Thursday 26 July 2018

शरीर और अंतःकरण

शरीर और अंतःकरण यह दो भाग होते हैं हर जीव के।
मनुष्य का अंतःकरण अन्य जीवों से ज्यादा विकसित होता है। और यह जीव के लाखों सालों के एवोल्यूशन का परिणाम है।
स्पष्ट है कि जो मेरी पोस्ट पढ़ रहे हैं वे भौतिक रूप से, बहुत सारे भारतीयों से समृद्ध हैं। जो समृद्ध नहीं है वे जीवन यापन हेतु शरीर का अधिक से अधिक उपयोग करते हैं, और स्वस्थ रहते हैं - शारीरिक रूप से और मॉनसिक रूप से भी। वे अंतः करण के जाल में नहीं फंसते।
जो यह पोस्ट पढ़ रहे हैं, वे याद करें कि विगत वर्षों में शारीरिक रूप से कितना पीड़ित रहे हैं और मॉनसिक रूप से कितना पीड़ित रहे हैं ?
बाकी जीव यदि शरीर रक्षा के लिए भोजन की व्यवस्था हो जाय तो वह निश्चिंत हो जाते हैं। कोई तनाव नहीं। कहीं भी रह लेंगे, निश्चिंत सो जाएंगे।
मनुष्य की समस्या ही भोजन की व्यवस्था होने के बाद शुरू होती है - अतः करण में चिंता तनाव स्ट्रेस आदि आदि।
हमारे जितने शास्त्र हैं, वे मात्र अंतःकरण को समझने, और उसके देखभाल की तकनीक पर लिखे गए हैं।
शाश्त्रो के अनुसार जो इस पिंड में है वही ब्रम्हांड में है : यथा पिंडे तथा ब्रम्हांडे। और इस पिंड की प्रकृति को समझना ही आत्म साक्षात्कार कहलाता है।
इसी पिंड के अंतः करण में देव और असुर दोनों रहते हैं।  मनुष्य में जन्म के समय दोनों वृत्तियां बैलेंस में होती हैं, लेकिन असुर वृत्तियां अधिक शक्तिशाली होती है। वे असुर वृत्तियां है - काम क्रोध लोभ मोह : मद और मत्सर। इसके अतिरिक्त - दया क्षमा प्रेम आर्जव निष्कपटता आदि दैव वृत्तियां है। जिस मनुष्य में जिस वृत्ति की अधिकता होती है, वह वैसा ही बन जाता है।
अब मूल प्रश्न यह है कि मॉडर्न साइंस से लेकर सारा संसार इस शरीर के पोषण, मेंटेनेंस, ओवर हौलिंग और नियंत्रण की बात पर ही जोर देता है, लेकिन क्या वह अंतः करण के पोषण मेंटेनेंस, ओवर हौलिंग और नियंत्रण पर जोर देता है क्या ?
जोर देने की बात छोड़िए - इस अंतः करण को समझता है, या समझने का प्रयास भी करता है क्या ?
और जब तक नही समझेगा उसके जीवन मे, समाज मे, या विश्व मे शांति खुशहाली और उमंग आएगी क्या ?
अंतः करण को समझने की प्रक्रिया को ही अध्यात्म कहते हैं - गीता कहती है -"स्वभाव अध्यात्म उच्चयते"।
यह मेरा theoritical ज्ञान है जिसको अविद्याजनित ज्ञान कहते हैं, जिसने #स्वभाव को समझ लिया हो उसको विद्या ज्ञान कहते हैं। कोई हो विद्या ज्ञान वाला तो इसमें विस्तार दे।

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