कॉटन की स्पिनिंग , जो कि मुख्य निर्माण हुवा करता था, वो बड़े घरों की
महिलाओं और किसानों की पत्नियों का , आराम के समय का मुख्य काम था।
प्रतिवर्ष एक औरत इस दुपहरिया बाद में की जाने वाली कताई से 3 रूपये कमाती
थी ।पूरे जिले में खरीदे जाने वाले , कच्चे कॉटन का मूल्य था 250,000 (
ढाई लाख) और उससे तैयार धागे की कीमत 1,165,000 ( 11 लाख 65 हजार ) , अतएव
महिलाओ की कुल कमाई 915,000 (9 लाख 15 हजार ) रुपये हुए।
मालदा में बनने वाले कपड़ो को मालदई कपडे के नाम से जाने जाते हैं ,जिसमे रेशम और कपास के धागे आते हैं।इनके कपड़े बनाने के 4000 लूम जिले भर में है ।और हर लूम से प्रतिमाह 20 रूपये की कमाई होती है, जो बुचनन के हिसाब से बढ़ चढ़ कर बताया गया है । लगभग 800 लूम बड़े कपडे बनाने के लिए बने हैं , और वे कंपनी से एडवांस लेकर काम करते है ।
इकनॉमिक हिस्टोरी ऑफ इंडिया - रोमेश दुत्त , 1902 पुस्तक के वॉल्यूम -1 पेज 248 से दिनाजपुर जिले के बारे में ।
मालदा में बनने वाले कपड़ो को मालदई कपडे के नाम से जाने जाते हैं ,जिसमे रेशम और कपास के धागे आते हैं।इनके कपड़े बनाने के 4000 लूम जिले भर में है ।और हर लूम से प्रतिमाह 20 रूपये की कमाई होती है, जो बुचनन के हिसाब से बढ़ चढ़ कर बताया गया है । लगभग 800 लूम बड़े कपडे बनाने के लिए बने हैं , और वे कंपनी से एडवांस लेकर काम करते है ।
इकनॉमिक हिस्टोरी ऑफ इंडिया - रोमेश दुत्त , 1902 पुस्तक के वॉल्यूम -1 पेज 248 से दिनाजपुर जिले के बारे में ।
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