Sunday, 14 February 2021

योग और प्रतियोग :

#योग_प्रतियोग

उत्तर का विपरीत पक्ष सदैव प्रश्न ही नहीं होता, प्रति उत्तर भी होता है। जैसे ध्वनि के प्रतिउत्तर में प्रतिध्वनि। वैसे ही योग का विपरीत पक्ष है प्रतियोग।

योग का अर्थ समझाने की आवश्यकता नहीं है, प्रायः सब उसके संदर्भ में कुछ न कुछ जानते ही हैं। 

योग करने वाला योगी - अंतर्यात्रा। अन्तर्यात्रा करेगा, योग करेगा।  
प्रतियोग करने वाला प्रतियोगी - बहिर्यात्रा। बहिर्यात्रा करेगा, प्रतियोग करेगा प्रतियोगिता करेगा।
 
प्रतियोगिता अर्थात कम्पटीशन। लेकिन कम्पटीशन से उसका अर्थ स्पष्ट नहीं होता। 

यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाले छात्रों से पूंछो कि क्या करते हो - सर कम्पटीशन की तैयारी कर रहा हूँ। यूनिवर्सिटी उन्हें कंपीटिशन का भी अर्थ ठीक से नहीं बता पाती। 

मां के पेट से निकलते ही, संसार में आते ही प्रतियोगिता शुरू हो जाती है। प्रतियोगिता अर्थात संघर्ष,अर्थात द्वंद अर्थात राइवलरी ( Rivalry) । किस बच्चे के हिस्से में कितनी प्रतियोगिता आएगी, यह तय नहीं किया जा सकता, इसका कोई मानक भी नहीं है। लेकिन जिसकी जितनी आकांक्षा, जितनी महत्वाकांक्षा, उतनी ही बड़ी प्रतियोगिता। 

आजकल मनोविज्ञानी एक शब्द बोलते हैं - Sibling Rivalry. अर्थात सगे भाई बहनों के बीच प्रतियोगिता। 
अर्थात सगे बच्चे आपस में ही द्वंद कर रहे हैं, प्रतियोगिता कर रहे हैं। 
बच्चे बड़े होंगे। उन्हें आगे बढ़ना होगा। बड़े सपने देखने होंगे। समाज और परिवार की अपेक्षा अनुसार। 

आगे बढ़कर यह गला काट प्रतियोगिता में बदल जाती है। गला काट शब्द कहाँ से अवतरित हुवा प्रतियोगिता के संदर्भ में यह एक जांच का विषय है। पाने के लिये, उपलब्ध वस्तुओं की संख्या कम है, चाहने वालों की संख्या अधिक - इसलिए गला काटना ही पड़ेगा। इसको शब्दिक स्वरूप में न लें। लेकिन हिंसा का भाव में आये बिना, सफलता न मिलेगी, यह बात तय है। 

हिंसा एकत्रित होती चली जाती है - मन मे और शरीर में। लेकिन हमको पता नहीं चलता कि ऐसा हो रहा है। यह हिंसा शरीर में विभिन्न तरह के विषैले केमिकल निकालती है जिसको #इमोशनल_टोक्सिन कहते हैं। यह हमारे सिस्टम में शनैः शनैः एकत्रित होता जाएगा। हमारे सिस्टम को मथता जाएगा। विकृत और रुग्ण करता जाएगा। 

कालान्तर में यह हिंसा बदलती जाती है - बेचैनी, घबराहट, भय, में या फिर स्ट्रेस अवसाद, उदासी, डिप्रेशन में। 

एक फ़िल्म आई जिसमें इसे - केमिकल लोचा कहा गया। 
केमिकल लोचे का प्रभाव माइंड पर पड़ा तो उससे मानसिक समस्याओं का जन्म हुआ। और यदि शरीर पर पड़ा तो उसे स्ट्रेस से बनने वाली बीमारियां यथा हाइपरटेंशन, डायबिटीज आदि आदि का जन्म होता है। मेडिकल साइंटिस्ट उन्हें लाइफ स्टाइल डिजीज कहते हैं। 

लेकिन इन मानसिक और शारीरिक बीमारियों के मूल में उतपन्न कारण - हिंसा का कोई इलाज नहीं उपलब्ध है सिवा कुछ शामक केमिकल्स के - पिल्स के रूप के, या फिर शराब आदि के रूप में। 

यहीं पर योग का रोल आता है। 
हिंसा का जन्म न हो, यदि हो गया हो तो उसको बाहर कैसे निकालें? 
अष्टांगयोग इसी हिंसा से निबटने में सहायता करती है। इसकी आवश्यकता पूरे विश्व को है। विशेष करके उस समाज को,  जो अपनी हिंसा को शारीरिक श्रम के माध्यम से बाहर नहीं निकाल सकता - साधन संपन्न और वैभव पूर्ण समाज को।
 सबसे विक्षिप्त समाज यही है। न होता तो अरबों खरबों रुपये खर्च करता किसी देश को अव्यवस्थित करने के लिए, जैसा कि अभी किसान आंदोलन को प्रायोजित करने में किया गया। 

प्रतियोग का उत्तर है योग। 


©त्रिभुवन सिंह

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