same
Any Besant's Comparison of "British one tenth submerged" and "India's "Generic One Sixth Depressed Class". Both are the Same।
ये एक ऐतिहासिक डॉक्यूमेंट हैं जो आंबेडकर साहित्य का हिस्सा है । डॉ आंबेडकर ने जिस एनी बेसेंट को "Depressed Class " की स्थापना के लिए उद्धरत किया था । उनका 1928 के साइमन कमिशन से संवाद को अवश्य पढ़ें ।
उसी तथ्य को मैं एक नए नजरिये से पेश कर रहा हूँ ।
डॉ आंबेडकर ने द्रविड़ शूद्र , अतिशूद्र अछूत भंगी आदि शब्दों को एक जगह जोड़कर उनको एक नए वर्ग से संबोधित किया , जिसको गांधी जी हरिजन के नाम से बुलाते थे।
अब एक नजर नयी रेसेअर्चेस के जरिये इस स्टेटमेंट को समझने की कोशिश करते हैं ।
Angus Madison ने "वर्ल्ड इकनोमिक हिस्ट्री " नामक एक शोधग्रंथ प्रकाशित किया 2000 AD में, जिसमें उसने 0AD से 2000AD तक का विश्व का आर्थिक इतिहास पर शोध किया है। उसके अनुसार 0AD से 1750 तक भारत पुरे विश्व की कुल जीडीपी का 25 प्रतिशत के आसपास की जीडीपी का हिस्सेदार रहा है (मुग़ल अत्याचार और लूटपाट के बावजूद ) जबकि 1750 तक ब्रिटेन और अमेरिका दोनों की मिलकर मात्र 2 प्रतिशत GDP का हिस्सेदार था। 1900 आते आते ब्रिटिश लूट और भारतीय उद्योंगो का विनाश के कारन मामला एकदम upside down । भारत की जीडीपी बचती है मात्र 2 प्रतिशत और ब्रिटेन और अमेरिका 42 प्रतिशत GDP के हिस्सेदार । पॉल कैनेडी की बुक राइज एंड फॉल ऑफ़ ग्रेट पावर्स में में पॉल बैरोच नामक इकोनॉमिस्ट के अनुसार भारत में पैर कैपिटा industrialization भयानक कमी आयी। वही जहाँ 1750 per capita industrialisation जहाँ भारत और इंग्लॅण्ड का लगभग एक बराबर होता है , 1900 आते आते ब्रिटेन की per capita industrialisation में 1000 प्रतिशत का इजाफा होता है , वहीं भारत में percapita industrialisation में लगभग 700 की कमी आती हैं ।
इस बात की पुस्टि 1853 में #कार्ल_मार्क्स के छपे एक लेख से भी की जा सकती है जिसमे उसने लिखा है कि 1815 में जहाँ ढाका में डेढ़ लाख अर्टिसन निवास करते थे , 1835 आते आते मात्र 20 हजार अर्टिसन बचते हैं /मात्र 20 सालों मे ढाका का मशहूर मलमल बनाने वाले एक लाख 30 हजार manufacturers , कहाँ गए ? क्या हुआ उनका और उनकी संततियों का ? कोई इतिहासकर नहीं बताता।
यानि जहाँ एक तरफ भारत का अर्टिसन बेरोजगार और बेघर हो रहा है , इन 150 वर्षों में वहीँ इंग्लैंड के लोग रोजगार युक्त हो रहें है । अब इस तथ्य को एनी बेसेंट के स्टेटमेंट की तराज़ू पर तौलें तो पाएंगे कि 1909 में इंग्लैंड में industrialisation कि क्रांति के बावजूद देश का एक तबका जिसको एनी बेसेंट ने इंग्लैंड के "one टेंथ submerged जनसँख्या कि तुलना " भारत के बेरोजगार और बेघर हुए " जेनेरिक one sixth depressed क्लास " से करती हैं , जिनकी आर्थिक सामजिक , शैक्षणिक और जीवन पालन करने का तरीका एक जैसा ही हैं ।
आपको क्या ये आर्थिक व्याख्या उचित नहीं प्रतीत होती ? डायरेक्ट एविडेंस के बजाय आप अछूतों और शूद्रों को स्मृतियों और वेदों में खोजने लगते हैं । (Please Read Below to see How Dr Ambedkar Quoted To Any Besant ) प्रस्तुत है एनी बेसंट का मत अछूत दलित या Depressed क्लास के बारे मे :
Classes
By Annie Besant
[Indian Review, February 1909 edition]
"हर देश मे सामाजिक पिरामिड कुछ इस तरह का होता है कि समाज एक बहुत बड़ा वर्ग अशिक्षित अज्ञानी भाषा और रहन सहन और आदत से गंदा होता है जो समाज के लिए आवश्यक महत्वपूर्ण काम करता है लेकिन वो उसी समाज से तिरस्कृत और उपेक्षित रहते हैंThe Uplift of the Depressed , जिसके लिए वो काम करता है । इंग्लैंड मे इस वर्ग को submerged tenth के नाम से जाना जाता है जो जनसंख्या का दसवां हिस्सा है । ये भुखमरी के कगार पर हैं और जरा सा भी दबाव बर्दाश्त नहीं कर सकता । ये कुपोषण का शिकार है जिसकी वजह से बीमारी से ग्रस्त होता रहता है । मंदबुद्धियों का जैसा स्वभाव होता है , उसी तरह बच्चे तो ये बेहिसाब पैदा करते हैं परंतु इन बच्चों कि मृत्यु दर बहुत ज्यादा है , ये कुपोषित हैं सूखा रोग से ग्रस्त और विकांगता से ग्रस्त हैं । इनमे जो अच्छे किस्म के लोग हैं उनमे unskilled मजदूर हैं जो भंगी मेहतर और स्वीपर का काम करते है ,समुद्र के घाटों पर काम करने वाले मजदूर और गली गली घूम कर समान बेचने वाले लोग शामिल है ; और जो खराब किस्म के लोग हैं वो समाज के निकम्मे और कामचोर दारुबाज़ लोफ़र coarsely dissolute tramps vagabonds घटिया किस्म के अपराधी और गुंडे हैं । पहले किस्म के लोग प्रामाणिक तौर पारा ईमानदार और मेहनतकश है और अपनी रोजी रोटी कमाने मे सक्षम हैं , लेकिन दूसरी किस्म के लोगो नियंत्रित करना पड़ता है और उनको रोजी रोटी कमाने के लिए जबर्दस्ती काम करवाना पड़ता है । भरता मे, ये वर्ग जनसंख्या का छठवा हिस्सा बनाता है जिसको हम मोटे तौर पर (generic ) “Depressed क्लास” कहते हैं। "
नोट - ध्यान रखे कि ये वो समकाल था , जब 1875- 1900 के बीच करीब दो करोण भारतीय अन्न के अभाव मे भुंख से मर गए थे / और Will Durant के 1930 के लेखन के अनुसार लोग इस भुंख से जान बचाने के लिए शहरों की तरफ भागे , और जो उनमे सौभाग्यशाली थे उनको गोरों का मैला साफ करने का काम मिल गया क्योंकि जब गुलाम इतने सस्ते हों तो शौचालय बनवाने का झंझट कौन पाले ?

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