Tuesday 22 March 2016

अब्राह्मिक रिलिजन और वामपंथ किस तरह सनातन से भिन्न है ?

अब्राह्मिक रिलिजन और वामपंथ किस तरह सनातन से भिन्न है ?
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ईसाइयत के पैदा होने के काफी वर्षों बाद भी भारत का व्यापार और संवाद रोमन किंग्स और जनता से होता रहा था ‪#‎सिल्क_रोड‬ के माध्यम से। लेकिन जब इस्लाम का जन्म हुवा तो ईसाइयत और इस्लाम की आपसी घृणा रंजिश और अपने ही गॉड को ही सच मानने , तथा अपने ही रिलिजन और पाक पुस्तक को सच मानने के कारन , एक दूसरे को बर्दाश्त न कर पाने के कारन सिल्क रोड बन्द हो गया।
इसीलिये 1500 में वास्कोडिगामा को भारत तक पहुँचने में घूमकर लम्बे समुद्री यात्रा करके आना पड़ा।
जितने यात्रा वृत्तांत इसके बीच के हैं वे बताते हैं कि यदि आपको पुराने रास्ते से आना पड़ता था तो धर्म परिवर्तन और बिना लुटे हुए भारत आना संभव नहीं था ।
कारण एक ही था कि मेरा गॉड ही सच्चा गॉड है ।
इसलिए पिछले 2000 साल खास तौर पर 1500 साल एक दूसरे की मॉस मर्डर से भरा इतिहास रहा है इनका।
बीच में जब प्रोटेस्टंट और कैथोलिक की दो धाराओं ने जन्म लिया तो फिर जब फेथ के नाम पर ईसाईयों ने एक दूसरे का मॉस मर्डर करना शुरू किया तो 1669 में Act of Intolerance आया कि भाई न पसंद करो कम से एक दूसरे को बर्दाश्त तो करो। ज्ञातव्य हो कि 1600 में चर्च ने ब्रूनो नामक वैज्ञानिक को आग में जलाकर इसलिए मार दिया था क्योंकि उसने कहा कि पृथ्वी सूर्य के चारों और घूमती है ।
बाद में उन्होंने रोमन संस्कृत का शब्द सेकुलरिज्म को लाकर चर्च को राजकार्यों में दखल देने पर रोक लगायी।
लेकिन बर्बरता उनके खून में बसी है इसीलिये दूसरे विश्वयुद्ध में यूरोप के ईसाईयों ने 60 लाख यहूदियों और 40 लाख जिप्सियों की हत्या करते हैं , जिसको हिटलर के माथे पर मढ़कर वो छुट्टी पा लेते हैं।
उसी हिटलर से वामपंथी स्टालिन समझौता करता है पोलैंड पर कब्जा करने के लिए। कितनी हत्याए वो हिटलर के साथ मिलकर करता है , इतिहास के छात्र आसानी से समझते हैं ।
कारण : Intolerance for other viewpoint ।
अब वामपंथी स्टालिन और माओ ने अपने ही साथियों की करोङो में हत्या करवाते है।एकछत्र राज्य करने के लिए। फासिज़्म और क्या होता है ?
भारत के वामपंथियों ने भारत विभाजन के पूर्व मुस्लिम लीग को वैचारिक मदद करते हैं ।इन नेताओ ने इतनी हत्याएं क्यों करवाई ? भय और intolerance for other view point।
सनातन में यदि किसी मुद्दे पर मदभेद हो तो उसको शास्त्रार्थ से सुलझाने की परंपरा रही है । सबसे बड़ा उदाहरण शंकराचार्य और मंडन मिश्र के बीच हुवा शास्त्रार्थ है। जब नवयुवक शंकराचार्य वृद्ध मंडन मिश्र को कर्मकांड के लिए चुनौती देते हैं ,ज्ञानकाण्ड की स्थापना के लिए। निर्णायक चुनने की बात आयी तो मंडन मिश्र की पत्नी भारती को चुना आदि शंकर ने ।
शर्त ये थी कि यदि शंकर हारते हैं तो वो शादी करके गृहस्थ बनेंगे और यदि मंडन मिश्र हारते हैं तो उनको गृहस्थ आश्रम छोड़कर शंकर के शिष्यता में सन्यास लेंगे ।
अंत में शंकर विजयी घोसित किये जाते है भारती द्वारा , और मण्डन मिश्र दक्षिण के शंकराचार्य के प्रथम शंकराचार्य बने ।
आज भी सनातन 33 कोटि देवताओ के साथ अल्लाह और जीसस को एडजस्ट कर लेता है , लेकिन क्या बाकी रिलिजन ये कर सकते है ।
खाड़ी देशो में ISIS के नाम पर कत्ल हो रहा है जिसको लिबरल मुस्लिम असली मुस्लमान मानने से इंकार कर पल्ला झाड लेता है ।
लेकिन मात्र 68 वर्ष पूर्व भारत का हिस्सा रहे पाकिस्तान में 22% हिन्दू थे वहां आज मात्र 1% बचे हैं और बांग्लादेश में 35% हिन्दू थे , आज मात्र 7% बचे हैं ।
कहाँ गए वो ?
और यही नहीं वो अपने ही भाइयों का अहमदिया के नाम पर और ईसाईयों का भी कत्ल बलात्कार और धर्मपरिवर्तन कर रहे हैं।
घोड़े के ‪#‎वुद्धिपिशाच_वामी‬ और ‪#‎मरकसिये_बंदरों‬ के मुँह में दही जाता है इस प्रश्न को पूंछने पर।

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