#मन_बुद्द्धि_भेदभाव :
मन का मौलिक स्वभाव है चंचलता। और बुद्द्धि का मौलिक स्वभाव है - भेदभाव।
यक्ष ने युधिष्ठिर से पूंछा कि संसार में सबसे वेगवान वस्तु क्या है?
युधिष्ठिर ने उत्तर दिया कि मन।
साइंस कहता है कि प्रकाश सबसे वेगवान है।
लेकिन साइंस मन के बारे में अनभिज्ञ है, इसलिए वह ऐसा कहता है। एक पल में आपका मन यहां से न्यूयॉर्क पहुँच जाता है यदि पहले कभी आप न्यूयॉर्क गए हों तो।
तो मन सबसे अधिक वेगवान और चंचल वस्तु है - यह इसका मौलिक स्वभाव है।
बुद्द्धि - का मौलिक स्वभाव है भेदभाव करना।
कौन अपना है, कौन पराया है, इसका निर्णय बुद्द्धि करती है। कौन चीज खाद्य है कौन अखाद्य, इसका निर्णय बुद्द्धि करती है। कीचड़ और कमल का भेद बुद्द्धि के बिना संभव नहीं है। दीवाल कहाँ है, और दरवाजा कहाँ है यह निर्णय भी बुद्द्धि करती है।
मन और बुद्द्धि हमको मिली है जीवन जीवन जीने के लिए। परंतु सारा संसार मन और बुद्द्धि नामक यंत्र का गुलाम है। यद्यपि वह प्रकृति प्रदत्त यंत्र है मनुष्य को। इसके बिना जीवन संभव न हो सकेगा। इसके बिना कोई रचनात्मक कार्य भी न हो सकेगा। लेकिन यह रचना करता है तो विध्वंस भी करता है।
हिरोशिमा और नागासाकी पर गिराए गए बम उस विध्वंस के उदाहरण हैं - जो मनुष्य की बुद्द्धि ने बनाये थे, जिसको एक विमान द्वारा वहां ले जाकर गिराया गया, वह भी मन और बुद्द्धि का ही कार्य था।
मन और बुद्द्धि जिसके पास है वह भेदभाव करेगा ही। किसी न किसी स्तर पर। निर्बुद्धि भेदभाव नहीं करता। और न वह व्यक्ति जो मन और बुद्द्धि के पार चला गया हो।
इसलिए माइंड या मन और इंटेलक्ट ( बुद्द्धि) का होना कोई बहुत बड़ी बात नहीं है। बड़ी बात यह है कि मन और बुद्द्धि मालिक हैं, जो हमें संचालित करते हैं या व्यक्ति मालिक है अपने मन और बुद्द्धि का। यदि मन और बुद्द्धि मालिक हैं व्यक्ति का तो वह व्यक्ति एक यंत्र मात्र है। और जिसका यंत्र वह है उसे ही माया कहते हैं।
कृष्ण कहते हैं:
ईश्वर सर्वभूतेषु हृत देशे तिष्ठति अर्जुन।
भ्रामयन सर्वभूतानि यंत्र आरूढानि मायया।।
हे अर्जुन ईश्वर तो सभी जीवों के हृदय में निवास करता है। परंतु सब को माया नामक यंत्र पर चढ़ाकर सबको भरमाये हुए है।
और माया क्या है ? यह प्रश्न लक्ष्मण पूंछते हैं राम से।
राम एक लाइन का उत्तर देते हैं:
मैं और मोर तोर तै माया।
मैं मेरा, तुम और तेरा - यही माया है।
तो मैं मेरा, तुम तेरा यह निर्णय कौन देता है ?
यह निर्णय बुद्द्धि देती है।
बुद्द्धि और मन का गुलाम - परतंत्र है।
जो मन और बुद्द्धि की गुलामी से निकल जाये - वही परम स्वतंत्र है।
जो व्यक्ति अपनी बुद्द्धि और मन का मालिक हो जाता है उसे कई नामों की संज्ञा दी जाती है - ब्राम्हण, स्वामी, योगी आदि आदि।
©त्रिभुवन सिंह
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