Thursday 26 July 2018

लोग ओपीनियन कैसे बनाते हैं?

लोग ओपीनियन कैसे बनाते हैं?
जो डेटा उन्होंने अपने ज्ञानेंद्रियों से अपने मन मे एकत्रित कर रखा है, उसको अपनी प्रकृति स्वभाव और निजी अनुभव के अनुरूप मथकर जो निष्कर्ष निकालते हैं उसी से ओपिनियन बनती है।
इसीलिए किसी भी विषय या वस्तु के बारे में अलग अलग ओपिनियन बनती है।
लेकिन यह ओपिनियन भी प्रायः "एक हांथी और पांच अंधों की कहानी जैसी ही होती है। क्योंकि हमारा अनुभव सीमित है लेकिन ओपिनियन हर उस विषय के बारे में रखते है - जिसका नाम भी हमने कभी सुन देख या पढ़ रखा होगा।
ये ज्यादातर ओपिनियन और ओपिनियन मेकर स्वयं किसी न किसी से पहले से ही ओपीनिअटेड होते हैं।
इसलिए अधिकतर ओपिनियन की वैल्यू प्रायः कूड़े से अधिक नहीं होती। मेरी इस ओपिनियन की भी।
लेकिन ओपिनियन माइंड मैनीपुलेशन का बहुत बड़ा टूल हैं पिछले 150 वर्षों से पूरे विश्व मे, जब से इनफार्मेशन को ज्ञान के नाम से परोसा जा रहा है। इनके माध्यम हैं - आधुनिक शिक्षा, प्राइमरी से लेकर यूनिवर्सिटी तक। यदि कोई किसी विषय मे पीएचडी है तो समझ लीजिए कि वह उस विषय या टॉपिक का सबसे #भंगार ( कबाड़ी) है।
इनके माध्यम है मीडिया और उनके #इन्फॉर्मेशन_टेररोरिस्ट्स, पत्रिकाएं, टेलीविज़न, फॉउंडेशन्स, पुरस्कार आदि आदि।
इनके माध्यम है हिस्टोरिकल theorizers - जैसे मैक्समुलर और उनके चिलान्दू - जिनको फिलोलोजिस्ट और इंडोलॉजिस्ट के नाम से जाना जाता है।
इनके माध्यम है सिनेमा और नाटक।
इनके माध्यम है - विभिन्न NGOs में घूम घूम ज्ञान देने वाले स्पीकर्स।
तथाकथित थिंकर्स और ओपिनियन मेकर्स मूलतः #इनफार्मेशन_टेररोरिस्ट्स हैं।

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