Friday, 22 April 2016

15वी शताब्दी मे अछूत कहाँ थे ? यदि वे वेदकाल से भारत मे थे तो ?

१५ वीं शताब्दी के जितने मशहूर यात्री हैं , उन्होंने भारत में व्यापारी बनकर , देश के काफी महत्वपूर्ण हिस्सों का दौरा किया और उस समय के भारतीय समाज का विस्तृत वर्णन किया है / R H Major द्वारा संकलित पुस्तक "Narratives of Voyages in India in fifteenth सेंचुरी " , नामक पुस्तक को आप डाउनलोड कर सकते हैं फ्री में / इस पुस्तक में वर्णित व्याख्यान के अनुसार उस समय तक किसी मंदिर में (पुरी के मंदिर का वर्णन है ) किसी भी व्यक्ति का प्रवेश वर्जित नहीं था , न ही किसी अछूत पन जैसे सामाजिक बुराई का वर्णन है / हाँ "सती प्रथा' के प्रचलन का जरूर वर्णन है / मात्र एक वर्ग के लोग अछूत माने जाते थे , वे थे 'हलालखोर ' / अगर इन हलालखोरों के इतिहास के बारे में खोज किया जाय तो इनका वर्णन सर्वप्रथम , इन्हीं पुस्तकों में मिलता है , और इनका वर्णन आइन ई अकबरी में भी है , जिनको महलों में सफाई का कार्य सौंपा जाता था / ये पर्शियन भाषा बोलते थे , और इनके पूर्वज पर्शिया से आये थे / ये हिन्दू समाज के अंग नहीं थे / लेकिन २० वीं शताब्दी में एक बहुत बड़े वर्ग को अछूत घोषित किया गया , और इनकी उत्पत्ति के सन्दर्भ में, वेदों और स्म्रित्यों का उद्धरण पेश किया गया / इसी को आधार बनाकर , आंबेडकर जैसे बड़े विद्वान लोगों ने इनके लिए अलग electorate की मांग की , जिसके विरोध में गांधी को अनशन करना पड़ा , और उसका अंत "पूना पैक्ट" में हुवा /लेकिन यदि यह सच है , तो मात्र ५०० साल पहले के किसी ऐतिहासिक दस्तावेज में उल्लखित क्यों नहीं है ??, यदि यह हिन्दू धर्म की आदिकालीन परंपरा है , तो ये इन ऐतिहासिक दस्तावेजों से क्यों गायब है ??? इसका उत्तर शायद इसी तथ्य में छुपा है कि १७५० तक भारत, इकनोमिक रूप से , विश्व का (चीन के बाद) सबसे ताकतवर राष्ट्र था और पूरी दिनिया का २५% GDP का उत्पादन करता था , जबकि अमेरिका और ब्रिटेन मिलकर मात्र २% / जो ब्रिटिश नीतियों कि वजह १९०० आते आते भारत का शेयर घटकर मात्र २% रह गया , और अमेरिका और ब्रिटेन का शेयर बढ़कर ४१% हो गया / इसकी वजह से भारत में मात्र डेढ़ सौ सालों में , per Capita Industrialisation में, 700 % की घटोत्तरी हुयी / इसी बेरोजगार और बेरोजगारी से तबाह दरिद्र जनसमुद्र को ब्रिटेन की रानी ने १९ वीं शताब्दी में Oppressed class (दलित) का नाम दिया / दलित चिंतकों को गांधी का हरिजन (भगवन के सामान) शब्द नहीं पचा , लेकिन ब्रिटेन की रानी , जिसने लूट और सामाजिक विभाजन करके राज्य करने कि नीति अपनाई थी , उसका दिया हुवा नाम (दलित) , अति पसंद है / और ये दलित चिंतक ऐतिहासिक तथ्यों को नजरअंदाज करते हुए अभी भी , ब्रम्हानिस्म /हिंदूइस्म के नाम पर विष बो रहें है , जिसका फल उनके नेता काट रहें है / लेकिन सत्य को उजागर करना हमारा फ़र्ज़ है , वो चाहे कितना भी कठोर हो / जय हिन्द जय भारत /

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