#ब्राम्हणवाद_को_खलनायक_बनाने_की_पृष्ठभूमि : दलित उत्पीड़न का पोस्टमॉर्टम:
wily ( दुस्ट) ब्राम्हण सिद्ध करने के कुचक्र का बैकग्राउंड।
मार्क्स ने 1853 ( आर्थिक इतिहास के क्रोनोलॉजी को ध्यान में रखें ) में न्यूयॉर्क ट्रिब्यून में एक लेख लिखता है। अपने लेख में भारत सामाजिक पृष्ठिभूमि का वर्णन करते हुए वह कहता है:
( यह लेख गूगल पर उपलब्ध है)
" (1) भारत एक ऐसा राष्ट्र है, जहाँ प्रोडूसर यानि मैन्युफैक्चरर और कंस्यूमर दोनों ही एक हैं। अर्थात कंस्यूमर ही मैन्युफैक्चरर है, और मैन्युफैक्चरर ही कंस्यूमर है। खुद ही निर्माण करता है और खुद ही इस्तेमाल करता है, यानि हर गावं एक स्वतंत्र आर्थिक इकाई है । इसको उसने "एशियाटिक मॉडल ऑफ़ प्रोडक्शन" का नाम दिया। किसी भी तरह के वर्ग विशेष द्वारा किसी वर्ग विशेष के शोसण का जिक्र नहीं है।
(2) ईस्ट इंडिया कंपनी ने कृषि और पब्लिक वर्क्स डिपार्टमेंट को नेग्लेक्ट किया और बर्बाद किया।
(3) ब्रिटेन जो कि इंडियन फैब्रिक इम्पोर्ट करता था, एक एक्सपोर्टर में तब्दील हुवा।
(5 ) भारत के फाइन फैब्रिक मुस्लिन का निर्माण नष्ट किये जाने के कारण 1824 से 1837 के बीच ढाका की फैब्रिक मैन्युफैक्चरर आबादी 150,000 से घट कर मात्र 20,000 रह गयी।
(अब कोई फैक्ट्री तो होती नहीं थी उस वक़्त, इसलिए सब मैन्युफैक्चरिंग घर घर होती थी)।
(6) हालांकि सब ठीक है ,,लेकिन ये जनमानस गायों और बंदरों (हनुमान जी ) कि पूजा न जाने कब से करते आ रहे है, इसलिए ये अर्ध बर्बर सभ्यता है। जो अंग्रेज भारत के साथ कर रहे हैं यद्यपि पीड़ादायक है, लेकिन यदि क्रांति लानी है तो इस सभ्यता को नष्ट करना आवश्यक है। अंग्रेज एशियाटिक सभ्यता को नष्ट करके उस पर पाश्चात्य matrialism की नीव रखने का अति उत्तम कार्य कर रहे हैं।"
मार्क्स एक नास्तिक था उसको क्रिश्चियनिटी से उतनी ही दूरी बनाके रखनी चाहिए थी जितनी हिंदूइस्म से । लेकिन क्यों कहा उसने ऐसा , ये तो वही जाने लेकिन आधुनिक मार्क्सवादी वामपंथी और लिबरल्स अभी भी उसी फलसफा का अनुसरण कर रहे हैं।
मार्क्स ने गाय और हनुमान कि पूजा करने वालों को सेमी barberic कहा, लेकिन 1500 से 1800 के बीच यूरोपीय christianon ने 200 मिलियन (20 करोड़ ) देशी अमेरिकन की हत्या कर दिया । वे यूरोपीय ईसाई दैवीय लोग थे ? इस पर आज तक ने मार्क्स ने कुछ बोला कभी न उनके उत्तराधिकारियों ने।
क्यों? क्या चमड़ी का रंग बदल जाने से और गैर ईसाई होने से मानवता का मूल्य कम हो जाता है?
अब दो मूल प्रश्न :
(1) जो लोग ढाका जैसे शहरों से बेरोजगार होने के कारण भागे शहर छोड़कर, वो कहाँ गए ? और क्यों गए ? उनका और उनकी वंशजो का क्या हुवा?
