#स्किल_डेवलपमेन्ट:
स्किल अर्थात कौशल।
कौशल ही वर्ण व्यवस्था का आधार था।
मेधा कौशल की बहुलता - ब्राम्हण।
रक्षा कौशलं की बहुलता - क्षत्रिय।
वाणिज्य कौशलं की बहुलता - वैश्य।
श्रम कौशलं की बहुलता - शूद्र।
चलिये आपने बड़ा अच्छा किया कि इस व्यवस्था को नष्ट कर दिया जिसके दम पर भारत, हजारों वर्षों से मात्र 200 वर्षो के पूर्व तक, विश्व की सबसे बड़ी आर्थिक शक्ति हुवा करता था। यह मैं नहीं कह रहा - अंगुस मैडिसन, पॉल बैरोच से लेकर गुरुमूर्ति और शशि थरूर सब बोल रहे हैं। लेकिन प्रश्न यह है कि क्या इन स्किल्स की आवश्यकता नष्ट हो गयी ? आज भी मेधा शक्ति, रक्षा शक्ति, वाणिज्य शक्ति और श्रम शक्ति का हर देश और समाज में बोल बाला है। स्वरूप बदल सकता है समय के साथ, मूल सिद्धांत तो आज भी वहीं हैं।
वर्ण व्यवस्था की ये कुशलताएं, एक दूसरे के विपरीत नहीं वरन एक दूसरे के पूरक। जैसे रात और दिन - एक दृष्टिकोण यह हो सकता है कि दोनों के दूसरे के विरोधी हैं। या यहां तक कि शोषक भी मान सकते हो। लेकिन सत्य तो यह है कि दोनों एक दूसरे के पूरक हैं। दिन ही दिन हो, रात न हो तो?
आज समस्त संसार में स्किल डिवेलपमेंट को प्रधानता दी जा रही है।
मेरी सलाह है, जिससे आप असहमत भी हो सकते हैं। कि उन स्किल्स की पहचान किया जाय, जिसे घर में सिखाया जाना संभव हो। घर का अर्थ है बचपन से। जब हर तरह की बात सीखना एक खेल था। हमें याद है कि बचपन में हल जोतना सीखना भी एक आनंद का विषय होता था। याकि खेत जोतने के बाद उसे समतल करना। हेंगा के द्वारा।
तो ऐसे स्किल की पहचान की जाय - जिससे बचपन से ही बच्चे अपने माता पिता से सीख सकें। कालांतर में यदि उन्हें उसी क्षेत्र में आगे बढ़ना हो तो उस स्किल सम्बंधित स्कूल और कॉलेजों में भर्ती करवाकर उन स्किल्स के सैद्धांतिक पहलुओं को पढ़ाया जाय।
आज स्कूल और कॉलेज थ्योरी के अतिरिक्त क्या पढ़ाते हैं। रटवा रहे हैं वही सब बकवास, जो बच्चों के जीवन में कभी भी काम न आएगा। आज स्किल सम्बंधित डिग्री देने वाले अनेक संस्थान धन्ना सेठों द्वारा खोलकर उनमें स्किल सिखाने के नाम पर लूटा जा रहा है। अगल बगल देखिये। They are producing unemployable youths, by extracting huge money from their pockets.
यदि ऐसा संभव हो सके तो बच्चे 20 की आयु के पूर्व ही प्रोडक्टिव कार्य करने में सक्षम हो सकेंगे।
#शिक्षक_दिवस_विशेष।
#NarendraModi
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