Tuesday 9 February 2016

इंटेलिजेंट तो बहुत हैं देश मे , इंटेलेक्चुवल कितने हैं ? मनुष्यों का ‪#‎धर्म_गुण‬ के अनुरूप वर्गीकरण

इंटेलिजेंट तो बहुत हैं देश मे , इंटेलेक्चुवल कितने हैं ?
मनुष्यों का ‪#‎धर्म_गुण‬ के अनुरूप वर्गीकरण
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‪#‎S_Gurumurthy‬ ने मानुस प्रजाति का वर्गीकरण 4 श्रेणियों मे की है / उसके पूर्व मनीषियों ने मनुष्य और पशुओं मे भेद बताते हुये लिखा -
" एशाम ण विद्या ण तपो न दानम ज्ञानम न शीलम न गुणों न धर्मह
ते मर्त्यलोके भुविभारभूताह मनुष्य रूपेण मृगाशचरन्ति // "

‪#‎गुरुमूर्ती‬ जी ने बुद्धिमान मनुष्यों की श्रेणी बांटी - इंटेलिजेंट से इंटेलेक्चुवल मे / हजारों करोड़ का का चूना लगाने वाला चाहे ‪#‎यादव‬ सिंह हो , नीतीश लालू मायावती या मुलायम हों या फिर सोनिया गांधी ब्रिगेड हो , सबके सब इंटेलिजेंट हैं , लेकिन क्या ये इंटेलेक्टुयल भी है ?
गुरुमुरथी के अनुसार इनका विभाजन -
1- PI PI - personal Interest and personal Interest - देशी ‪#‎पशु‬ ‪#‎धनपशु‬ ‪#‎इंटेलिजेंट‬ 9 ( मात्र अपने बारे मे ही सोचे वाले )
2- PI NI - personal Interest over national Interest ( व्यक्तिगत हित राष्ट्र हिट के ऊपर - जिसमे ज़्यादातर नेता और बेउरोकरते हैं आजकल , और ‪#‎मरकसिए‬ )
3- NI PI - national Interest over personal Interest ( राष्ट्र हित व्यक्तिगत हितों के ऊपर रखने वाले )
4- NI NI - national Interest and National Interest - ( देश और देश के बारे मे सोचने वाले - ‪#‎इंटेलेक्चुवल‬ - लाखों लोग जिनहोने देश के जीवन कुर्बान किया है )
तुलसीदास ने लिखा -
रावण जब राम से युद्ध करने आता है तो बोलता है कि -
आज बयरु सब लेहु निबाहीं / जौं रन भूमि भाजि नहिं जाही /
आज करऊँ खलु काल हवाले / परेहु कठिन रावन के पाले //
तो रामचन्द्र जी ने उसको बोला बकवाद न करो पुरुषार्थ दिखाओ / फिर कहते हैं कि मुझे क्षमा करो लेकिन मैं तुमको नीति की बात बताता हूँ /
"जनि जल्पना करि सुजसु नासहि नीति सुनहि करहि क्षमा /
संसार माँ पुरुष त्रिविध पाटल रसाल पनस समा /
एक सुमनप्रद एक सुमनफल एक फलहिं केवल लागहीं /
एक कहहिं कहहिं करहि अपर एक करहिं क़हत न बागही //
- अर्थात राम कहते हैं - " क्षमा करो लेकिन बकवाद कसके अपना सुयश का नाश न करो , और नीति की बात सुनो - विश्व मे तीन प्रकार के लोग होते है - एक पलाश (पाटल ) , आम (रसाल ) और कटकल की भांति / एक सिर्फ सुगन्ध विहीन पुष्प होता है , दूसरे मे पुष्प (बौर ) और फल दोनों होता है , और तीसरे मे मात्र फल होता है / एक सिर्फ बोलते हैं , दूसरे बोलते भी है और कर्म भी करते है ,तीसरे तरह के लोग कुछ बोलते नहीं सिर्फ कर्म करने मे विश्वास रखते है /
इसी बात को करपात्री जी ने नीतिशतक (75 ) का उद्धरण अपनी पुस्तक ‪#‎मार्कस्वाद‬ और रामराज्य मे दिया है /
एके सत्पुरुषाह परार्थघटकाः स्वार्थ परित्यज्य ये
सामान्यस्तु परार्थमुद्यमभृतह स्वर्थ्विरोधेन ये /
तेअमी मानुषराक्षसाः परहितम स्वार्थाय निघ्नंति ये /
ये निघ्नंति निरर्थकम परहितम ते के न जानीमहे //
अर्थात - जो स्वार्थ को त्यागकर भी परोपकार ही करते हैं , वे सत्पुरुष हैं / जो अपने स्वार्थ की रक्षा करते हुये परोपकार करते है , वे सामान्य लोग है , जो लोग स्वार्थ हेतु परहित का विघात करते हैं , वे मनुष्य वेश मे राक्षस ही हैं ,परंतु जो लोग अकारण ही परहित विघात ( दूसरों का नुकसान ) करते हैं- उनको क्या कहा जाय - समझ मे नहीं आता /
अब आप स्वयं आकलन करें कि हमारे देश मे इंटेलिजेंट कौन है , और इंटेलेक्टुयल कौन है ?
सत्पुरुष कौन है ?
सामन्य जन कौन है ?
और राक्षस कौन है ?

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