मेरा मानना है वो गावों की और गए , जहाँ उन्हें प्रताणित नहीं किया गया बल्कि शरण दिया लोगों ने ।
(२) आप जानते हैं शहर में रहना महंगा है । उस पर अगर उसका पेशा ही नष्ट कर दिया जाय तो वो अपना और अपने परिवार के लिए रोटी कपड़ा और मकान का इंतेज़ाम शहर में नहीं कर सकता । गावं में लोगों ने उनको कहा एक छोटा सा घर बनवा लो , रहो और खेती बाड़ी में मजदूरी करो या मदद करो । क्योंकि गावं में आप एक लुंगी या चड्ढी में भी बसर कर सकते हैं। श्रीलाल शुक्ल के रागदरबारी का शनिचर सिर्फ चड्ढी और बनियान में ही रहता था प्रधान बनाने के बाद भी ।
इस तरह एक स्किल्ड और enterpreuner तबका एक मजदूर वर्ग में तब्दील हो गया । इसी तथ्य में आंबेडकर का उस प्रश्न का भी उत्तर छुपा है , जिसमे उन्होंने कहा कि यद्यपि स्मृतियों में मात्र 12 अछूत जातियों का वर्णन है , लेकिन govt कौंसिल 1936 ने 429 जातियों को अछूत घोषित किया गया है । और आप अनुमान लगाये 700 प्रतिशत बेरोजगार कितनी बड़ी जनसँख्या होती है ।
जो लोग गावं में रहे हैं वो जानते हैं कि उनके दादा परदादा बताते रहे होंगे कि हमने फलने फलने को बसाया । बसाया तो कौन लोग थे, जो उजड़कर दुबारा बसने गए थे ? वो वही लोग हैं 700 % बेरोजगार स्किल्ड मन्फक्टुरेर ऑफ़ इंडिया।
अब कहानी को मंथर गति से आगे बढ़ाते हैं ..अगर 1900 तक भारत के स्किल्ड कारीगर और व्यापार से जुड़े अन्य लोग, जो विश्व के सकल घरेलु उत्पाद में भारत की 25% हिस्सेदारी (कम से कम angus maddison के आंकड़ों से अनुसार) पिछले 1750 तक बरकरार रखा था , और जो 1900 आते आते मात्र 1.8 % तक सिमटकर रह गया , उनकी काम कौशल के साथ जीविका और जीवन भी बदल गया।
जो निर्माता से मजदूर में तब्दील हो गया क्या वो मनुस्मृति या वेदों में लिखे कुछ श्लोकों के कारन हुवा?
क्या दलित चिंतक समाज के अर्थशास्त्र को देखने का साहस रखते हैं ? आजादी आते आते और ५० साल लगभग गुजर गए।और इन 50 वर्षों में और भी स्किल्ड लोग बेरोजगार, और बेघर हुए होंगे ।
क्या ये ब्राम्हणवाद की देन है ?
बंगाल में आजादी के पूर्व करीब ४० से ज्यादा बार सूखा पड़ा जिसमे करोणों लोग मरे । कौन लोग थे वे?
इस भयानक दुर्दशा से अगर कोई अपने आपको बचा पाया होगा तो वो रहे होंगे किसान , और वो भी वही किसान,जो जमींदारी प्रथा और टैक्सेशन से अपने आपको बचा पाएं होंगे । पश्चिमी उत्तर प्रदेश का एक बहुत बड़ा वर्ग दलित वर्ग में आता है, और संविधान प्रदत्त आरक्षण का लाभ भी लेता है , बहुतायत से उसमे मेरे मित्र भी हैं , लेकिन वो सैकड़ों बीघो के जमीन के मालिक हैं।
कैसे हैं वे इतने बड़े काश्तकार होते हुए भी दलित? क्या ये विसंगतियां दिखती नहीं लोगों को ? इससे ज्यादा ईमानदार चिंतक तो आंबेडकर जी थे ,जिन्होंने स्मृतियों में वर्णित और कौंसिल ऑफ़ इंडिया में लिस्टेड S C जातियों की विसंगत्यों पर एक ईमानदार प्रश्नचिन्ह तो खड़ा किया ।
अब आइये उस बात की चर्चा करें की भारतीय समाज को टुकडे टुकडे में कैसे बांटा प्रशासन ने और पादरियों ने। कैसे स्वास्तिक जर्मनी के हिटलर और सैनिकों के बांह पर सुशोभित हुवा?
कैसे ब्राम्हण वाद की फलसफा ने जन्म लिया? क्यों जरूरत पड़ी इन सबकी?
