अंग्रेज संस्कृतज्ञों ने सुश्रुषा का अंग्रेजी में अनुवाद किया - सर्विस ।
और जब इसको बाइबिल से मैच किया तो उसके समकक्ष शब्द मिला - Servile ।
और जब उसको बाइबिल के जेनेसिस से मैच किया तो पता चला कि नूह के पुत्र Ham के वंशजों को शापित करते हुए नूह ने कहा था - Your posterity will be in perpetual servitude .
और जब 1900 शताब्दी में भारत के घर घर मन्युफॅक्चर होने वाले ढेर सारे उद्योगों को नष्ट कर इस एक्सपोर्टिंग देश को इंपोर्टिंग बाजार में तब्दील कर दिया , जहाँ 1807 में घर घर दोपहर बाद आराम में क्षणों में कॉटन और सिल्क के सूत कातने के कारण एक महिला की कमाई 3 -6 रुपये प्रति वर्ष होती थी , वो समाज बेरोजगार और बेघर हो गया तो उन्होंने भारत की गरीबी के लिए यहाँ के सामजिक प्रथाओ को अन्धविश्वास को दोषी ठहराया गया , तो फिर बेघर और बेरोजगार होने के कारण उनको बोला गया कि - Shudras were servile and were alloted menial job because they took birth fron foot of Purusha .
वही थ्योरी डॉ आंबेडकर और वामपंथियों ने आगे बढ़ाया ।
देखिये नीचे क्या वेदों में यही लिखा है ?
और जब इसको बाइबिल से मैच किया तो उसके समकक्ष शब्द मिला - Servile ।
और जब उसको बाइबिल के जेनेसिस से मैच किया तो पता चला कि नूह के पुत्र Ham के वंशजों को शापित करते हुए नूह ने कहा था - Your posterity will be in perpetual servitude .
और जब 1900 शताब्दी में भारत के घर घर मन्युफॅक्चर होने वाले ढेर सारे उद्योगों को नष्ट कर इस एक्सपोर्टिंग देश को इंपोर्टिंग बाजार में तब्दील कर दिया , जहाँ 1807 में घर घर दोपहर बाद आराम में क्षणों में कॉटन और सिल्क के सूत कातने के कारण एक महिला की कमाई 3 -6 रुपये प्रति वर्ष होती थी , वो समाज बेरोजगार और बेघर हो गया तो उन्होंने भारत की गरीबी के लिए यहाँ के सामजिक प्रथाओ को अन्धविश्वास को दोषी ठहराया गया , तो फिर बेघर और बेरोजगार होने के कारण उनको बोला गया कि - Shudras were servile and were alloted menial job because they took birth fron foot of Purusha .
वही थ्योरी डॉ आंबेडकर और वामपंथियों ने आगे बढ़ाया ।
देखिये नीचे क्या वेदों में यही लिखा है ?
प्रियम मा कृणु देवेशु प्रियम राजसु मा कृणु /
प्रियम सर्वस्य पश्यत इत शूद्र उतार्ये // अथर्व ॰ 19/ 62/ 1
रुचन्नों धेहि ब्रामहनेशु रुचम राजसु नसक्रिधि /
रुचम विश्येशु शूद्रेशु मयि धेहि रुचा रुचम // यज़ू ॰ 18/48
अर्थात "मुझे ब्रांहनों मे प्रिय कीजिये , क्षत्रियों मे प्रिय कीजिये , वैश्यों मे प्रिय कीजिये और शूद्रों मे प्रिय कीजिये /
हमारी ब्रांहनों मे रुचि - प्रेम हो , क्षत्रियो मे मे रुचि - प्रेम हो , वैश्यों और शूद्रों मे मे रुचि - प्रेम हो तथा इस रुचि प्रेम से भी मे रुचि - प्रेम हो , यानि मैं प्रेम मय हो जाऊ / "
पुरुषोक्त को समझ नै पाइन बाबा जी
प्रियम सर्वस्य पश्यत इत शूद्र उतार्ये // अथर्व ॰ 19/ 62/ 1
रुचन्नों धेहि ब्रामहनेशु रुचम राजसु नसक्रिधि /
रुचम विश्येशु शूद्रेशु मयि धेहि रुचा रुचम // यज़ू ॰ 18/48
अर्थात "मुझे ब्रांहनों मे प्रिय कीजिये , क्षत्रियों मे प्रिय कीजिये , वैश्यों मे प्रिय कीजिये और शूद्रों मे प्रिय कीजिये /
हमारी ब्रांहनों मे रुचि - प्रेम हो , क्षत्रियो मे मे रुचि - प्रेम हो , वैश्यों और शूद्रों मे मे रुचि - प्रेम हो तथा इस रुचि प्रेम से भी मे रुचि - प्रेम हो , यानि मैं प्रेम मय हो जाऊ / "
पुरुषोक्त को समझ नै पाइन बाबा जी
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