Friday 19 February 2021

All Religions are Not Same

#स्वस्थ_और_स्वच्छ_माइंड : #प्रथम खण्ड 

रिलीज़न और मजहबी ग्रंथों में अपने अनुयायियों के लिए कमांड दिए गए हैं कि क्या क्या नहीं करना है, और क्या क्या करना है। 
जिज्ञासा का , प्रश्न पूंछने का कोई स्थान नहीं है। प्रश्न पूंछना उन आदेश कर्ताओं का अपमान होगा, जिनका दावा है कि ये कमांड्स सीधे ईश्वर के द्वारा दिये गए हैं। इसका हिसाब चुकाना होगा - सर कलम करवा कर। 

वहीं धर्म का मूल ही जिज्ञासा है। अथातो धर्म जिज्ञासा। अथातो ब्रम्ह जिज्ञासा। सामने ब्रम्ह खड़ा हो तो उससे भी जो प्रश्न पूँछें - वही धर्मनिष्ठ है। स्वयं भगवान कृष्ण से अर्जुन ने इतने प्रश्न पूँछें,कि 5000 साल बाद भी उसमें कोई नया प्रश्न जोड़ा नहीं जा सका। 

धर्मग्रंथों में मूलतः माइंड के शुद्धिकरण और उस पर किस तरह नियंत्रण रखा जा सके, इसी की विधियों के बारे में चर्चा है।
हमारा अस्तित्व बना है माइंड से और शरीर से। वस्तुतः दोनों ही हमारे यन्त्र हैं या टूल हैं। यदि शरीर को कार मान लिया जाय और माइंड को इंजन, तो हम उस कार के ड्राइवर हैं। 

यदि हमारा शरीर अस्वस्थ हो जाय तो? 
यदि हमारा शरीर हमारे नियंत्रण में न रहे, और हमारे हांथ पैर झटका खाते रहें, अपने मन से तो? हम उसे बीमारी समझते हैं - यथा मिर्गी आदि का दौरा।
हम उसका इलाज जी जान से कराते हैं। मेडिकल साइंस में तो इसकी अलग ब्रांच ही बन गई है - एपीलिप्टोलॉजिस्ट।

ठीक इसी तरह यदि हमारा माइंड बीमार हो जाये तो?
यदि हमारा माइंड हमारे नियंत्रण में न रहे। अपने मन से जहां चाहे वहाँ जाय? हमारी इच्छा के विरुद्ध अपने मन से वहां वहाँ जाय, जहाँ हम उसे जाने देना नहीं चाहते तो? क्योंकि माइंड का वहां जाना हमें दुखी करता है, उद्वेलित करता है, चिंतित करता है, तनावग्रस्त करता है, उदास करता है, डिप्रेस करता है, क्रोधित करता है, तो क्या उस माइंड को बीमार नहीं माना जाना चाहिये? 

माइंड के अनियंत्रित स्वरूप को इसकी अशुद्धि कहते हैं, बीमारी कहते हैं,  मन का मैल कहते हैं। इस मैलेपन से माइंड की शुद्धि कैसे किया जाय,इस बीमार मन का इलाज कैसे किया जाय, इसी का वर्णन धर्म ग्रंथों में है। इसमें कोई कमांड नहीं हैं। इसमें माइंड की बीमारियों का वर्णन है, उसके लक्षण, उसका इलाज। इलाज की विभिन्न विधियां। 

तो एक बात स्पष्ट कर दिया जाय कि जहाँ मजहब और रिलीजन के ग्रंथ मन को बीमार करने के कमांडमेंट्स हैं, वहीं धर्म और उसके ग्रन्थ बीमार माइंड को स्वच्छ और स्वस्थ करने के मन्नुअल हैं।

इसलिए - इस बकवास को खारिज किया जाय कि सभी धर्म एक ही शिक्षा देते हैं। 

यदि मन हुवा तो इस सीरीज को आगे बढ़ाऊंगा।

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