ईसाईयों ने रिलिजन के नाम पर 1500 से 1800 के बीच 200 मिलियन यानि 20 करोड़ मूलनिवासियों का कत्ल किया - #गुरुमूर्ति ।
आज तक इस रहस्य पर पर्दा पड़ा है ।
ज्ञातव्य हो कि 1900 में भारत की कुल जनसँख्या 22 करोड़ थी ।
और 1850 से 1900 के बीच ईश्वरीय आदेश ( Providence) भारत पर शासन करने को White Man's burden समझने वाले शासकों के शासन से 2 करोड़ लोग अन्न के आभाव में मृत्यु को प्राप्त करते हैं क्योंकि उनकी जेब में अन्न खरीदने का पैसा नहीं था जबकि अन्न गुड़ खांण और अन्य भोज्य पदार्थ भारत से यूरोप और इंग्लैंड एक्सपोर्ट होता था ।
ज्ञातव्य हो कि विल दुरांत से लेकर नौरोजी गांधी अमिय बागची पॉल बैरोच और अनगस मैडिसन के अनुसार भारत की 20 % आबादी हेंडीक्राफ्ट पर निर्भर थी जो 0 AD से 1750 तक विश्व जीडीपी का 25% शेयर मन्युफॅक्चर करती थी ।
जिसे कालान्तर में #डिप्रेस्ड_क्लास का नाम दिया गया ।
इसी डिप्रेस्ड क्लास को #आंबेडकर ने 1928 में Untouchable in #Notional sense सिद्ध करने की कोशिश की साइमन कमीशन के सामने ।
और 1931 में lothian समिति को प्रस्ताव भेजा कि जो अछूत चमार नहीं हैं उनको भी अछूत माना जाय ।
गांधी ने 1942 में जब #अंग्रेजों_भारत_छोडो का नारा दिया तो आंबेडकर क्या कर रहे थे इसका जबाव न तो गूगल बाबा देते हैं और न ही #दिव्यांग_चिंतक।
1946 में कक्षा 10 पास संस्कृतज्ञ #मैक्समूलर , MA शेरिंग और झोला छाप संस्कृतज्ञ जॉन मुइर की #ओरिजिनल_संस्कृत_टेक्स्ट
और बाइबिल पढ़कर इस निष्कर्ष पर पहंचते है कि ऋग्वेद की पुरुषोक्ति
प्रक्षिप्तांश है और ब्राम्हणों की शाजिश है , इस्सलिये आज शूद्रों को
निम्न कार्य अलॉट किया गया है पिछले 3000 वर्षों से ।
जबकि विल दुरांत तथ्यों के साथ 1930 में लिखता है कि लोग वर्तक्सशन के कारण जमीन जब्त किये जाने से बेघर होकर शहरों की ओर भागे , और जो उनमे से शौभाग्यशाली थे उनको गोरो का #मैला उठाने का कार्य मिला , क्योंकि यदि गुलाम इतने सस्ते हों तो शौचालय बनाने का झंझट कौन पाले ।
लेकिन डॉ आंबेडकर ने भारत के 25% जीडीपी के निर्माताओं के वंशजों को पिछले 68 वर्ष में कुंठा घृणा और आत्महीनता के कुएं में धकेल दिया ।
उनसे किस तरह माफी मांगने की बात बोला जाय ?
http://sputniknews.com/world/20160209/1034428140/indigenous-seek-apology-from-pope-for-genocide.html
जबकि विल दुरांत तथ्यों के साथ 1930 में लिखता है कि लोग वर्तक्सशन के कारण जमीन जब्त किये जाने से बेघर होकर शहरों की ओर भागे , और जो उनमे से शौभाग्यशाली थे उनको गोरो का #मैला उठाने का कार्य मिला , क्योंकि यदि गुलाम इतने सस्ते हों तो शौचालय बनाने का झंझट कौन पाले ।
लेकिन डॉ आंबेडकर ने भारत के 25% जीडीपी के निर्माताओं के वंशजों को पिछले 68 वर्ष में कुंठा घृणा और आत्महीनता के कुएं में धकेल दिया ।
उनसे किस तरह माफी मांगने की बात बोला जाय ?
http://sputniknews.com/world/20160209/1034428140/indigenous-seek-apology-from-pope-for-genocide.html
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