#संशय_बिहग :
कल टेलिफोनिक वार्ता के समय एक सम्मानित और वैरिष्ठ अग्रज ने कहा कि यदि कोई फेसबुक पर तुम्हारे पोस्टों को पढ़े, तो पागल होकर घूमेगा कि क्या करे, क्या न करे। अंत में उसकी गति वही होगी-- माया मिली न राम।
इस पर मैं अपना स्पष्टीकरण रखना चाहता हूँ।
मा या का तो अर्थ ही है : या-which, मा- does not exist. अर्थात Which doesn't exist. तो जिसका अस्तित्व ही नहीं है, उसको भला पा भी कैसे सकेगा कोई?
तो माया माया में भेद है। यदि माया का अर्थ संसार है तो संसार तो सुंदर है, संसार तो माया की पाठशाला है।
माया का अर्थ यह नहीं है कि संसार में दिखने वाले धन वैभव पद और प्रतिष्ठा के बारे में बात हो रही है। संसार तो भरा पड़ा है प्राप्य पदार्थो से - स्त्री (पुरूष) धन वैभव पद और प्रतिष्ठा से, सम्मान, पुरस्कार।
लगो उसकी दौड़ में प्राप्त करो।
राजनीति में सीधे न जा सको तो किसी शाखा विशेष में भी पदों और पुरस्कारों की कोई कमी नहीं है। वहीं भाग्य आजमाओ। करो किचाहिन। पटका - पटकी, धक्का मुक्की। इतनी आसानी से न मिलेगा लेकिन। लेकिन जो पा चुके हैं उनसे प्राप्ति की महत्ता या व्यर्थता के बारे में उनके विचार जान तो लो एक बार। और जो नहीं पाए हैं उनके दुःख को भी देख लो एक बार। और कुछ तो ऐसे हैं कि बार बार पाते हैं, भोगते हैं, पछताते हैं, फिर उसी के पीछे पुनः भागते हैं।
पद न पा सको - धन पा लो। लेकिन यह भी आसानी से न मिलेगा। अनेकों तिकड़म करने पड़ेंगे। खटकर्म करने पड़ेंगे। उल्लू बनाना पड़ेगा। उल्लू बनने को लोग तैयार बैठे हैं तुम कला तो सीखो। क्योंकि जो उल्लू बनने को तैयार बैठे हैं, वे उन्हीं के पास जाते हैं, जो उल्लू बनाने में निष्णात हैं, पारंगत हैं- खग जाने खग ही की भाषा।
लेकिन अनुभवी लोग कहते हैं कि धन का तीन ही परिणाम होता है - भोग दान नाश। भोगोगे कब? और कितना? तेली के बैल की तरह पेर रहे हो, चौबीसों घण्टे। भोगोगे कब ?
दरिद्र तुम इतने हो, - तभी तो पागल हो धन के पीछे। अंदर दरिद्रता भरी पड़ी है, तभी तो प्यास बुझती नहीं। दरिद्र तुम इतने हो कि दान करने का साहस नहीं है। तो होना है नाश ही। तुम्हारी संतति करे या पड़ोसी उससे कोई फर्क नहीं पड़ता।
इसी को कृष्ण कहते हैं - दैवी हि एषा गुणमयी मम् दुरत्यया। अर्थात मेरी माया दैवी गुणों वाली है, और इससे पार पाना असंभव है।
तो दौड़ो संसार की इस महादौड में जिसे - गला काट प्रतियोगिता कहते हैं। पाया तो व्यर्थ, न पाया तो दुखदायी। जिसने पाया हो उससे पूछों कि क्या पाया? वही बता सकेगा कि पाना सार्थक था या निरर्थक।
और जिसने न पाया हो उससे उसका अनुभव पूंछ लो। न पा सकने की पीड़ा।
जगजीत की एक ग़ज़ल है:
दुनिया जिसे कहते हैं - जादू का खिलौना है।
मिल जाये तो माटी है खो जाए तो सोना है।
तो पाने के लिए सारा संसार पडा है। पाओ न। दौड़ो उस रेस में। लेकिन क्या सिकन्दर पा सका था? या हिटलर? या आपके अड़ोसी पड़ोसी, आपके पिता माता? दौड़ दौड़ के फेंचकुर फेंक दोगे। जो पाओगे, उसे भोग न सकोगे। वो ही तुम्हें भोग लगा। यह मैं नहीं कह रहा। मेरी क्या बिसात है। इसको कहा था - राजा भरथरी ने। राजा ने कहा था, जिसको समस्त भोग उपलब्ध थे:
भोगो न भुक्ता वयमेव भुक्ता।
भोगों को हम नहीं भोगते। भोग हमें भोग लेते हैं।
यदि पाने की व्यर्थता को न समझा होता तो क्या ये राजे महाराजे त्यागे होते उसे, वे चाहे भर्तहरि हों या बुद्ध।
एक माया तो है संसार, जो सच है वास्तविक है।
एक संसार हर मनुष्य का अपना निजी होता है। उसमें कोई झांक नहीं सकता। न पति, न पत्नी, न मित्र न यार, न बेटा न बेटी। सबका अपना एक निजी संसार होता है जिसे माया कहते हैं।
एक बार अपने मन की तरफ देखो। देखो तो समझोगे कि मन मे चल क्या रहा है? मन मे चल रहा है अतीत ही अतीत। अतीत के किस्से, अतीत की कहानियां, अतीत के कष्ट, अतीत के सुख, अतीत की वेदनाएं।
अभी ऐसा हुआ कि हमारे यहाँ , COVID के कारण एक बैच की सिल्वर जुबली नहीं हो सकी। तो लोगों ने प्लान किया कि दो बैचों का एक साथ कर दिया जाय। लेकिन 20 या 25 वर्ष पूर्व उन दो बैचों के बीच ऐसा कुछ हुवा था, कि वे एक साथ बैठने को राजी नहीं हैं। क्या हुआ था, भगवान जाने, लेकिन 20 साल पुराने घाव को उन्होंने इतनी बार देखा है, और खोदा है कि वह नासूर बन गया, आज भी जीवित है।
तो हमारे मन में या तो मृत अतीत घूमता है, या भविष्य, जोकि अतीत को ही सजा सवांर कर कुछ और अच्छा बनाने की कल्पना मात्र है। दोनों का ही अस्तित्व नहीं है हमारे जीवन मे। न अतीत का, क्योंकि वह है ही नहीं, बीत चुका। और न भविष्य का, क्योंकि वह आया नहीं।
इसी को कहते हैं माया - which does not exist.
तो माया तो चीज ही ऐसी है जो कभी मिलेगी नहीं।
और राम तो कभी गायब ही नहीं हुए। वे तो सास्वत हैं, सनातन हैं, हमारे अंदर हैं। बस हमें पता होना चाहिये कि हम खोज किसे रहे हैं? माया को या राम को?
एक बार संदेह मिट जाय तो मार्ग अपने आप मिल जाता है:
राम नाम सुंदर करतारी।
संशय विहग उड़ावन हारी।।
- तुलसीदास
©त्रिभुवन सिंह
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