1857 के संग्राम में इतने अंग्रेज मारे गए कि यदि पंजाब का राजघराना जो कि अभी राजनीती में सक्रिय हैं , दूसरे सिंधिया घरानों ने अंग्रेजों कि मदद न कि होती तो शायद उसी समय भाग गए होते।
लेकिन 1857 की पुनरावृत्ति को रोकने के लिए उन्होंने कि योजना बद्द तरीके से भारत में न सिर्फ हिन्दू मुस्लिम भेद पैदा किया बल्कि हिन्दू समाज को इतने हिस्सों में बाँट दो कि वे एक न हो सके।
ये अघोषित राजनीतिक योजना थी । दूसरे कुछ वर्षों के लिए मिशनरियों के क्रिया कलाप पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया। क्योंकि सेना में उच्च पदों पर बैठे अधिकारी खुले आम सिपाहियों के हिन्दू धर्म को नीचा दिखाया करते थे, इसलिए सेना में काफी असंतोष रहा करता था।
लेकिन यह ऊपरी स्तर पर किया गया। लेकिन जमीनी स्तर पर धर्म परिवर्तन की जमीन तैयार करने के लिए वैधानिक मार्ग अपनाया गया।
अब बात ये है कि सिर्फ हिन्दू समाज को ही क्यों बांटना था ? क्योंकि 1857 के संग्राम में अधिकतम हिस्सेदारी हिन्दुओं की ही थी । 1857 के पहले सेना में सभी वर्ण के लोग एक साथ थे। मंगल पण्डे तो याद ही होंगे आपलोगों को ।
तो पहला काम था सेना का regimentation करना ।
जिसके बाद उन्होंने राजपूत बटालियन, सिख रेजिमेंट , मराठा रेजिमेंट , इत्यादि खास तौर पर उन वर्गों को सेना में शामिल किया, जिन्होंने अंग्रेजों की 1857 में मदद क़ी थी।
विशेष तौर पर ब्रामणो को सेना से बाहर किया और ये ख्याल रखा गया कि जवान जो रखे जाय उनकी पारिवारिक पृष्ठिभूमि क्या है? और उनके कोई रिश्तेदार आर्मी में हैं कि नहीं हैं? यदि हैं तो उनको प्राथमिकता दी जाएगी। इसीलिए अम्बेडकर जी के पितामह और पिता दोनो सेना में रखे गए थे।
एक नया शब्द कॉइन किया गया --मार्शल रेसेस जिनमे क्षत्रियों और सिखों को रखा गया। अर्थात मोटी बुद्धि के साहसी लोगों का समुदाय।
भारत के हिन्दू समाज को बाँटने का सिलसिला शुरू हुवा "#आर्य " और "#द्रविड़" बंटवारे से । नार्थ साउथ विभाजन से। क्योंकि दक्षिण में क्रिस्चियन मिशनरीज काफी पहले से आ गयी थी परन्तु धर्म परिवर्तन में सफल नहीं हो पा रहीं थी । इस लिए सबसे पूर्वे भारत को उत्तर और दक्षिण भारतीयों में बांटा और उसमे वे सफल रहे । यानी आर्य और द्रविड़।
उसके पश्चात कल्पित #आर्यनअफवाह और बाइबिल के चश्मे से हिन्दुओ को सवर्ण और असवर्ण में बांटा गया।
कास्ट को हिन्दू धर्म का अमानवीय और अभिन्न अंग बताते हुए इसकी उत्पत्ति के लिए ब्राम्हणो को उत्तरदायी ठहराया गया और ब्राम्हणवाद को जमकर गालियां देनी शुरू की गयी।
एम ए शेरिंग ने ब्राम्हणो को गालियां देने का टेम्पलेट तैयार किया - wily Bramhan दुष्ट ब्राम्हण आदि आदि।
अम्बेडकर जी इन मिशनरियों से अत्यंत प्रभावित थे। उनकी पुस्तक में एम ए शेरिंग के प्रति आदर का भाव यही दर्शाता है।
1901 में HH रिसले ने सवर्णो को तीन उच्च जातियां और अन्य हिन्दू समुदाय को निम्न जातियों में विभाजित कर 2378 कास्ट की लिस्ट बनायी।
यही से ऊंची और निम्न जाति की अवधारणा पुष्पित पल्लवित होनी शुरू हुई।
आगे की कहानी पिछली पोस्टों में लिखी गयी है।
©त्रिभुवन सिंह
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