Tuesday, 9 February 2016

Counter to Supreme courts judgement - Hinduism is way of life

अमरकोश में लिखा है -
एकेरबुद्धि उपयोगे।
यानि बुद्धि का उपयोग एक दिशा में ही किया जा सकता है ।
मोक्षेर्धी ज्ञानम् ।
अन्य शिल्पशास्त्रयो विज्ञानं।
अर्थात धर्म अर्थ काम मोक्ष जीवन के चार लक्ष्य हैं ।
मोक्ष प्राप्त करने की दिशा में प्रयुक्त बुद्धि से ‪#‎ज्ञान‬ की प्राप्ति होती है। वही ज्ञानी धर्म क्या है उसको परिभाषित कर सकता है ।वही व्यक्ति ये भी कह सकता है कि -
ब्रम्ह सत्यम जगत मिथ्या
जीवो ब्रम्ह नापरः ।
यानि वही ये भी कह सकता है कि ब्रम्ह सत्य जगत तो मिथ्या है , ब्रम्ह और जीव में अंतर नहीं है । और वही ज्ञानी ये दावा भी कर सकता है कि - अहम् ब्रम्हाश्मि । ये आदि गुरु शंकरा चार्य ने कहा ।
फिर उसको ज्यादा परिभाषित करते हुए रामानुजाचार्य ने कहा कि - ब्रम्ह भी सत्य है , माया यानि जगत भी सत्य है लेकिन इस माया को पहचानने का भी एक रास्ता है ।
Arun Tripathi जी जरा याद दिलाएं , वो श्लोक मैं भूल गया हूँ ।

अन्य शिल्पशास्त्रयों विज्ञानं - अर्थात ज्ञान के अलावा (ब्रम्ह को जान्ने के मार्ग पर न जाने वाले ) जो बुद्धि का उपयोग जगत के भौतिक पदार्थो यानि माया के निर्माण में बुद्धि का उपयोग करते है वे विज्ञानी हैं ।
तो एक वकील जज बनता है तो कानून को परिभाषित करता है ।
उसकी क्षमता ज्ञान और धर्म को परिभाषित करने की नही है ।
और न ही भारत का संविधान धर्म की परिभाषा करने की औकात रखता है ।
ये विदेशी लूटेरो द्वारा बनाया विधान है , भारत के सनातन परंपरा के द्वारा बनाया विधान नही है ।
जिस जज ने भी ये निर्णय दिया है उससे पूंछ जाना चाहिए कि एक कारकुशीलव शुद्र कब से एक ज्ञानी ब्राम्हण हो गया ?

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