भारत हजारों वर्षों से दुनिया का सबसे धनी समाज और देश था। लेकिन हम जानते थे कि भौतिक उपलब्धि मनुष्य के खुशी का आधार नही बन सकता क्योंकि मनुष्य के पास सिर्फ शरीर ही नही है, जिसकी समस्त भौतिक आवश्यकता को अधिकतम पूर्ति के उपरांत भी खुशी हैप्पीनेस और जॉय नही मिल सकता, उसके पास अंतः करण भी है । हैप्पीनेस अंतःकरण का विषय है, शरीर का नहीं।
इसलिए हमारे ऋषियों और मुनियों से भौतिक जगत की आवश्यकता की पूर्ति हेतु यांत्रिक शिल्प शास्त्र ( साइंस) के विकास के साथ साथ मनोविज्ञान ( अंतः करण) को समझने के लिए विज्ञान पर अपना ध्यान सबसे अधिक केंद्रित किया।
लेकिन अद्ध्यत्मिक पुस्तको में #इनफार्मेशन_टेररिज्म से पीड़ित विद्वान समाजिक शास्त्र खोजते रहते हैं।
#कठोपनिषद में सम्पूर्ण अंतःकरण का विज्ञान यम और नचिकेता संवाद के रूप में लिखा गया है। इन मूर्खो से पूंछो कि आज तक कोई यम से संवाद कर पाया है?
इसको प्रतीकात्मक शैली कहते हैं।
खैर।
अंतःकरण के ज्ञान को प्राप्त करने के लिए जब नचिकेता यम से निरन्तर आग्रह करता है तो यम उसको तमाम धन वैभव राज्य सुंदरियों आदि की लालच देकर टालना चाहते हैं।
लेकिन नचिकेता कहता है कि - वित्तेन न तर्पड़ियो मनुष्यो। अर्थात शारीरिक विषय भोगों से मनुष्य तृप्त नही होता।
तब जाकर यम उसको अंतः करण का ज्ञान देते हैं। अर्थात अंतः करण का दान लेने की पात्रता सिद्ध होने पर ही वह ज्ञान शिष्य को देने का विधान था।
इसको प्रतीकात्मक शैली कहते हैं।
खैर।
अंतःकरण के ज्ञान को प्राप्त करने के लिए जब नचिकेता यम से निरन्तर आग्रह करता है तो यम उसको तमाम धन वैभव राज्य सुंदरियों आदि की लालच देकर टालना चाहते हैं।
लेकिन नचिकेता कहता है कि - वित्तेन न तर्पड़ियो मनुष्यो। अर्थात शारीरिक विषय भोगों से मनुष्य तृप्त नही होता।
तब जाकर यम उसको अंतः करण का ज्ञान देते हैं। अर्थात अंतः करण का दान लेने की पात्रता सिद्ध होने पर ही वह ज्ञान शिष्य को देने का विधान था।
खैर। अभी पाश्चात्य देशों को दुनिया मे धन वैभव का सम्राट बने मात्र 150 वर्ष से अधिक नही हुवा है। लेकिन आज अमेरिका जैसे धनी देश मे 40% लोग आजीवन या जीवन मे किसी समय साइकियाट्रिक ड्रग्स की शरण मे रहने को बाध्य हैं।
क्या यह विचार नही होना चाहिए कि शिंक्षा और विकास का मॉडल क्या हो ?
क्या हम दूसरों की समस्याओं से सीख नहीं ले सकते?
पश्चिम का बिना विचार किये अंधानुकरण क्या आपको वहीं नहीं ले जाएगा , जिस खोह में वह आज स्वयम भहरा चुके हैं।
क्या हम दूसरों की समस्याओं से सीख नहीं ले सकते?
पश्चिम का बिना विचार किये अंधानुकरण क्या आपको वहीं नहीं ले जाएगा , जिस खोह में वह आज स्वयम भहरा चुके हैं।
विचारिए।
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