१५ वीं शताब्दी के जितने मशहूर यात्री हैं , उन्होंने भारत में व्यापारी
बनकर , देश के काफी महत्वपूर्ण हिस्सों का दौरा किया और उस समय के भारतीय
समाज का विस्तृत वर्णन किया है / R H Major द्वारा संकलित पुस्तक
"Narratives of Voyages in India in fifteenth सेंचुरी " , नामक
पुस्तक को आप डाउनलोड कर सकते हैं फ्री में / इस पुस्तक में वर्णित
व्याख्यान के अनुसार उस समय तक किसी मंदिर में (पुरी के मंदिर का वर्णन है
) किसी भी व्यक्ति का प्रवेश वर्जित नहीं था , न ही किसी अछूत पन जैसे
सामाजिक बुराई का वर्णन है / हाँ "सती प्रथा' के प्रचलन का जरूर वर्णन है /
मात्र एक वर्ग के लोग अछूत माने जाते थे , वे थे 'हलालखोर ' / अगर इन
हलालखोरों के इतिहास के बारे में खोज किया जाय तो इनका वर्णन सर्वप्रथम ,
इन्हीं पुस्तकों में मिलता है , और इनका वर्णन आइन ई अकबरी में भी है ,
जिनको महलों में सफाई का कार्य सौंपा जाता था / ये पर्शियन भाषा बोलते थे ,
और इनके पूर्वज पर्शिया से आये थे / ये हिन्दू समाज के अंग नहीं थे /
लेकिन २० वीं शताब्दी में एक बहुत बड़े वर्ग को अछूत घोषित किया गया , और
इनकी उत्पत्ति के सन्दर्भ में, वेदों और स्म्रित्यों का उद्धरण पेश किया
गया / इसी को आधार बनाकर , आंबेडकर जैसे बड़े विद्वान लोगों ने इनके लिए अलग
electorate की मांग की , जिसके विरोध में गांधी को अनशन करना पड़ा , और
उसका अंत "पूना पैक्ट" में हुवा /लेकिन यदि यह सच है , तो मात्र ५०० साल
पहले के किसी ऐतिहासिक दस्तावेज में उल्लखित क्यों नहीं है ??, यदि यह
हिन्दू धर्म की आदिकालीन परंपरा है , तो ये इन ऐतिहासिक दस्तावेजों से
क्यों गायब है ??? इसका उत्तर शायद इसी तथ्य में छुपा है कि १७५० तक भारत,
इकनोमिक रूप से , विश्व का (चीन के बाद) सबसे ताकतवर राष्ट्र था और पूरी
दिनिया का २५% GDP का उत्पादन करता था , जबकि अमेरिका और ब्रिटेन मिलकर
मात्र २% / जो ब्रिटिश नीतियों कि वजह १९०० आते आते भारत का शेयर घटकर
मात्र २% रह गया , और अमेरिका और ब्रिटेन का शेयर बढ़कर ४१% हो गया / इसकी
वजह से भारत में मात्र डेढ़ सौ सालों में , per Capita Industrialisation
में, 700 % की घटोत्तरी हुयी / इसी बेरोजगार और बेरोजगारी से तबाह दरिद्र
जनसमुद्र को ब्रिटेन की रानी ने १९ वीं शताब्दी में Oppressed class
(दलित) का नाम दिया / दलित चिंतकों को गांधी का हरिजन (भगवन के सामान) शब्द
नहीं पचा , लेकिन ब्रिटेन की रानी , जिसने लूट और सामाजिक विभाजन करके
राज्य करने कि नीति अपनाई थी , उसका दिया हुवा नाम (दलित) , अति पसंद है /
और ये दलित चिंतक ऐतिहासिक तथ्यों को नजरअंदाज करते हुए अभी भी ,
ब्रम्हानिस्म /हिंदूइस्म के नाम पर विष बो रहें है , जिसका फल उनके नेता
काट रहें है / लेकिन सत्य को उजागर करना हमारा फ़र्ज़ है , वो चाहे कितना भी
कठोर हो / जय हिन्द जय भारत /
No comments:
Post a Comment